"नेत्रविज्ञान": अवतरणों में अंतर
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2. देखने का अंग (Visual Apparatus), जिसमें वे भाग होते हैं जिनमें देखने की शक्ति होती है।
आँख का विशेष कार्य देखने का है। इसके लिए यह आवश्यक है कि आँख की गोलाकार आकृति स्थायी रूप से बनी रहे तथा नेत्र के वे सब आंतरिक अंग जिनसे किरणें गुजरती हैं, पारदर्शक बने रहें। नेत्रोद तथा विट्रियस गोलाकार आकृति को स्थायी रूप में रखते हैं। [[कॉर्निया]], [[नेत्रोद]], [[लेंस]] तथा [[विट्रियस]] नेत्र के वे आंतरिक अंग हैं जिनसे किरणें गुजरती हैं और [[दृष्टिपटल]] पर किसी वस्तु की छाया बनाने में सहायता करती हैं। आँख के इस कार्य को समझने के लिए, इसकी तुलना कैमरे से की जा सकती है। जिस प्रकार मैमरा चारों ओर से काला होता है तथा चित्र खींचते समय काले कपड़े से ढँक लिया जाता है उसी प्रकार आँख के दृष्टि पटल के चारों ओर एक काला पर्दा होता है, जिसे पिगमेंट एपीथिलियम (pigment epithelium) कहते हैं। कैमरे के प्लेट पर अच्छे फोटो बनने के लिए यह आवश्यक है कि कैमरे को फोकस किया जाए, परंतु आँख में यह कार्य स्वयं ही लेंस द्वारा होता रहता है, जो अपनी गोलाई को घटा बढ़ाकर किरणों को दृष्टिपटल पर फोकस करने में सहायता करता है। यदि हम चाहें तो कैमरे के छेद को (aperture) छोटा बड़ा करके रोशनी की मात्रा को कम अथवा अधिक कर सकते हैं। आँख में यह काम पुतली द्वारा किया जाता है, जो अपने आप सिकुड़कर छोटी अथवा बड़ी होती रहती है।
दृष्टिपटल पर जो छाया बनती है वह [[दृष्टि-तंत्रिका]] (opticnerve) से होती हुई मस्तिष्क में [[दृष्टिकेंद्र]] पर जाकर बनती है। यदि किसी प्रकार किरणें दृष्टिपटल पर इकट्ठी न होकर उसके सामने अथवा उसके पीछे इकट्ठी हों तो इसको [[वर्तनदोष]] (refractive error) कहते हैं, जो [[चश्मा]]
==सन्दर्भ==
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