No edit summary
Kritiya
टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 20:
नारायण गुरु [[मूर्तिपूजा]] के विरोधी थे। लेकिन वह ऐसे मंदिर बनाना चाहते थे, जहां कोई मूर्ति ही न हो। वह [[राजा राममोहन राय]] की तरह मूर्तिपूजा का विरोध नहीं कर रहे थे। वह तो अपने ईश्वर को आम आदमी से जोड़ना चाह रहे थे। आम आदमी को एक बिना भेदभाव का ईश्वर देना चाहते थे।
 
महत्त्वपूर्ण कार्य:
==कृतियाँ==
; दार्शनिक कृतियाँ
 
जातिगत अन्याय के खिलाफ:
:: आत्मोपदेशशतकं
:: दैवदशकं
:: दर्शनमाल
:: अद्वैतदीपिक
:: अऱिव्
:: ब्रह्मविद्यापंचकं
:: निर्वृतिपंचकं
:: श्लोकत्रयी
:: होममन्त्रं
:: वेदान्तसूत्रं
 
उन्होंने "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर" (ओरु जति, ओरु माथम, ओरु दैवम, मानुष्यानु) का प्रसिद्ध नारा दिया।
; प्रबोधन
 
उन्होंने वर्ष 1888 में अरुविप्पुरम में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनाया, जो उस समय के जाति-आधारित प्रतिबंधों के खिलाफ था।
:: जातिनिर्ण्णयं
:: मतमीमांस
:: जातिलक्षणं
:: सदाचारं
:: जीवकारुण्यपंचकं
:: अनुकम्पादशकं
:: धर्म्म
:: आश्रमं
:: मुनिचर्यापंचकं
 
उन्होंने एक मंदिर कलावन्कोड (Kalavancode) में अभिषेक किया और  मंदिरों में मूर्तियों की जगह दर्पण रखा। यह उनके इस संदेश का प्रतीक था कि परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है।
; गद्य
 
धर्म-परिवर्त्तन का विरोध:
:: गद्यप्रार्त्थन
:: दैवचिन्तनं
:: दैवचिन्तनं
:: आत्मविलासं
:: चिज्जढचिन्तकं
 
उन्होंने लोगों को समानता की सीख दी, उन्होंने इस बात को महसूस किया कि असमानता का उपयोग धर्म परिवर्तन के लिये नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि इससे समाज में अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है।
; अनुवाद
 
श्री नारायण गुरु ने वर्ष 1923 में अलवे अद्वैत आश्रम (Alwaye Advaita Ashram) में एक सर्व-क्षेत्र सम्मेलन का आयोजन किया, जिसे भारत में इस तरह का पहला कार्यक्रम बताया जाता है। यह एझावा समुदाय में होने वाले धार्मिक रूपांतरणों को रोकने का एक प्रयास था।
:: ईशावास्योपनिषत्त्
:: तिरुक्कुऱळ्
:: ऒटुविलॊऴुक्कं
 
श्री नारायण गुरु का दर्शन:
;स्तोत्र
 
श्री नारायण गुरु बहुआयामी प्रतिभा, महान महर्षि, अद्वैत दर्शन के प्रबल प्रस्तावक, कवि और एक महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे।
* शिवस्तोत्र
 
:: शिवप्रसादपंचकं
साहित्यिक रचनाएँ:
:: सदाशिवदर्शनं
 
:: शिवशतकं
उन्होंने विभिन्न भाषाओं में अनेक पुस्तकें लिखीं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं: अद्वैत दीपिका, असरमा, थिरुकुरल, थेवरप्पाथिंकंगल आदि।
:: अर्द्धनारीश्वरस्तवं
 
:: मननातीतं (वैराग दशकं)
राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान:
:: चिज्जढ चिन्तनं
 
:: कुण्डलिनीपाट्ट्
श्री नारायण गुरु मंदिर प्रवेश आंदोलन में सबसे अग्रणी थे और अछूतों के प्रति सामाजिक भेदभाव के खिलाफ थे।
:: इन्द्रियवैराग्यं
 
:: शिवस्तवं (प्रपंचसृष्टि)
श्री नारायण गुरु ने वयकोम सत्याग्रह (त्रावणकोर) को गति प्रदान की। इस आंदोलन का उद्देश्य निम्न जातियों को मंदिरों में प्रवेश दिलाना था। इस आंदोलन की वजह से  महात्मा गांधी सहित सभी लोगों का ध्यान उनकी तरफ गया।
:: कोलतीरेशस्तवं
 
:: स्वानुभवगीति (विभूदर्शनं)
उन्होंने अपनी कविताओं में भारतीयता के सार को समाहित किया और दुनिया की विविधता के बीच मौजूद एकता को रेखांकित किया। 
:: पिण्डनन्दि
 
:: चिदंबराष्टकं
विज्ञान में योगदान:
:: तेवारपतिकंकळ्
 
* सुब्रह्मण्यस्तोत्र
श्री नारायण गुरु ने स्वच्छता, शिक्षा, कृषि, व्यापार, हस्तशिल्प और तकनीकी प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया।
:: षण्मुखस्तोत्रं
 
:: षण्मुखदशकं
श्री नारायण गुरु का अध्यारोप (Adyaropa) दर्शनम् (दर्शनमला) ब्रह्मांड के निर्माण की व्याख्या करता है।
:: षाण्मातु रस्तवं
 
:: सुब्रह्मण्य कीर्त्तनं
 इनके दर्शन में  दैवदशकम् (Daivadasakam) और आत्मोपदेश शतकम् (Atmopadesa Satakam) जैसे कुछ उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि कैसे रहस्यवादी विचार तथा अंतर्दृष्टि वर्तमान की उन्नत भौतिकी से मिलते-जुलते हैं।
:: नवमंजरि
 
:: गुहाष्टकं
दर्शन की वर्तमान प्रासंगिकता: 
:: बाहुलेयाष्टकं
 
:: देवीस्तोत्रंङळ्
श्री नारायण गुरु की सार्वभौमिक एकता के दर्शन का समकालीन विश्व में मौजूद देशों और समुदायों के बीच घृणा, हिंसा, कट्टरता, संप्रदायवाद तथा अन्य विभाजनकारी प्रवृत्तियों का मुकाबला करने के लिये विशेष महत्त्व है।
:: देवीस्तवं
 
:: मण्णन्तल देवीस्तवं
मृत्यु:
:: काळीनाटकं
 
:: जननीनवरत्नमंजरि
श्री नारायण गुरु की मृत्यु 20 सितंबर, 1928 को हो गई। केरल में यह दिन श्री नारायण गुरु समाधि (Sree Narayana Guru Samadhi) के रूप में मनाया जाता है।
:: भद्रकाळी अष्टकं
* विष्णुस्तोत्र
:: श्री वासुदेवाष्टकं
:: विष्ण्वष्टकं
 
== इन्हें भी देखें ==