"राव युधिष्ठिर सिंह": अवतरणों में अंतर

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'''राव युधिष्ठिर सिंह''' () [[राव तुलाराम]] के पुत्र एवं [[रेवाड़ी]] के शासक थे।
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राव तुलाराम के उत्तराधिकारी।
राव युधिष्ठिर का जन्म १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के समय हुआ था। जब वे लगभग २ माह के ही थे तभी रेवाड़ी राजपरिवर १८५७ के युद्ध में अंग्रेजों से लड़ रहा था। पिता महराज ने नन्हे बालक को ठिकाणा मलसेसर के सरदार राव दुल्हे सिंह की देख रेख में भिजवा दिया। जब नसीबपुर के युद्ध की घोषणा हुई तब बालक युधिष्ठिर सिंह, ठिकाणा बिहाली स्थित अपने नानाजी के यहां लाए गए थे। दुर्भाग्य से इस युद्ध में रेवाड़ी सेना की पराजय हुई अंग्रेज़ों ने रेवाड़ी राजवंश की सभी संपत्ति को कुर्क करना शुरू कर दिया गया।
 
इधर रेवाड़ी राजवंश के उत्तराधिकारी युधिष्ठिर सिंह की खोज में अंग्रेज़ी सरकार की खुफिया विभाग लगी थी ताकि जीवंत वंशज को समाप्त कर सकें। इसी कारण बालक को बिहाली के महल से सुरक्षित निकाल सटे जंगल की एक गुफा में लाया गया। यहां से इन्हे महाराजा राव तुला सिंह की दूसरी रानी के मायके ठिकाना गंडाला लाया गया।
 
संघर्षों की आग में तप कर बड़े हुए युवराज को पिता महाराज के स्वर्गवास के पश्चात रेवाड़ी के सिंहासन पर अभिषेक किया गया।
 
जैसा पुरोहितों ने इनका नामकरण किया राजा युधिष्ठिर सिंह बिल्कुल धर्मराज युधिष्ठिर जैसे महापुरुष का व्यक्तित्व रखते थे। रजा युधिष्ठिर सिंह भी अपने पूर्वजों की तरह एक न्यायप्रिय और बहादुर शासक सिद्ध हुए। 1873 में [[आर्य समाज]] के संस्थापक [[स्वामी दयानन्द सरस्वती]] का रेवाड़ी आगमन हुआ। स्वामी जी ने राव युधिष्ठिर सिंह को उनके महान पुर्वजों का स्मरण तथा उनके पुर्वज द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण का स्मरण कराते हुए उन्हें आर्य समाज के कल्याण के लिए सहायता करने को कहा।
इस प्रकार वर्ष 1874 में रेवाड़ी में राजा राव युधिष्ठिर सिंह के आदेश से [[गौशाला]] का शिलान्यास किया गया। राजा साहब ने स्वामी दयानन्द सरस्वती जी से ही गौशाला का शिलान्यास करवाया और गौशाला का नामकरण स्वामी जी के नाम पर "स्वामी दयानन्द सरस्वती गौशाला" रखा। यह गौशाला आज भी विद्यमान है और यहां आज भी हजारों गायों का पालन-पोषण किया जा रहा है।
 
राजा युधिष्ठिर सिंह जी ने शासन के दौरान सनातन हिंदू संस्कृति के लिए काफी कुछ किया। इन्होने [[गौरक्षा|गौ हत्या]] के रोकथाम के लिए "गौ रक्षण सभा" नामक एक विभाग भी बनवाया जिसमे कुल 70 सदस्य चयनित किए गए।
 
राजा युधिष्ठिर सिंह को उनकी धर्मपरायणता के कारण संतों ने "धर्ममंडप" और "गौ वंश रक्षक" की पदवी से भी विभूषित किया था।
 
[[श्रेणी:भारतीय शासक]]