"भारत की न्यायपालिका": अवतरणों में अंतर

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==न्यायपालिका का भारतीयकरण==
सितम्बर २०२१ में भारत के मुख्य न्यायधीश ने कहा कि भारतीय न्यायव्यवस्था के भारतीयकरण की महती आवश्यकता है।<ref>[https://www.newsnationtv.com/india/news/indianiation-of-legal-ytem-i-the-need-of-the-hour-cji-ramana-211639.html हमारी कानूनी प्रणाली का भारतीयकरण किया जाना समय की जरूरत : मुख्य न्यायधीश वेंकटरमण]</ref>
इसी तरह, दिसम्बर २०२१ में न्यायमूर्ति नजीर अहमद ने कहा कि मनु, कौटिल्य आदि प्राचीन धर्मशास्त्रियों (विधिचिन्तकों) की उपेक्षा करना और औपनिवेशिक व्यवस्था से चिपके रहना हमारे संवैधानिक लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधक है।<ref>[https://www.livelaw.in/top-stories/justice-abdul-nazeer-ancient-indian-jurisprudence-manu-kautilya-colonial-legal-system-188437?infinitescroll=1 Neglect Of Ancient Indian Legal Giants Like Manu, Kautilya & Adherence To Colonial Legal System Detrimental To Constitutional Goals] : Justice Abdul Nazeer</ref>
 
हमारे यहां की छोटी-बड़ी सभी अदालतों में करीब साढ़े तीन करोड़ मुकदमे लटके हुए हैं। एक-एक मुकदमे को निपटाने में दस-दस, पंद्रह-पंद्रह साल लग जाते हैं। इसका मुख्य कारण है - अंग्रेजी का एकाधिकार। हमारे सारे कानून अंग्रेजी में और अंग्रेजी राज की जरूरतों के मुताबिक बने हुए हैं। अपने नागरिकों को वास्तविक अर्थों में न्याय दिलाने के लिए इस समूची न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण किया जाना बहुत जरूरी है। ऐसा करने से न्याय व्यवस्था न सिर्फ सस्ती होगी, बल्कि मुकदमे भी जल्दी निपटेंगे और लोगों की न्याय व्यवस्था के प्रति आस्था भी मजबूत होगी।