"विदुर": अवतरणों में अंतर

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"अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि वे आज से पाँचवे दिन अपने शरीर को त्याग देंगे। वन में अग्नि लग जाने के कारण वे उसी में भस्म हो जायेंगे। उनकी साध्वी पत्नी [[गांधारी]] भी उसी अग्नि में प्रवेश कर जायेंगी। फिर विदुर जी वहाँ से तीर्थयात्रा के लिये चले जायेंगे। अतः तुम उनके विषय में चिंता करना त्याग दो।" इतना कह कर देवर्षि नारद आकाशमार्ग से स्वर्ग के लिये प्रस्थान कर गये। युधिष्ठिर ने देवर्षि नारद के उपदेश को समझ कर शोक का परित्याग कर दिया।
 
== विदुर नीति क्या है? ==
महात्मा विदुर द्वारा कथितविदुर नीति में मानव कल्याण से जुड़ी नीतियों का जिक्र किया गया है। यह महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में ” उद्योग पर्व ” के नाम से विख्यात है। महाभारत काल के दौरान महात्मा विदुर और महाराज धृतराष्ट्र के बीच का संवाद विदुर नीति कहलाती है।
 
जहां महाभारत युद्ध से पहले महाराज धृतराष्ट्र विदुर से युद्ध के परिणाम संबंधी बिंदुओं पर चर्चा करते हैं। इस दौरान महात्मा विदुर ने महाराज धृतराष्ट्र को निम्न प्रकार की नीतिपरक बातों का ज्ञान दिया था-
 
# महात्मा विदुर के अनुसार, वह धन त्यागने योग्य है। जिसे अर्जित करने में धर्म का उल्लघंन करना पड़े, क्लेश हो या फिर शत्रु के आगे सर झुकना पड़े।
# व्यक्ति के मन में यदि काम, लोभ और क्रोध की उपस्थिति है, तो वह पराई स्त्री को छूने में, दूसरे का धन का हरण करने में और मित्रों का त्याग करने से कभी पीछे नहीं हटता है।
# किसी भी व्यक्ति पर आवश्यकता से अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए। विश्वास से उत्पन्न भय मूल उद्देश्य का नाश कर देता है।
# सद्गुण पंडित के लक्षण हैं – अच्छे कार्यों को करना, बुरे कार्यों का त्याग करना, ईश्वर पर भरोसा रखना और श्रद्धालु होना।
# संसार में ज्ञानी व्यक्ति वहीं है, जो अपना आदर सम्मान होने पर भी अत्यधिक खुशी और अपमान होने पर अधिक क्रोध नहीं व्यक्त करता है।<ref>{{Cite web|url=https://gurukul99.com/vidur-in-mahabharata|title=विदुर नीति - गुरूकुल९९|language=en-US|access-date=2021-08-24}}</ref>
 
==सन्दर्भ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/विदुर" से प्राप्त