"गुप्तचर्या": अवतरणों में अंतर

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चरकारर्य के तरीके उद्देश्य पर निर्भर रहते हैं। दो बातें ध्यान में रखनी आवश्यक हैं। एक तो सूचना प्राप्त करना और फिर उन सूचनाओं को अपने अधिकारियों तक पहुँचाना। सूचना प्राप्त करने के लिये या तो चरकार्यकर्ताओं को स्वयं काम करना पड़ता है, या दूसरों को रिश्वत देनी पड़ती है। यदि प्राप्त की हुई सूचनाएँ मौखिक रूप से न भेजी जा सकें तो इस प्रकार के साधन-अपनाए जाते हैं, जैसे गुप्त भाषा और संकेत आदि (साइफर) के प्रयोग।
 
जो सैनिक गुप्तचर पकड़ लिए जाते हैं, उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाईकार्यवाही की जाती है। शांतिकाल में प्राय: उन्हें जुर्माने और कारावास का दंड दिया जाता है, परन्तु युद्धकाल में ऐसे गुप्तचरों का विचार [[कोर्टमार्शल]] द्वारा किया जाता है और उन्हें [[मृत्युदंड]] तक दिया जाता है।
 
==प्राचीन भारत में गुप्तचर्या==
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*(१) '''संस्था''' :- ऐसे गुप्तचर जो संस्थाओं में संगठित होकर कार्य करते थे। संस्था के निम्नलिखित प्रकार थे-
::(क) कापटिक रूप : यह विद्यार्थी के वेश में रहते थे।
::(ख) उदास्थित :- यह सन्यासीसंन्यासी के वेश में रहते थे।
::(ग) गृहपतिक :- यह किसान के वेश में रहते थे।
::(घ) तापस: यह तपस्वी के वेश में रहते थे।