"मुद्रा (विनिमय माध्यम)": अवतरणों में अंतर

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* दुर्लभता (scarcity): वस्तु दुर्लभ होनी चाहिए। यानि उसकी मात्रा किसी कारणवश नियंत्रित होनी चाहिए। मसल कोई भी वृक्ष का पत्ता मुद्रा नहीं बन सकता क्योंकि उसकी [[आपूर्ति (अर्थशास्त्र)|आपूर्ति]] लगभग अनंत है। अगर वस्तु मानवकृत है तो उसे बनाना कठिन होना चाहिए, ताकि वस्तु दुर्लभ ही रहे।
* पर्याप्त उपलब्धि (sufficient availability): वस्तु की आपूर्ति इतनी कम भी नहीं होनी चाहिए कि वह बहुत की कम लोगों के पास हो या उसे बड़े पैमाने पर विनिमय (लेनदेन) के लिए प्रयोग न किया जा सके। यही कारण है कि [[हीरे]] इतिहास में मुद्रा के रूप में नहीं उभरे।
* [[प्रतिमोच्यता]] (fungibility): वस्तु की ईकाईयाँ एक-समान होनी चाहिए या इसकी ईकाईयाँ एक दूसरे से सरल रूप से तुलनात्मक होनी चाहिए। यही कारण है कि इतिहास में किसी क्षेत्र में आमतौर से एक ही प्रकार (या बहुत कम प्रकारों) के शंख ही मुद्रा बनते थे।
* टिकाऊपन (durability): वस्तु लम्बे समय तक बिना विकृत या नष्ट हुए रहनी चाहिए। यानि ऐसा नहीं होना चाहिए कि कोई विक्रेता मुद्रा वस्तु को प्राप्त करे और उसे स्वयं प्रयोग कर पाने से पहले ही अपनी पहचान खो दे।