"तमिल साहित्य": अवतरणों में अंतर

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==[[तमिल भाषा]] का कथा साहित्य== अत्यन्त पुराना है।
तमिल कथा-साहित्य की विकास-यात्रा के इतिहास का परिचय पाना आवश्यक है।
 
==तमिल का कथा साहित्य==
हिन्दी में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाँति तमिल साहित्य में सुब्रह्मण्य भारती (1882-1921) ने ‘निजभाषा-उन्नति’ के मूलमन्त्र के साथ नवजागरण का शंखनाद किया था। भारतेन्दु के समान ही भारती कविता, निबन्ध, गद्यकाव्य, पत्रकारिता, अनुवाद आदि साहित्य की प्रत्येक विधा के पुरोधा रहे। उनकी पहली कहानी ‘छठा भाग’ अछूतों के जीवन पर केन्द्रित है। विदेशी सत्ता से देश को स्वाधीन करने के संकल्प के साथ दलितों को उत्पीड़न से मुक्त करने का आह्वान इस कहानी में मुखरित है; फिर भी यह कहानी स्वयं उनके दावे के अनुसार कहानी के अभिलक्षणों पर खरी नहीं उतर पायी। इसके बाद तमिल कहानी की बागडोर भारती के ही साथी व. वे. सु. अय्यर के हाथों आयी। उनकी कहानी ‘अरशभरत्तिन् कदै’ (पीपलदादा की कथा) इस तथ्य का ज्वलन्त प्रमाण है कि अय्यर कहानी की निश्चित एवं विशिष्ट रूप-कल्पना के प्रति सचेत थे।
 
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जयकान्तन के पचास के दशक में, जब तमिल कहानी के प्रांगण में पदार्पण किया, साहित्य-जगत् संकटपूर्ण घड़ी में गुजर रहा था। विशाल पाठक-वर्ग का दावा करनेवाली भीमकाय पत्रिकाओं का साम्राज्य स्थापित हो गया और सर्जनात्मक प्रतिभाएँ इस कुहरे से आच्छादित हो गयीं। ये व्यवसायिक पत्रिकाएँ तथा कथित जनरुचि की आड़ लेते हुए विज्ञापनबाजी की होड़ में सस्ते मनोरंजन की सामग्री छापने लगीं। फलत: सच्चे साहित्यकारों ने इन पत्रों को छोड़कर लघु-पत्रिकाओं में लिखना पसन्द किया। यह अलग बात है कि उन्हें अपने लेखन के बदले में कुछ भी नहीं मिला। अगले दशक तक आते-आते व्यावसायिक पत्रों ने लघु-पत्रिकाओं को नेस्तनाबूत कर दिया। सृजनात्मक लेखन के क्षेत्र में एक तरह की स्थिरता आ गयी।
 
ऐसी विषम परिस्थिति में उल्टी धारा में तैरते हुए जिन लेखकों ने कथा-साहित्य में अपनी पहचान बनायी, उनमें अखिलन और जयकान्तन के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। अखिलन के लेखन में रोमांस लिये हुए आदर्शवाद का पलड़ा भारी दिखता है जबकि जयकान्तन की कहानियों में कथानकों की विविधता, समस्याओं का यथार्थ चित्रण और प्रस्तुतीकरण की तकनीक नयी बुलन्दियाँ छू रही हैं। अखिलन और जयकान्तन में एक समानता यह पायी जाती है कि दोनों ने व्यावसायिक पत्रिकाओं में लिखते हुए कभी भी अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता नहीं किया। जयकान्तन इस विषय में एक कदम आगे ही रहे। जिन व्यावसायिक पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ छपती थीं, मंच पर खड़े होकर उनके विरुद्ध सात्त्विक रोष से गर्जन करते थे। वामपन्थी विचारधारा की पत्रिका में जिस समस्या पर लिखते, उसी को और अधिक तीखे शब्दों में व्यावसायिक पत्र में लिखने का साहस उनमें है।