"पतञ्जलि योगसूत्र": अवतरणों में अंतर

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== अष्टाङ्ग योग - योग के आठ अंग ==
महर्षि पतंजलि ने योग को ''''चित्त की वृत्तियों के निरोध'''' के रूप में परिभाषित किया है। योगसूत्र में उन्होंने पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए '''आठ अंगों वाले योग''' का एक मार्ग विस्तार से बताया है। अष्टांग, आठ अंगों वाले, योग को आठ अलग-अलग चरणों वाला मार्ग नहीं समझना चाहिए; यह आठ आयामों वाला मार्ग है जिसमें आठों आयामों का अभ्यास एक साथ किया जाता है। योग के ये आठ अंग हैं
:''योगाङ्गानुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्ति राविवेकख्याते: ॥२८॥
अर्थः-योगाङ्गानुष्ठानात् = यम, नियम इत्यादि अष्टविध योग के अंगों का अनुष्ठान या आचरण करने से अशुद्धिक्षये= चित्तगत सभी दोषों का, पञ्चविध क्लेशों का अभाव होने से आविवेकख्यातेः:= विवेकख्याति (प्रकृति-पुरुष-भेद ज्ञान) के उदय पर्यन्त ज्ञानदीप्तिः = ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है। योग के अंगों के सतत सेवन करने से चित्तवृत्तियों का निरोध हो जाता है, चित्त का विक्षेप नहीं होता। अविद्या-अस्मिता इत्यादि क्लेशों की निवृत्ति हो जाने से ज्ञान के आलोक की प्राप्ति होती है ।
= योग के अङ्ग जो आगे वर्णन किये जाने वाले है, उन योग-अंगों के अनुष्ठान से, ज्ञानपूर्वक अभ्यास से, सतत सेवन करने से विवेक ज्ञान के उत्पन्न होने तक सभी प्रकार की अशुद्धियों का विनाश हो जाने से अर्थात् सत्वगुण बहुल चित्त के ज्ञान का आवरण करने वाले अविद्या-अस्मिता-राग-द्वेष-अभिनिवेश रुप पञ्चविध क्लेश रूपी अशुद्धियों के अभाव हो जाने से जो ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है अर्थात् विवेक ज्ञान के उदय होने तक क्रमशः रजोगुण एवं तमोगुण से अनभिभूत प्रकाशात्मक सत्त्वगुणविशिंष्ट चित्त्त का परिणाम होता है अर्थात् योगाङ्गों के अनुष्ठान से पञ्चविध क्लेशों का अभाव हो जाता है और दोष रहित विमल चित्त का केवल सात्त्विक परिणाम होता है। इस तरह ज्ञान के आलोक की प्राप्ति होती है। उस विवेकख्याति (प्रकृतिपुरुषविवेकज्ञान का) योगाङ्ग के अभ्यास से सात्त्विक परिणाम को प्राप्त होने वाला चित्त कारण है । इति अर्थः = यह अभिप्राय है ॥ २८ ॥
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यम शब्द के द्वारा कह जाने वाले ये अहिंसा इत्यादि (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह- पाँच) योग सिद्धि में अङ्ग, सहायक रूप से वर्णन किये गये हैं
:''जाति-देश-काल-समयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ॥३१॥
अर्थः- जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः = अहिंसा-सत्य-अस्तेय-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह नामक पाँचों यम, ब्राह्मणत्व आदि जाति, तीर्थ आदि देश, एकादशी-चतुर्दशी इत्यादि काल एवं ब्राह्मण भोजन इत्यादि समय है। इन जाति-काल-देश-समय चारों के अनवच्छिन्न अर्थात् इनके प्रतिबन्ध, सीमा से रहित सभी भूमि, अवस्थाओं में होने वाले महाव्रत हो जाते हैं अर्थात् जाति-देश-काल-समय की परिधि से रहित पालन किये जाने पर यम ही महाव्रत हो जाते हैं ।
= ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व इत्यादि जाति हैं। तीर्थ इत्यादि स्थान देश हैं, चतुर्दशी, एकादशी इत्यादि काल है। ब्राह्मण प्रयोजन इत्यादि समय है- इन जाति-देश-काल-समय चारों से न घिरे हुए, न रोके गये पूर्वोक्त (पहले वर्णन किये गये) अहिंसा इत्यादि (अहिंसा-सत्य-अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रह) यम है। सभी क्षिप्त इत्यादि, (क्षिप्त -मूढ़-विक्षिप्त-एकाग्र-निरुद्ध) चित्त की भूमियों में होने वाले, पालन किये जाने पर 'महाव्रत' इस रूप, नाम से कहे जाते है। जैसे कि ब्राह्मण का वध नहीं करूँगा। तीर्थ स्थान में किसी को नहीं मारूंगा। चतुर्दशी तिथि-काल में किसी का वध नहीं करूँगा। देव तथा ब्राह्मण के उद्देश्य के बिना, देव तथा ब्राह्मण के प्रयोजन के अतिरिक्त अर्थात् इनसे भिन्न प्रयोजन में किसी भी जीव की हिंसा नहीं करूँगा। इस प्रकार चार प्रकार के बाधकों के बिना, इन चार प्रकार के विधान रूप बाधाओं या सीमाओं के अभाव में किसी प्राण को किसी भी स्थान पर किसी भी काल में किसी प्रयोजन के लिए किसी का वध नहीं करूँगा। इस रूप से, यहाँ जाति-देश-काल-समय की सीमा से रहित, निस्सीम अहिंसा का पालन है; अतएव यह महाव्रत है। इसी प्रकार सत्य इत्यादि में अर्थात् सत्य-अस्तेय-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह में सम्बन्ध के अनुसार सम्बन्ध के अनुसार संयोजना, सम्बन्ध जोड़ना चाहिए इस प्रकार से विना निश्चय किए गए, सीमा से न बँधे हुए, नियंत्रित न किये गए सामान्य, साधारण, स्वाभाविक रूप से ही प्रवृत्त हुये, पालन किये गये, अहिंसा इत्यादि यम ही महाव्रत इस रूप, नाम से कहे जाते हैं। फिर दूसरी आवरण सीमा को न ग्रहण करना ही, इस रूप से पालन किए गये अहिंसा इत्यादि यम की ही संज्ञा महाव्रत है (॥३१॥ पातञ्जल योगसूत्र साधनपाद)
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३. '''आसन''': योगासनों द्वारा शारीरिक नियंत्रण।
:'' स्थिरसुखमासनम् ॥ ४६ ॥
अर्थः-स्थिरसुखं= स्थिर भाव से, निश्चल रूप से तथा सुखपूर्वक बैठने को, आसनं = आसन कहते हैं। अथवा जिसके द्वारा स्थिरता तथा सुख की प्राप्ति हो, वह आसन है।
इसके द्वारा स्थिरभाव से तथा सुखपूर्वक बैठा जाता है इसलिये इसे आसन कहते हैं। यथा- पद्मासन, दण्डासन, स्वस्तिकासन इत्यादि।
 
 
४. '''प्राणायाम''': श्वास-लेने सम्बन्धी खास तकनीकों द्वारा प्राण पर नियंत्रण
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'''[[योगभाष्य]]''' : परम्परानुसार [[वेद व्यास]] इसके रचयिता माने जाते हैं। इसका रचना-काल 200-400 ईसा पूर्व का माना जाता है। यह योगसूत्र का सबसे पुराना भाष्य है। यह कहना कठिन है कि योगभाष्य अलग रचना है या योगसूत्र का पतञ्जलि द्वारा ही रचित अभिन्न अंग।<ref>Bryant, Edwin F. The Yoga Sutras of Patañjali: A New Edition, Translation, and Commentary; Introduction</ref>
 
 
'''[[तत्त्ववैशारदी]]''' : पतंजलि योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रामाणिक व्याख्याकार के रूप में [[वाचस्पति मिश्र]] का 'तत्त्ववैशारदी' प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्र एवं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पश्चात माना जाता है।
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'''योगमणिप्रभा''' : रमानन्द सरस्वती (१६वीं शताब्दी)
 
== पतंजलि योग सूत्र का कुछ हिंदी अनुवादित पुस्तक ==
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‌* पतंजल योग सूत्र योग दर्शन श्री नन्दलाल दशोरा
 
‌* पातञ्जलयोगदर्शनम् स्वामी हरिहरानंद आरणय, कपिल आश्रम
आश्रम
 
‌* पातंजल योग प्रदीप श्री ओमानन्द महाराज,गीता प्रेस
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तीव्र संवेग के भी मृदु मध्य तथा अधिमात्र, यह तीन भेद होने से, अधिमात्र संवेग वाले को समाधि लाभ में विशेषता है ॥२२॥<br>
 
या सब ईश्वर पर छोड़ देने से ॥२३॥ (ईश्वर प्रणिधान)<br>
 
अविद्या अस्मिता राग द्वेष तथा अभिनिवेष यह पाँच क्लेश कर्म, शुभ तथा अशुभ, फल, संस्कार आशय से परामर्श में न आने वाला, ऐसा परम पुरुष, ईश्वर है ॥२४॥<br>
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*[[हठयोगप्रदीपिका]]
*[[भोजवृत्ति]]
*https://web.archive.org/web/20190420013103/https://www.myyogasutra.in/
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
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* [https://web.archive.org/web/20100916174222/http://artoflivingyoga.org/hn/ योग] (प्रचुर सामग्री; आर्ट ऑफ लिविंग के जालघर पर)
* [https://web.archive.org/web/20110303120843/http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2007/11/071122_yoga_israel.shtml हिब्रू भाषा में योग सूत्र का अनुवाद] (बीबीसी हिन्दी)
* [https://hindi-main-yoga.blogspot.com/2020/01/yoga-sutras-of-patanjali-in-hindi.html पतंजलि के योग सूत्र ]
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[https://hindi-main-yoga.blogspot.com/2020/01/yoga-sutras-of-patanjali-in-hindi.html पतंजलि के योग सूत्र ]
 
{{योग}}