"आर्थिक संतुलन": अवतरणों में अंतर

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== आर्थिक संतुलन में हस्तक्षेप से हानि ==
[[File:Economic Disequilibrium Price Fixing Hindi.png|thumb|280px|चित्र 2 - दो असंतुलित सम्भावनाएँ। बाएँ में सरकार गणित-शिक्षा की कीमत कम करने की घोषणा करती है और दाएँ में गणित-शिक्षकों की आय बढ़ाने की घोषणा करती है।]]
[[File:First Houses in winter from west.jpg|thumb|280px|न्यू यॉर्क में घरों के किराए के दरों में सरकारी हस्तक्षेप से घरों की उपलब्धि में अभाव उत्पन्न हो गया।]]
आमतौर पर यदि बाज़ार में संतुलन द्वारा उत्पन्न कीमत में बलपूर्वक बदलाव की चेष्टा करी जाए, तो इसके अनपेक्षित दुषपरिणाम होते हैं। अक्सर ऐसी चेष्टाएँ किसी भलाई करने के लिए ही होती हैं लेकिन आर्थिक संतुलन की ऐसी प्रकृति है कि इसका अंत में बुरा असर पड़ सकता है। इसे उदाहरण के साथ समझने के लिए, फिर गणित-शिक्षा की सेवा की आपूर्ति करने वाले उत्पादकों (यानि गणित-शिक्षा देने में सक्षम लोग) और इस सेवा की माँग करने वाले उपभोक्ताओं (यानि विद्यालयों और विद्यार्थियों) को देखा जा सकता है।
 
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* '''परिणाम 2''' (दाएँ के चित्र में दर्शित): अधिक आय के लिए अब विद्यार्थियों से गणित-शिक्षा का शुल्क अधिक लेना होगा। यह कीमत अब P<sub>1</sub> होगी, जो पहले की कीमत P<sub>0</sub> से अधिक है। इस से कुछ विद्यार्थी, जो गणित-शिक्षा पर इतना खर्च करना नहीं चाहते या कर नहीं सकते, कम गणित-शिक्षा ग्रहण करने लगते हैं। सम्भव है कि विद्यालय जहाँ दो गणित-शिक्षक रखने वाले थे वहाँ अब एक ही रखे और उनकी क्लास की अवधियाँ घटा दें - इस में भी विद्यार्थियों द्वारा ग्रहण करे जाने वाली गणित-शिक्षा की मात्रा कम हो जाएगी। यहाँ भी यह देखा जा सकता है कि कुछ गणित-शिक्षक नई आय से कम आय में गणित-शिक्षा देने को तैयार थे। उन्हें अब यह विकल्प नहीं मिलेगा और अन्य किसी व्ययसाय में जाना होगा। वह यह कह सकते हैं कि "गणित-शिक्षकों को आय तो अच्छी मिलती है लेकिन यह नौकरियाँ आसानी से मिलती ही नहीं।" बाज़ार में संतुलित स्थिति से कम गणित-शिक्षा का क्रय-विक्रय होगा। विद्यार्थियों को भी गणित-शिक्षा के अभाव से हानि होगी।
 
बहुत-सी अर्थववस्थाओं में ऐसे सरकारी हस्तक्षेप के बुरे प्रभाव दिखाई देते हैं। यह निर्णय किसी वर्ग की सहायता के नाम पर करे जाते हैं लेकिन अक्सर समय के साथ-साथ यह उस वर्ग के समेत पूरी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाते हैं। सरकारी हस्तक्षेप से अक्सर [[अभाव अर्थव्यवस्था]] जन्म लेती है, जिसमें माल व सेवाओं का अभाव होता है, और भ्रष्टाचार भी बढ़ा सकती है।<ref>Paul A. Samuelson (1947; Expanded ed. 1983), ''Foundations of Economic Analysis'', Harvard University Press. {{ISBN|0-674-31301-1}}</ref><ref>{{cite book |author-link=Hal Varian |first=Hal R. |last=Varian |title=Microeconomic Analysis |edition=Third |publisher=Norton |location=New York |year=1992 |isbn=0-393-95735-7 |url=https://archive.org/details/microeconomicana00vari_0 }}</ref> अक्सर ऐसे हस्तक्षेप से काला-बाज़ारी को भी बढ़ावा मिलता है और समाज में अपराधीकरण बढ़ता है। उदाहरण के लिए कई शहरों में जब सरकार को लगता है कि किराया अधिक बढ़ गया है, तो वह किराया बढ़ने से रोक देती है। इस से कई अमीर लोग जो और भी घर बनाकर किराए पर चढ़ा सकते थे, वे घर नहीं बनाते। शहर की आबादी बढ़ती है, लेकिन किराए के लिए उपलब्ध घरों की संख्या उतनी नहीं बढ़ती और इस बाज़ार में आपूर्ति का अभाव उतपन्न होता है। कुछ लोग मकान मालिकों को छुपकर सरकारी दर से अधिक पगार देते हैं ताकि घर उन्हें घर मिल जाए। बहुत से लोग कहते हैं कि "उस शहर में किराया तो कम है लेकिन किराए के घर मिलते ही नहीं।" क्योंकि छुपकर पगार लेने वाले मकान-मालिक उसे आय में घोषित नहीं कर सकते इसलिए सरकार भी कर से वंछित रह जाती है और समाज में कर चुराने का व्यवहार आम होने लगता है। [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] के न्यू यॉर्क शहर में 1970 व 1980 के दशकों में कुछ ऐसा ही हुआ और समय के साथ किराए के घरों का भारी अभाव उत्पन्न हो गया।<ref>"[https://www.google.com/books/edition/Principles_of_Microeconomics/xoztFMavGCcC Principles of Microeconomics, Volume 1]," Nicholas Gregory Mankiw and N. Gregory Mankiw, Dryden Press, 1997, ISBN 9780030245022, ''... Other times, would-be tenants make payments, known as "key money," to prior tenants or to landlords ...''</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==