"सत्कार्यवाद": अवतरणों में अंतर
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: ''असदकरणादुपादानग्रहणात् सर्वसम्भवाभावात् ।
: ''शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत्कार्यम् ॥ ९ ॥''<ref>{{Cite web|title=Ishvarakrishna's sAnkhyakArikA|url=http://sanskritdocuments.org/doc_z_misc_major_works/IshvarakRiShNasAnkyakArikA.pdf|url-status=live|archive-url=https://web.archive.org/web/20120223144612/http://www.sanskritdocuments.org/all_pdf/IshvarakRiShNasAnkyakArikA.pdf|archive-date=2012-02-23|access-date=2020-11-23|website=sanskritdocuments.org}}</ref>
: '''अर्थ''' :
# '''असदकारण''' : जिसका अस्तित्व नहीं है, उसे उत्पन्न नहीं किया जा सकता।▼
कार्य ‘सत्’ है अर्थात् कार्य अपने कारण में सदा विद्यमान है; क्योंकि
* असत् को सत् से उत्पन्न नहीं किया जा सकता,
* जिस कार्य की आवश्यकता होती है उसी कारण को ग्रहण करना पड़ता है,
* हर कार्य हर जगह विद्यमान नहीं होता,
* जो कारण जिस कार्य को उत्पन्न कर सकता है, वह उसी को उत्पन्न कर सकता है,
* कारण जिस प्रकार का होता है, कार्य भी उसी प्रकार का होता है,
# '''उपादानग्रहण''' : कुछ उत्पन्न करने के लिये सही उपादान (material) होना चाहिये।
# '''सर्वसम्भवाभाव''' : किसी वस्तु से सब कुछ उत्पन्न नहीं किया जा सकता। बालू से तेल न्हीं निकाला जा सकता।
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