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'''भावविवेक''' या '''भाव्य''' (तिब्बती भाषा : slob-dpon bha-vya or skal-ldan/legs-ldan, c.500-c.578), [[बौद्ध धर्म]] के [[माध्यमक शाखा]] के स्वतंत्रिक परम्परा के संस्थापक [[दार्शनिक]] थे। वे भावविवेक, भाविवेक और भव्य - इन तीनों नामों से ये ख्यात थे । एम्स (Ames 1993: p. 210), का विचार है कि भावविवेक उन प्रथम तर्कशास्त्रियों में से हैं जिन्होने 'प्रयोग-वाक्य' के रूप में विधिवत उपपत्ति (formal syllogism) का प्रयोग किया।
 
भावविवेक, भाविवेक और भव्य - इन तीनों नामों से ये ख्यात थे । इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] भाषा में की है । दुर्भाग्य से इनकी एक भी मूल रचना सम्प्रति उपलब्ध नहीं है, परन्तु [[तिब्बती भाषा|तिब्बती]] और [[चीनी भाषा]] में इनका अनुवाद उपलब्ध है । इनकी चार रचनाएँ उपलब्ध हैं -
 
(1) माध्यमिककारिका व्याख्या - यह नागाजुर्न के ग्रन्थों की व्याख्या है ।