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[[अमर दास]] या [[गुरू अमर दास]] [[सिख|सिखों]] के एक गुरू थे ।
{{Underlinked|date=जनवरी 2017}}
{{ज्ञानसन्दूक व्यक्ति
 
[[सिखों के दस गुरू]] हैं ।
| image = Amardas-Goindwal.jpg
| चित्र = Amardas-Goindwal.jpg
| caption=गुरु अमर दास - गोइंदवाल
| name =अमर दास
{{सिक्खी}}
| date of birth =सम्वत १५३६ (अंग्रेजी वर्ष-१४७९)
| birth place = गिलां, अमृतसर
| father =श्री तेज भान भल्ला जी
| mother =माता बख्त कौर जी
| spouse माता मंसा देवी जी
| son = मोहन जी एवं मोहरी जी
| daughter =बीबी दानी जी एवं बीबी भानी जी
गुरू : १५५२ से १५७४
ज्योति जोत : १५७४, गोइन्दवाल
शबद् : ८६९ }}
सवायीये महले तीजे के
भले अमरदास गुण तेरे,
तेरी उपमा तोहि बनि आवै॥ १॥ पृष्ठ १३९६
गुरू अमर दास जी सिख पंथ के एक महान प्रचारक थे। जिन्होंने गुरू नानक जी महाराज के जीवन दर्शन को व उनके द्वारा स्थापित धार्मिक विचाराधारा को आगे बढाया। ÷तृतीय नानक' गुरू अमर दास जी का जन्म बसर्के गिलां जो कि अमृतसर में स्थित है, में वैसाख सुदी १४वीं (९वीं जेठ), सम्वत १५३६ को हुआ था। उनके पिता तेजभान भल्ला जी एवं माता बख्त जी एक सनातनी हिन्दू थे और हर वर्ष गंगा जी के दर्शन के लिए हरिद्वार जाया करते थे। गुरू अमर दास जी का विवाह माता मंसा देवी जी से हुआ था। उनकी चार संतानें थी। जिनमें दो पुत्रिायां- बीबी दानी जी एवं बीबी भानी जी थी। बीबी भानी जी का विवाह गुरू रामदास साहिब जी से हुआ था। उनके दो पुत्रा- मोहन जी एवं मोहरी जी थे।
 
[[श्रेणी:सिख धर्म]]
एक बार गुरू अमरदास साहिब जी ने बीबी अमरो जी (गुरू अंगद साहिब की पुत्राी) से गुरू नानक साहिब के शबद् सुने। वे इससे इतने प्रभावित हुए कि गुरू अंगद साहिब से मिलने के लिए खडूर साहिब गये। गुरू अंगददेव साहिब जी की शिक्षा के प्रभाव में आकर गुरू अमर दास साहिब ने उन्हें अपना गुरू बना लिया और वो खडूर साहिब में ही रहने लगे। वे नित्य सुबह जल्दी उठ जाते व गुरू अंगद देव जी के स्नान के लिए ब्यास नदी से जल लाते। और गुरू के लंगर लिए जंगल से लकड़ियां काट कर लाते।
{{सिखों के दस गुरु}}
 
[[ar:الغورو عمار داس]]
गुरू अंगद साहिब ने गुरू अमरदास साहिब को ÷तृतीय नानक' के रूप में मार्च १५५२ को ७३ वर्ष की आयु में स्थापित किया। गुरू अमरदास साहिब जी की भक्ति एवं सेवा गुरू अंगद साहिब जी की शिक्षा का परिणाम था। गुरू साहिब ने अपने कार्यों का केन्द्र एक नए स्थान गोइन्दवाल को बनाया। यही बाद में एक बड़े शहर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां उन्होंने संगत की रचना की और बड़े ही सुनियोजित ढंग से सिख विचारधारा का प्रसार किया। उन्होंने यहां सिख संगत को प्रचार के लिए सुसंगठित किया। विचार के प्रसार के लिए २२ धार्मिक केन्द्रों- ÷मंजियां' की स्थापना की। हर एक केन्द्र या मंजी पर एक प्रचारक प्रभारी को नियुक्त किया। जिसमें एक रहतवान सिख अपने दायित्वों के अनुसार धर्म का प्रचार करता था। गुरु अमरदास जी ने स्वयं एवं सिख प्रचारकों को भारत के विभिन्न भागों में भेजकर सिख पंथ का प्रचार किया।
[[az:Amar Das]]
 
[[de:Amar Das]]
उन्होंने ÷गुरू का लंगर' की प्रथा को स्थापित किया और हर श्रद्धालु के लिए ÷÷पहले पंगत फिर संगत'' को अनिवार्य बनाया। एक बार अकबर गुरू साहिब को देखने आये तो उन्हें भी मोटे अनाज से बना लंगर छक कर ही फिर गुरू साहिब का साक्षात्कार करने का मौका मिला।
[[en:Guru Amar Das]]
 
[[es:Gurú Amar Das]]
गुरु अमरदास जी ने सतीप्रथा का प्रबल विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह को बढावा दिया और महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने के लिए कहा। उन्होंने जन्म, मृत्यू एवं विवाह उत्सवों के लिए सामाजिक रूप से प्रासांगिक जीवन दर्शन को समाज के समक्ष रखा। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक धरातल पर एक राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक आन्दोलन को उकेरा। इस विचारधारा के सामने मुस्लिम कट्टपंथियों का जेहादी फलसफा था। उन्हें इन तत्वों से विरोध भी झेलना पड़ा। उन्होंने संगत के लिए तीन प्रकार के सामाजिक व सांस्कृतिक मिलन समारोह की संरचना की। ये तीन समारोह थे-दीवाली, वैसाखी एवं माघी।
[[fa:گورو امرداس]]
 
[[fr:Gurû Amar Das]]
गुरू अमरदास साहिब जी ने गोइन्दवाल साहिब में बाउली का निर्माण किया जिसमें ८४ सीढियां थी एवं सिख इतिहास में पहली बार गोइन्दवाल साहिब को सिख श्रद्धालू केन्द्र बनाया। उन्होने गुरू नानक साहिब एवं गुरू अंगद साहिब जी के शबदों को सुरक्षित रूप में संरक्षित किया। उन्होने ८६९ शबदों की रचना की। उनकी बाणी में आनन्द साहिब जैसी रचना भी है। गुरू अरजन देव साहिब ने इन सभी शबदों को गुरू ग्रन्थ साहिब में अंकित किया।
[[ml:അമർദാസ് ഗുരു]]
 
[[mr:गुरू अमरदास]]
गुरू साहिब ने अपने किसी भी पुत्रा को सिख गुरू बनने के लिए योग्य नहीं समझा, इसलिए उन्होंने अपने दामाद गुरू रामदास साहिब को गुरुपद प्रदान किया। यह एक प्रयोग धर्मी निर्णय था। बीबी भानी जी एवं [[गुरु राम दास|गुरू रामदास]] साहिब में सिख सिद्धान्तों को समझने एवं सेवा की सच्ची श्रद्धा थी और वो इसके पूर्णतः काबिल थे। यह प्रथा यह बताती है कि गुरूपद किसी को भी दिया जा सकता है। गुरू अमरदास साहिब को देहांत ९५ वर्ष की आयु में भादों सुदी १४ (दूसरा आसु) सम्वत १६३१ (सितम्बर १, १५७४) को गुरू रामदास साहिब जी को गुरूपद सौंपने के पश्चात गाईन्दवाल साहिब, जो कि अमृतसर के निकट है, में हुआ था।
[[nl:Goeroe Amar Das]]
 
[[nn:Guru Amar Das]]
==बाहरी कड़ियाँ==
[[pl:Guru Amar Das]]
{{wikiquote}}
[[pnb:گرو امر داس]]
 
[[tr:Guru Amar Das]]
[[श्रेणी:सिख धर्म]]
[[श्रेणी:भारतीय धार्मिक नेता]]
[[श्रेणी:सिख गुरु]]
[[श्रेणी:सिख धर्म का इतिहास]]