"ब्रजभाषा": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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""कारौ लौंडा बोल्यौ"" -(बरन, जिला [[बुलंदशहर]])।
कन्नौजी की अपनी प्रकृति '''ओकारांत''' है। संज्ञा, विशेषण तथा क्रिया के रूपों में ब्रजभाषा जहाँ औकारांतता लेकर चलती है वहाँ कन्नौजी ओकारांतता का अनुसरण करती है। जिला अलीगढ़ की जलपदीय ब्रजभाषा में यदि हम कहें कि- ""कारौ छोरा बोलौ"" (= काला लड़का बोला) तो इसे ही कन्नौजी में कहेंगे कि-""कारो लरिका बोलो। भविष्यत्कालीन क्रिया कन्नौजी में
: कन्नौजी में - (1) लरिका जइहै। (2) बिटिया जइहै।
: ब्रजभाषा में - (1) छोरा जाइगौ। (2) छोरी जाइगी।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि ब्रजभाषा के सामान्य भविष्यत् काल रूप में क्रिया कर्ता के लिंग के अनुसार परिवर्तित होती है, जब कि कन्नौजी में एक रूप रहती है।
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इसके अतिरिक्त [[कन्नौजी]] में अवधी की भाँति विवृति (Hiatus) की प्रवृत्ति भी पाई जाती है जिसका ब्रजभाषा में अभाव है। कन्नौजी के संज्ञा, सर्वनाम आदि वाक्यपदों में संधिराहित्य प्राय: मिलता है, किंतु ब्रजभाषा में वे पद संधिगत अवस्था में मिलते हैं। उदाहरण :
:(1) कन्नौजी -""बउ गओ"" (= वह गया)।
:(2) ब्रजभाषा -""बो गयौ"" (= वह गया)।
उपर्युक्त वाक्यों के [[सर्वनाम]] पद "बउ" तथा "बो" में संधिराहित्य तथा संधि की अवस्थाएँ दोनों भाषाओं की प्रकृतियों को स्पष्ट करती हैं।
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