"माधव कंदलि": अवतरणों में अंतर

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'''माधव कंदलि''' ([[असमिया]] : মাধৱ কন্দলী) [[असमी]] के प्रसिद्ध [[कवि]] थे। इनके कविताकालजीवनकाल के संबंधसम्बन्ध में इतिहासकारों तथा समालोचकों में अधिक मतभेद है। [[कनकलाल बरूवा]] के मतानुसार इनके आश्रयदाता वाराही नरेश कपिली उपत्यका के शासक थे और माधव कंदलि इन्हीं के राजकवि थे। इस प्रकार इनकी कविता का रचनाकाल 14वीं शती का उत्तरार्ध मालूम होता है। माधवचंद्र बरदलोई ने स्वसंपादित [[रामायण]] की भूमिका में इनकी कृति रामायण को 14वीं अथवा 15वीं शती की रचना और इन्हें नवगाँव का निवासी प्रमाणित किया है। [[श्रीमन्त शंकरदेव]] ने [[राम]]कथा के पदकर्ता माधव कंदलि की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उनकी तुलना गज से की है और कहा है कि वे स्वयं उनके सम्मुख शशक के समान लघु हैं। माधव कंदलि को लोग 'कविराज कंदलि' कहते थे। वर्तमान [[नवगाँवनगाँव जिला|नवगाँवनगाँव जिले]] के कंदलि नामक स्थान से अनेक प्रख्यात कंदलिकन्दलि ब्राह्मणों का संबंध था परंतुपरन्तु माधव कंदलिकन्दलि यहाँ के निवासी नहीं थे।
[[चित्र:WatPhraKeaw Ramayana Chariot.JPG|center|550px]]
वाराहराज श्री महामणिक्य के अनुरोध पर माधव कंदलि ने सर्वसाधारण के लिये सुबोध शैली में [[रामायण]] का पयारबद्ध अनुवाद किया (''रामायण सुपयार श्रीमहामणिक्य ये वाराह राजार अनुरोधे'')। माधव कंदलि के रामायण की सभी प्रतियों में आदिकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड नहीं मिलते, यद्यपि उन्होंने लंकाकाड के अन्त में रामायण के सात काण्डों का उल्लेख किया है ( ''सात कांडे रामायण पद बंधे निबंधिलो '')। कंदलि ने [[वाल्मीकि]] कृत [[रामायण]] को वेदों के समकक्ष रखा है। मूल कथा को अधिक रोचक बनाने के लिये यत्रतत्र सुंदरसुन्दर काव्यकल्पना का सहारा लिया है। 'देवजित्‌' इनकी दूसरी रचना है किन्तु प्रयोग एवं शैली की दृष्टि से यह किसी अन्य कवि की रचना प्रतीत होती है।
 
== संदर्भ ग्रंथ ==