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(1) '''जठरांत्र उत्तेजन''' (Gastrointestinal irritation) - साधारणतया वमन, पेट की पीड़ा और अतिसार (diarrhea) विषाक्तता के प्रमुख लक्षण हैं। यदि कुछ ही घरों के भीतर अनेक व्यक्ति विषाक्तता के शिकार हुए हों, तो किसी खास वस्तु को क्षोभक (irritant) का वाहक समझा जा सकता है।
 
(2) '''प्रलाप''' - यह रासायनिक विष या उपापचयी (metabolic) गड़बड़ी और ज्वर के परिणामस्वरूप उत्पन्न रुधिरविषाक्तता (toxaemia) के कारण होता है। थोडी खुराक में ही प्रलाप उत्पन्न करनेवाले रासायनिक विषों में वारविट्यूरेट, ब्रोमाइड का चिरकालिक मशा, ऐल्कोहॉल, हाइओसायनिन (hyocyanine) आदि है। इनमें से प्रथम तीन अधिक प्रचलित हैं और प्रलाप प्राय: अत्यल्प नशे का सूचक होता है।
 
(3) '''सम्मूर्च्छा''' (coma) - प्रमस्तिष्कीय (cerebral) क्षति अधिक होने पर प्रलाप सम्मूर्च्छा में परिवर्तित होता है। सामान्यतया बारविट्यूरेट और ऐल्कोहॉल ऐसे परिणाम उत्पन्न करते हैं।
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*(ख) प्रमस्तिष्कीय या मिर्गीजन्य ऐंठन में संज्ञाहीनता होती है और स्फूर्ति तथा क्लोनी (clonic) ऐंठन पर्यायक्रम से होती हैं। प्रतिहेस्टामिन ओषधि, कपूर, फेरस सल्फेट और ऐफाटैमिन इसके उदाहरण हैं।
 
(5) '''परिणाह चेताकोप''' (Peripheral neuritis) - सीसा, आर्सेनिक सोना, पारा आदि से चिरकालिक (chronic) विषाक्तता होने पर परिणाह पेशी की दुर्बलता होती है, जिसमें शरीर छीजता है और जठरांत्र (gastrointestinal) विक्षोभ भी होता है।
 
 
==विषों का वर्गीकरण==
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