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'''ब्रह्म''' (संस्कृत : ब्रह्मन्) [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] (वेद परम्परा, [[वेदान्त दर्शन|वेदान्त]] और [[उपनिषद्|उपनिषद]]) दर्शन में इस सारे विश्व का परम सत्य है और जगत का सार है। वो दुनिया की [[आत्मा]] है। वो विश्व का कारण है, जिससे विश्व की उत्पत्ति होती है , जिसमें विश्व आधारित होता है और अन्त मेंपरब्रह्ममें याजिसमें परम-ब्रह्मविलीन ब्रह्महो काजाता है। वो रूप है, जो निर्गुणएक और अनन्त गुणों वाला भीअद्वितीय है। "[[नेति-नेति]]"वो करकेस्वयं इसकेही गुणों का खण्डन किया गयापरमज्ञान है, परऔर येप्रकाश-स्त्रोत असलकी में अनन्त सत्य, अनन्त चित और अनन्ततरह आनन्दरोशन है। [[अद्वैतवो वेदान्त]] में उसे ही [[परमात्मा]] कहा गया हैनिराकार, ब्रह्म ही सत्य हैअनन्त, बाकिनित्य सबऔर मिथ्याशाश्वत है। वह ब्रह्म हीसर्वशक्तिमान जगतऔर का नियन्तासर्वव्यापी है। परन्तु अद्वैत वेदांत का एक मत है इसी प्रकार वेदांत के अनेक मत है जिनमें आपसी विरोधाभास है परंतु अन्य पांच दर्शन शास्त्रों मेंं कोई विरोधाभास नहीं | वहींं अद्वैत मत जिसका एक प्रचलित श्लोक नीचे दिया गया है-
 
मनुष्य का जन्म होता है तो जन्म क्षण में ही उसके हृदय में चैतन्य मन से होते हुऐ अवचेतन मन से होते हुऐ अंतर्मन से होते हुऐ मन से होते हुए मस्तिष्क में चेतना प्रवेश करती हैं वही आत्मा है और ये आत्मा किसी मनुष्य की मृत्यु हुई थी तो उसकी चेतना अर्थात आत्मा अपने मन से होते हुऐ अंतर्मन से होते हुए अवचेतन मन से होते हुऐ चैतन्य मन से होते हुऐ दूसरे शरीर में अवचेतन मन से होते हुऐ अंतर्मन से होते हुऐ मन से होते हुए मस्तिष्क में पहुंचती है यही क्रम हर जन्म में होता है ।
 
जब मनुष्य जागता है तो उसके ह्रदय से ऊर्जाओं का विखण्डन होते जाता है सबसे पहले ह्रदय में प्राण शक्ति जिसे ब्रह्म कहते है उसे अव्याकृत ब्रह्म अर्थात सचेता ऊर्जा बनती है वह सचेता ऊर्जा से नाद ब्रह्म बनता है अर्थात अंतर्मन का निर्माण होता है जिसे ध्वनि उत्पन्न होती है फिर उसे व्याकृत ब्रह्म बनता है मस्तिष्क में चेतना उत्पन्न हो जाती है फिर उस चेतना से पंचमहाभूत बनते है जिसे ज्योति स्वरूप ब्रह्म कहते है सम्पूर्ण शरीर के होने का एहसास होता है फिर मनुष्य कर्म क्रिया प्रतिक्रिया करता है संसार में। अगर सोता है तो मनुष्य ज्योति स्वरूप ब्रह्म चेतना अर्थात व्याकृत ब्रह्म मे समा जाता है फिर वह नाद ब्रह्म में समा जाता है फिर वह नाद ब्रह्म अव्याकृत ब्रह्म समा जाता है वह अव्याकृत ब्रह्म प्राण ऊर्जा अर्थात ब्रह्म में समा जाता है इसलिए मनुष्य ही ब्रह्म है ।
 
ब्रह्म को मन से जानने कि कोशिश करने पर मनुष्य योग माया वश उसे परम् ब्रह्म की परिकल्पना करता है और संसार में खोजता है तो अपर ब्रह्म जो प्रचीन प्रर्थना स्थल की मूर्ति है उसे माया वश ब्रह्म समझ लेता है अगर कहा जाऐ तो ब्रह्म को जाने की कोशिश करने पर मनुष्य माया वश उसे परमात्मा समझ लेता है ।
 
ब्रह्म जब मनुष्य गरही निद्रा में रहता है तो वह निर्गुण व निराकार ब्रह्म में समा जाऐ रहता है और जब जागता है तो वह सगुण साकार ब्रह्म में होता है अर्थात यह विश्व ही सगुण साकार ब्रह्म है ।
 
ब्रह्म मनुष्य है सभी मनुष्य उस ब्रह्म के प्रतिबिम्ब अर्थात आत्मा है सम्पूर्ण विश्व ही ब्रह्म है जो शून्य है वह ब्रह्म है मनुष्य इस विश्व की जितना कल्पना करता है वह ब्रह्म है ।
ब्रह्म स्वयं की भाव इच्छा सोच विचार है ।
ब्रह्म सब कुछ है और जो नहीं है वह ब्रह्म है ।
 
==परब्रह्म==
परब्रह्म या परम-ब्रह्म ब्रह्म का वो रूप है, जो निर्गुण और अनन्त गुणों वाला भी है। "[[नेति-नेति]]" करके इसके गुणों का खण्डन किया गया है, पर ये असल में अनन्त सत्य, अनन्त चित और अनन्त आनन्द है। [[अद्वैत वेदान्त]] में उसे ही [[परमात्मा]] कहा गया है, ब्रह्म ही सत्य है, बाकि सब मिथ्या है। वह ब्रह्म ही जगत का नियन्ता है। परन्तु अद्वैत वेदांत का एक मत है इसी प्रकार वेदांत के अनेक मत है जिनमें आपसी विरोधाभास है परंतु अन्य पांच दर्शन शास्त्रों मेंं कोई विरोधाभास नहीं | वहींं अद्वैत मत जिसका एक प्रचलित श्लोक नीचे दिया गया है-
: ''ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रम्हैव नापरः''
: (ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या (झूठ) है।)
 
==अपरब्रह्म==
अपरब्रह्म ब्रह्म का वो रूप है, जिसमें अनन्त शुभ गुण हैं। वो पूजा का विषय है, इसलिये उसे ही [[ईश्वर]] माना जाता है। [[अद्वैत वेदान्त]] के मुताबिक ब्रह्म को जब इंसान मन और बुद्धि से जानने की कोशिश करता है, तो ब्रह्म [ज्ञान[माया]] की वजह से ईश्वर हो जाता है।
 
==इन्हें भी देखें==
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[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
 
{{आधार}}
परमात्मा एक ऊर्जा है
जैसे की नानक देव जी काजी रुकुनुदीन को बताते है कि वह परमात्मा कोन हां
नानक आके रुकुनुद्दीन सच्चा सुनो जवाब
चारो खूंट सलाम कर ता तोए होय सबब
खालिक आदम सिरजिया आलम बड़ा कबीर
कायम दायम कुदरती सिर पीरांदे पीर
तिस बिच आलम बहुत है आबे जाए अनंत
यू आलम बड़ा सलामती जिसका कोई न पावे अंत
चर्ख फिरे आसमान बिच रेन दिवस के माहीं
जीव फिर या उमती लाख चौरासी माहीं
 
वहीं गरीब दास जी महाराज कहते
कबीर परमात्मा सबसे बड़ा है
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दोहा गरीब लख लख योजन उड़त हैं सुर नर मुनि जन संत
ऊंचा धाम कबीर का कोई न पावे अंत
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ओहम सोहम जप ले भाई राम नाम की यही कमाई
दोहा
परमात्मा गुरु निकट बिराजे जागु जागु मन मेरे धाइके सत गुरु चरणने लगो काल खड़ा सिर तेरे
कबीर जी कहते है की
हम ही अल्हख अल्ला हैं हम ही कुतुब गोस और पीर
गरीब दास खालिक धनी हमरा नाम कबीर
इस हिसाब से
पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ही हैं