"नागरीप्रचारिणी सभा": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=अप्रैल 2014}}
{{ज्ञानसन्दूक संस्थान
|name = नागरी प्रचारिणी सभा
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=== राजभाषा और राजलिपि ===
सभा की स्थापना के समय तक उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में अंग्रेजी और उर्दू ही विहित थी। सभा के प्रयत्न से, जिसमें स्व. महामना पं॰ मदनमोहन मालवीय का विशेष योग रहा, सन् १९०० से [[उत्तर प्रदेश]] (तत्कालीन [[संयुक्त प्रांत|संयुक्त प्रदेश]]) में [[देवनागरी|नागरी]] के प्रयोग की आज्ञा हुई और सरकारी कर्मचारियों के लिए हिन्दी और [[उर्दू भाषा|उर्दू]] दोनों भाषाओं का जानना अनिवार्य कर दिया गया।
 
====नागरी कोर्ट कैरेक्टर ====
सन् 1996 में ब्रिटिश सरकार ने सरकारी दफ्तरों और अदालतों में [[फारसी]] अक्षरों की जगह [[रोमन लिपि]] लिखने का एक आदेश निकाला। सरकार के इस आदेश से नागरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी सेवियों के बीच काफी उथल-पुथल मच गई। नागरी भाषा के समर्थकों को इस बात का भय था कि यदि अदालतों और सरकारी दफ्दरों में रोमन लिपि लागू कर दी गई तो अदालतों में नागरी भाषा का द्वार हमेशा के लिए बन्द हो सकता है। नागरी प्रचारिणी सभा ने अदालतों में रोमन लिपि के विरोध में आन्दोलन करना शुरु कर दिया। बाबू श्यामसुन्दर दास आन्दोलन को मुखर बनाने के लिए [[मुजफ्फरपुर]] गए; वे वहां [[परमेश्वर नारायण मेहता]] और [[विश्वनाथ प्रसाद मेहता]] से मिलाकर कुछ धन इक्ठ्ठा कर काशी लौट आए। इधर बाबू राधाकृष्ण दास ने नागरी कैरेक्टर (The Nagari Character) लेख तैयार किया। बाबू श्यामसुन्दर दास ने इस लेख के पैम्पलेट छपवाकर लोगों में बटवा दिए। नागरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी सेवियों के आन्दोलन का असर यह हुआ कि सरकार ने जुलाई 1896 में आज्ञापत्र जारी कर अदालतों में रोमन लिपि लिखने पर रोक लगा दी।
 
नागरी प्रचारिणी सभा के सदस्य इस बात पर गहन विचार और विमर्श कर रहे थे कि नागरी भाषा को अदालतों में कैसे लागू करवाया जाए। सन् 1896 मे भारतीय भवन का वार्षिक अधिवेशन हुआ जिसके सभापति जस्टिस नाक्स थे। इन्होंने सभा और पंडित मदनमोहन मालवीय से कहा कि आप लोग को अदालतों में नागरी भाषा को लागू करवाने के लिए प्रयास करना चाहिए। पंडित मदनमोहन मालवीय ने ‘कोर्ट कैरेक्टर एण्ड प्राइमरी एजुकेशन इन नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज’(Court Character and Primary Education N.W. Provinees and Oudh) बड़े परिश्रम और लगन से तैयार किया। सन् 1898 बाबू श्यामसुंदर दास ने इस मेमोरियल का सार संक्षेप हिन्दी में ‘पश्चिमोत्तर प्रदेश तथा अवध में अदालती अक्षर और प्राइमरी शिक्षा’ शीर्षक से नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से प्रकाशित कर नागरी के पक्ष में माहौल निर्मित करने में अहम भूमिका निभाई। इस लेख में नागरी भाषा को अदालतों में लागू करने के पक्ष में तमाम उदाहरण और दलीले पेश की गई थी और यह भी कहा गया था कि पश्चिमोत्तर प्रान्त की अदालतों में नागरी भाषा के लागू न होने से जनता को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
 
‘पश्चिमोत्तर प्रदेश तथा अवध में अदालती अक्षर और प्राइमरी शिक्षा’ लेख में कोर्ट आफ डाइरेक्टर के 30 सितबंर 1830 के आज्ञापत्र का उल्लेख करते हुए बताया गया कि
: ''यहाँ के निवासियों को जज की भाषा सीखने के बदले जज को भारतवासियों की भाषा सीखना बहुत सुगम होगा, अतएव हम लोगों की सम्मति है कि न्यायलयों की समस्त कार्यवाई उस स्थान की भाषा में हो।
 
नागरी प्रचारिणी सभा के कार्यकर्ताओं ने विभिन्न शहरों में घूम-घूम कर साठ हजार व्यक्तियों के नागरी कोर्ट मेमोरियल पर हस्ताक्षर करवाए। नागरी कोर्ट मेमोरियल पर हस्ताक्षर करवाने में [[केदारनाथ पाठक]] ने बड़ा योगदान किया था। उन्होने ब्रिटिश सरकार की परवाह किए बगैर कानपुर, लखनऊ, बलिया, गाजीपुर, गोरखपुर, इटावा, अलींगढ़, मेरठ, हरदोई, देहरादून, फैजाबाद आदि शहरों में घूम-घूम कर लोगों के मेमोरियल पर हस्ताक्षर करवाए। इस दौरान उनको राजद्रोह का मुकदमा भी झेलना पड़ा और जेल भी जाना पड़ा।
‘नागरी कोर्ट कैरेक्टर मेमोरियल’ साठ हजार व्यक्तियों के हस्ताक्षर सहित सोलह जिल्दों में पश्चिमोत्तर प्रांत के लेफ्टीनेंट गर्वनर एंटोनी मैकडानेल को सौंपे जाने का विचार किया गया। मैकडानेल को मेमोरियल देने के लिए सत्रह व्यक्तियों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाया गया। इस प्रतिनिधि मंडल में जिन सत्रह व्यक्तियों को शामिल किया गया उनकी सूची सरस्वती पत्रिका के अप्रैल 1900 के अंक में छपे ‘पश्चिमोत्तर प्रदेश और अवध में नागरी अक्षर का प्रचार’ नामक लेख में दी गई है। वह सूची इस प्रकार है-
 
1.महाराज सर प्रतापनारायण सिंह बहादुर, के. सी. आई. ई., अयोध्या
 
2.राजा रामप्रताप सिंह बहादुर, माँडा इलाहाबाद
 
3.राजा घनश्याम सिंह, मुरसान, अलीगढ
 
4.राजा रामपाल सिंह मेम्बर लेजिसलेटिव कौंसिल, रापपुर, प्रतापगढ
 
5.राजा सेठ लक्ष्मणदास, सी. आई. ई., मथुरा
 
6.राजा बलवंत सिंह, सी. आई. ई., एटा
 
7.राय सिद्धेश्वरी प्रसाद नारायण सिंह बहादुर, गोरखपुर
 
8. राय कृष्ण सहाय बहादुर, सभापति देवनागरी प्रचारिणी सभा, मेरठ
 
9. राय कंवर हरिचरण मिश्र बहादुर, बरेली
 
10. राय निहालचन्द बहादुर, मुजफ्फर नगर
 
11.आनरेबल राय श्रीराम बहादुर, एम.ए.बी.एल. एडवोकेट अवध, मेम्बर प्रांतिक लेजिसलेटिव कौंसिल, तथा फेलो इलाहाबाद युनिर्वसिटी, लखनऊ
 
12.राय प्रमदादास मित्र बहादुर, फेलो इलाहाबाद युनिर्वसिटी
 
13.आनरेबल सेठ रघुबरदयान, मेम्बर प्रांतिक लेजिसलेटिव कौंसिल, सीतापुर
 
14.मुन्शी माधवलाल, रईस, काशी
 
15. मुन्शी रामनप्रसाद, एडवोकेट तथा सभापति कायस्थ पाठशाला कमेटी, इलाहाबाद
 
16.पंडित सुन्दरलाल बी.ए. एडवोकेट तथा फेलो इलाहाबाद युनिर्वसिटी
 
17.पंडित मदनमोहन मालवीय, बी.ए. एल.एल.बी., वकील हाईकोर्ट, तथा प्रतिनिधि काशी नागरी प्रचारिणी सभा।
 
2 मार्च 1898 को मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में सत्रह व्यक्तियों के प्रतिनिधि मंडल ने पश्चिमोत्तर प्रांत और अवध के लेफ्टीनेंट गर्वनर एंटोनी मैकडानेल को ‘कोर्ट कैरेक्टर एण्ड प्राइमरी एजुकेशन इन नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज’ सौंप दिया। नागरी प्रचारिणी सभा और महामना के नेतृत्व में चले इस आन्दोलन ने पश्चिमोत्तर प्रांत में कचहरियों और प्राइमरी स्कूलों में हिन्दी भाषा के लिए द्वार खोल दिया। 18 अप्रैल 1900 को पश्चिमोत्तर प्रांत और अवध के लेफ्टीनेंट गर्वनर एंटोनी मैकडानेल ‘बोर्ड आफ रिवेन्यु’ और हाई कोर्ट तथा ‘जुडिशियल कमिशनर अवध’ से सम्मति लेकर आज्ञापत्र जारी कर दिया।<ref>[https://samalochan.blogspot.com/2020/03/blog-post_25.html नागरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी अस्मिता का निर्माण ]</ref>
 
=== आर्यभाषा पुस्तकालय ===
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=== हस्तलिखित ग्रंथों की खोज ===
स्थापित होते ही सभा ने यह लक्ष्य किया कि प्राचीन विद्वानों के हस्तलेख नगरों और देहातों में लोगों के बेठनों में बँधे बँधे नष्ट हो रहे हैं। अतः सन् १९०० से सभा ने अन्वेषकों को गाँव-गाँव और नगर-नगर में घर-घर भेजकर इस बात का पता लगाना आरंभआरम्भ किया कि किनके यहाँ कौन-कौन से ग्रंथ उपलब्ध हैं। उत्तर प्रदेश में तो यह कार्य अब तक बहुत विस्तृत और व्यापक रूप से हो रहा है। इसके अतिरिक्त पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी यह कार्य हुआ है। इस खोज की त्रैवार्षिक रिपोर्ट भी सभा प्रकाशित करती है। सन् १९५५ तक की खोज का संक्षिप्त विवरण भी दो भागों में सभा ने प्रकाशित किया है। इस योजना के परिणामस्वरूप ही हिंदी साहित्य का व्यवस्थित इतिहास तैयार हो सका है और अनेक अज्ञात लेखक तथा ज्ञात लेखकां की अनेक अज्ञात कृतियाँ प्रकाश में आई हैं। आज सभा के पास 20 हजार से अधिक पांडुलिपियां, 50 हजार से अधिक पुरानी पत्रिकाएं और 1.25 लाख से अधिक ग्रंथों का भंडार है। हिंदी की इस थाती के संरक्षण के लिए संस्था के पास पर्याप्त धन नहीं है।<ref>[हिंदी दिवस: काशी में हिंदी की सबसे बड़ी पीठ बदहाल]</ref>
 
=== प्रकाशन ===