"बालकृष्ण भट्ट": अवतरणों में अंतर

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| प्रमुख कृति = [[भट्ट निबंधावली]] [[समग्र संग्रह]]
| प्रभाव डालने वाला = भारतेंदुभारतेन्दु
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'''बालकृष्ण भट्ट''' (३ जून [[१८४४]]- [[२० जुलाई]] [[१९१४]]) [[हिन्दी]] के सफल पत्रकार, उपन्यासकार, [[नाटक]]कार और [[निबन्ध|निबंधकार]] थे। उन्हें आज की गद्य प्रधान कविता का जनक माना जा सकता है। हिन्दी गद्य साहित्य के निर्माताओं में उनका प्रमुख स्थान है।
 
भट्ट ब्राह्मण समुदाय के महापुरुषों में भी इनका विशिष्ट स्थान है, भट्ट शिरोमणि पंडित नारायण प्रसाद "बैताब" के बाद भट्ट जी का नाम लिया जाता है.
 
== जीवन परिचय ==
पंडित बालकृष्ण भट्ट के पिता का नाम पं॰ वेणी प्रसाद था। स्कूल में दसवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भट्ट जी ने घर पर ही [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] का अध्ययन किया। संस्कृत के अतिरिक्त उन्हें [[हिन्दी|हिंदी]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान हो गया। भट्ट जी स्वतंत्र प्रकृति के व्यक्ति थे। उन्होंने व्यापार का कार्य किया तथा वे कुछ समय तक [[कायस्थ पाठशाला, प्रयाग|कायस्थ पाठशाला]] प्रयाग में [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के अध्यापक भी रहे किन्तु उनका मन किसी में नहीं रमा। [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] जी से प्रभावित होकर उन्होंने [[हिन्दी|हिंदी-]][[साहित्य]] सेवा का व्रत ले लिया। भट्ट जी ने '''[[हिन्दी प्रदीप]]''' नामक मासिक पत्र निकाला। इस पत्र के वे स्वयं संपादक थे। उन्होंने इस पत्र के द्वारा निरंतर ३२ वर्ष तक हिंदी की सेवा की। [[नागरीप्रचारिणी सभा|काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] द्वारा आयोजित [[हिंदी शब्दसागर]] के संपादन में भी उन्होंने [[श्यामसुन्दर दास|बाबू श्याम सुंदर दास]] तथा [[रामचन्द्र शुक्ल|शुक्ल जी]] के साथ कार्य किया।
 
उनका जन्म [[इलाहाबाद|प्रयाग]] के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। भट्ट जी की माता अपने पति की अपेक्षा अधिक पढ़ी-लिखी और विदुषी थीं। उनका प्रभाव बालकृष्ण भट्ट जी पर अधिक पड़ा। भट्ट जी मिशन स्कूल में पढ़ते थे। वहाँ के प्रधानाचार्य एक ईसाई पादरी थे। उनसे वाद-विवाद हो जाने के कारण इन्होंने मिशन स्कूल जाना बंद कर दिया। इस प्रकार वह घर पर रह कर ही [[संस्कृत]] का अध्ययन करने लगे। वे अपने सिद्धान्तों एवं जीवन-मूल्यों के इतने दृढ़ प्रतिपादक थे कि कालान्तर में इन्हें अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण मिशन स्कूल तथा [[कायस्थ पाठशाला]] के संस्कृत अध्यापक के पद से त्याग-पत्र देना पड़ा था। जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने कुछ समय तक व्यापार भी किया परन्तु उसमें इनकी अधिक रुचि न होने के कारण सफलता नहीं मिल सकी। आपकी अभिरुचि आरंभ से ही साहित्य सेवा में थी। अत:अतः सेवा-वृत्ति को तिलांजलि देकर वे यावज्जीवन हिन्दी साहित्य की सेवा ही करते रहे।
 
=== कार्यक्षेत्र ===
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== शैली ==
भट्ट जी की लेखन - शैली को भी दो कोटियों में रखा जा सकता है। प्रथम कोटि की शैली को परिचयात्मक शैली कहा जा सकता है। इस शैली में उन्होंने कहानियाँ और उपन्यास लिखे हैं। द्वितीय कोटि में आने वाली शैली गूढ़ और गंभीर है। इस शैली में भट्ट जी को अधिक नैपुण्य प्राप्त है। आपने "आत्म-निर्भरता" तथा "कल्पना" जैसे गम्भीर विषयों के अतिरिक्त, "आँख", "नाक", तथा "कान", आदि अति सामान्य विषयों पर भी सुन्दर निबंध लिखे हैं। आपके निबंधों में विचारों की गहनता, विषय की विस्तृत विवेचना, गम्भीर चिन्तन के साथ एक अनूठापन भी है। यत्र-तत्र व्यंग्य एवं विनोद उनकी शैली को मनोरंजक बना देता है। उन्होंने [[हास्य]] आधारित लेख भी लिखे हैं, जो अत्यन्त शिक्षादायक हैं। भट्ट जी का गद्य गद्य न होकर गद्यकाव्य सा प्रतीत होता है। वस्तुत:वस्तुतः आधुनिक कविता में पद्यात्मक शैली में गद्य लिखने की परंपरापरम्परा का सूत्रपात श्री बालकृष्ण भट्ट जी ने ही किया था। उन्हेंउनकी भाषा-शैली के निम्नलिखित रूप मिलते हैं-
 
* १. '''वर्णनात्मक शैली'''- वर्णनात्मक शैली में भट्ट जी ने व्यावहारिक तथा सामाजिक विषयों पर निबंध लिखे हैं। जन साधारण के लिए भट्ट जी ने इसी शैली को अपनाया। उनके उपन्यास की शैली भी यही है, किंतु इसे उनकी प्रतिनिधि शैली नहीं कहा जा सकता।
* १. '''वर्णनात्मक शैली'''- वर्णनात्मक शैली में भट्ट जी ने व्यावहारिक तथा सामाजिक विषयों पर निबंध लिखे हैं। जन साधारण के लिए भट्ट जी ने इसी शैली को अपनाया। उनके उपन्यास की शैली भी यही है, किंतु इसे उनकी प्रतिनिधि शैली नहीं कहा जा सकता। इस शैली की भाषा सरल और मुहावरेदार है। वाक्य कहीं छोटे और कहीं बड़े हैं।
 
* २. '''विचारात्मक शैली'''- भट्ट जी द्वारा गंभीर विषयों पर लिखे गए निबंध इसी शैली के अंतर्गत आते हैं। तर्क और विश्वास, ज्ञान और भक्ति, संभाषण आदि निबंध विचारात्मक शैली के उदाहरण हैं। इस शैली की भाषा में संस्कृत के शब्दों की अधिकता है।
इस शैली की भाषा में संस्कृत के शब्दों की अधिकता है।
 
* ३. '''भावात्मक शैली'''- इस शैली का प्रयोग भट्ट जी ने साहित्यिक निबंधों में किया है। इसे भट्ट जी की प्रतिनिधि शैली कहा जा सकता है।
इस शैली में शुद्ध हिंदी का प्रयोग हुआ है। भाषा प्रवाहमयी, संयत और भावानुकूल है।
इस शैली में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग भी हुआ है। अलंकारों के प्रयोग से भाषा में विशेष सौंदर्य आ गया है। भावों और विचार के साथ कल्पना का भी सुंदर समन्वय हुआ। इसमें गद्य काव्य जैसा आनंद होता है। चंद्रोदय निबंध का एक अंश देखिए-
: ''यह गोल-गोल प्रकाश का पिंड देख भाँति-भाँति की कल्पनाएँ मन में उदय होती है कि क्या यह निशा अभिसारिका के मुख देखने की आरसी है या उसके कान का कुंडल अथवा फूल है यह रजनी रमणी के ललाट पर दुक्के का सफ़ेद तिलक है।''
 
* ४. '''व्यंग्यात्मक शैली'''- इस शैली में हास्य और व्यंग्य की प्रधानता है। विषय के अनुसार कहीं व्यंग्य अत्यंत मार्मिक और तीखा हो गया है। इस शैली की भाषा में उर्दू शब्दों की अधिकता है और वाक्य छोटे-छोटे हैं।
इस शैली की भाषा में उर्दू शब्दों की अधिकता है और वाक्य छोटे-छोटे हैं।
 
==साहित्य सेवा और स्थान==
भारतेंदु काल के निबंध-लेखकों में भट्ट जी का सर्वोच्च स्थान है। उन्होंने पत्र, नाटक, काव्य, निबंध, लेखक, उपन्यासकार अनुवादक विभिन्न रूपों में हिंदी की सेवा की और उसे धनी बनाया।
 
साहित्य की दृष्टि से भट्ट जी के निबंध[[निबन्ध]] अत्यंतअत्यन्त उच्चकोटि के हैं। इस दिशा में उनकी तुलना अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध निबंधकार चार्ल्स लैंब से की जा सकती है। गद्य काव्य की रचना भी सर्वप्रथम भट्ट जी ने ही प्रारम्भ की। इनसे पूर्वक हिंदी में गद्य काव्य का नितान्त अभाव था। बालकृष्‍ण भट्ट की प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन साहित्‍य अकादमी ने 'बालकृष्‍ण भट्ट : रचना संचयन' नाम से प्रकाशित किया है।
गद्य काव्य की रचना भी सर्वप्रथम भट्ट जी ने ही प्रारंभ की। इनसे पूर्वक हिंदी में गद्य काव्य का नितांत अभाव था। बालकृष्‍ण भट्ट की प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन साहित्‍य अकादमी ने 'बालकृष्‍ण भट्ट : रचना संचयन' नाम से प्रकाशित किया है।
 
== बाहरी कड़ियाँ==