"गाथासप्तशती": अवतरणों में अंतर
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'''गाथासप्तशती''' [[प्राकृत]] भाषा में गीतिसाहित्य की अनमोल निधि है। इसमें प्रयुक्त [[छन्द]] का नाम "गाथा" छन्द है। इसमें ७०० गाथाएँ हैं। इसके रचयिता '''हाल''' या [[शालिवाहन]] हैं। इस काव्य में सामान्य लोकजीवन का ही चित्रण है। अत: यह प्रगतिवादी कविता का प्रथम उदाहरण कही जा सकती है। इसका समय बारहवीं शती मानी जाती है।
==परिचय==
गाथासप्तशती का उल्लेख [[बाणभट्ट]] ने [[हर्षचरित]] में इस प्रकार किया है:
अविनाशिनमग्राह्यमकरोत्सातवाहन:।
विशुद्ध जातिभि: कोषं रत्नेखिसुभाषितै:।। (ह. च. 13)
इसके अनुसार सातवाहन ने सुंदर सुभाषितों का एक कोश निर्माण किया था। आदि में यह कोश सुभाषितकोश या गाथाकोश के नाम से ही प्रसिद्ध था। बाद में क्रमश: सात सौ गाथाओं का समावेश हो जाने पर उसकी सप्तशती नाम से प्रसिद्धि हुई। सातवाहन, शालिवाहन या हाल नरेश भारतीय कथासाहित्य में उसी प्रकार ख्यातिप्राप्त हैं जैसे [[विक्रमादित्य]]। [[वात्स्यायन]] तथा [[राजशेखर]] ने उन्हें कुंतल का राजा कहा है और [[सोमदेव]]कृत [[कथासरित्सागर]] के अनुसार वे नरवाहनदत के पुत्र थे तथा उनकी राजधानी प्रतिष्ठान (आधुनिक पैठण) थी। पुराणों में आंध्र भृत्यों की राजवंशावली में सर्वप्रथम राजा का नाम सातवाहन तथा सत्रहवें नरेश का नाम हाल निर्दिष्ट किया गया है। इन सब प्रमाणों से हाल का समय ईसा की प्रथम दो, तीन शतियों के बीच सिद्ध होता है और उस समय गाथा सप्तशती का कोश नामक मूल संकलन किया गया होगा। राजशेखर के अनुसार सातवाहन ने अपने अंत:पुर में प्राकृत भाषा के ही प्रयोग का नियम बना दिया था। एक जनश्रुति के अनुसार उन्हीं के समय में [[गुणाढ्य]] द्वारा पैशाची प्राकृत में [[बृहत्कथा]] रची गई, जिसके अब केवल संस्कृत रूपांतर [[बृहत्कथामंजरी]] तथा [[कथासरित्सागर]] मिलते हैं।
गाथासप्तशती की प्रत्येक गाथा अपने रूप में परिपूर्ण है और किसी मानवीय भावना, व्यवहार या प्राकृतिक दृश्य का अत्यंत सरसता और सौंदर्य से चित्रण करती है। [[श्रृंगार रस]] की प्रधानता है, किंतु हास्य, कारुण्य आदि रसों का भी अभाव नहीं है। प्रकृतिचित्रण में [[विंध्यपर्वत]] ओर गोला ([[गोदावरी]]) नदी का नाम पुन:-पुन: आता है। ग्राम, खेत, उपवन, झाड़ी, नदी, कुएँ, तालाब आदि पर पुरुष-स्त्रियों के विलासपूर्ण व्यवहार एव भावभंगियों का जैसा चित्रण यहाँ मिलता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।
इस संग्रह का पश्चात्कालीन साहित्य पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। इसी के आदर्श पर [[जैन धर्म|जैन]] कवि [[जयवल्लभ]] ने "[[वज्जालग्गं]]" नामक प्राकृत सुभाषितों का संग्रह तैयार किया, जिसकी लगभग 800 गाथाओं में से कोई 80 गाथाएँ इसी कोश से उद्धृत की गई हैं। [[संस्कृत]] में [[गोवर्धनाचार्य]] (11वीं-12वीं शती) ने इसी के अनुकरण पर [[आर्यासप्तशती]] की रचना की। हिंदी में [[तुलसीसतसई]] और [[बिहारी सतसई]] संभवत: इसी रचना से प्रभावित हुई हैं।
[[श्रेणी:प्राकृत]]
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