"हेलिओडोरस स्तंभ": अवतरणों में अंतर

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: ''वसेन (चतु) दसेन राजेन वधमानस।
 
: ''(अर्थ : देवाधिदेव वासुदेव का यह गरुड़ध्वज (स्तंभ) तक्षशिला निवासी दिय के पुत्र भागवत हेलिओवर ने बनवाया, जो महाराज अंतिलिकित के यवन राजदूत होकर विदिशा में काशी (माता) पुत्र (प्रजा) पालक भागभद्र के समीप उनके राज्यकाल के चौदहवें वर्ष में आये थे।)
 
वर्तमान में स्तंभ के पास निर्मित मंदिर अस्तित्व में नहीं रहा। पर पुरातात्विक प्रमाण इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राचीन काल में यहाँ एक वृत्तायत मंदिर था, जिसकी नींव २२ सेंटीमीटर चौड़ी तथा १५ से २० सेंटीमीटर गहरी मिली है। गर्भगृह का क्षेत्रफल ८.१ ३ मीटर है। प्रदक्षिणापथ की चौड़ाई २.५ मी. है। इसका बाहरी दीवाल भी वृत्तायत है। पूर्व की ओर स्थित सभामंडप .७ ४.८५ मीटर आयताकार है। यहीं से मंदिर का द्वार था। नींव में लकड़ी के खम्भे होने का प्रमाण मिला है। पुरातात्विक प्रमाण यह भी बताते हैं कि यहाँ पहले कुछ ८ स्तंभ थे, जिसमें पहले गरुड़, ताड़पत्र, मकर आदि के चिंह बने हुए थे। इन स्तंभों में सात स्तंभ एक ही कतार में मंदिर के पूर्व भाग में उत्तर- दक्षिण की तरफ लगे थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं। आठवां स्तंभ ही हेलिओडोरस स्तंभ के रूप में जाना जाता है।