"कंक्रीट": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Concrete pouring 0020.jpg|right|thumb|350px|वाणिज्यिक भवन के लिये कंक्रीट बिछायी जा रही है।]]
'''कंक्रीट''' (Concrete) एक निर्माण सामग्री है जो [[सिमेण्ट]] एवं कुछ अन्य पदार्थों का मिश्रण होती है। कंक्रीट की यह विशेषता है कि यह पानी मिलाकर छोड़ देने के बाद धीरे-धीरे [[ठोस]] एवं कठोर बन जाता है। इस प्रक्रिया को जलीकरण (Hydration) कहते है। इस [[रासायनिक क्रिया]] में पानी, सिमेन्ट के साथ क्रिया करके [[पत्थर]] जैसा कठोर पदार्थ बनाती है जिसमें अन्य चीजें बंध जातीं हैं। कंक्रीट का प्रयोग सड़क बनाने, पाइप निर्माण, भवन निर्माण, नींव बनाने, [[पुल]] आदि बनाने में होता है।
 
कंक्रीट का उपयोग 2000 ई.पू. से होता आ रहा है। कंक्रीट के गुण उन पदार्थों पर निर्भर हेते हैं जिनसे यह बनाया जाता है, परतु प्रधानत: वे उस पदार्थ पर निर्भर रहते हैं जो पत्थर, गिट्टी आदि को परस्पर चिपकाने के लिए प्रयुक्त होता है। 19वीं शताब्दी में [[पोर्टलैंड सीमेंट]] के आविष्कार के पले इस काम के लिए केवल [[चूना]] उपलब्ध था, परंतु अब चूने के कंक्रीट का उपयोग केवल वहीं होता है जहाँ अधिक पुष्टता की आवश्यता नही रहती। अधिक पुष्टता के लिए सिमेंट-कंक्रीट का उपयाग होता है। सीमेंट कंक्रीट को [[इस्पात]] से दृढ़ करके उन स्थानों में भी प्रयुक्त किया जा सकता हैं जहाँ लपने या मुडने की संभावना रहती है, जैसे धरनों अथवा स्तंभों में।
 
== संरचना ==
कंक्रीट अग्रलिखित पदार्थों का मिश्रण है :
 
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== सीमेंट कंक्रीट ==
[[चित्र:Esplanade Bridge 4, Dec 05.JPG|right|thumb|350px|कंक्रीट का एक पुल]]
यह सीमेंट, पानी, [[बालू]] और पत्थर या [[ईंट]] की गिट्टी अथवा बड़ी बजरी या झावाँ से बनता है और भवननिर्माण में अधिक काम में आता है। जैसा ऊपर बताया गया है, जब यह पदार्थ भली-भाँति मिला दिए जाते हैं तब उनसे कुम्हार की मिट्टी की तरह प्लैस्टिक पदार्थ बनता है, जो धीरे-धीरे पत्थर की तरह कड़ा हो जाता है। यह कृत्रिम पत्थर प्रकृति में मिलनेवाले [[कांग्लामरेट]] नामक पत्थर के स्वभाव का होता है। भवननिर्माण में सीमेंट कंक्रीट के इस गुण के करण यह बड़ी सुगमता से किसी भी स्थान में ढाला जा सकता है और इसको कोई भी वांछित रूप दिया जा सकता है। इसके लिए आवश्य पदार्थ प्राय: सभी स्थानों में उपलब्ध रहते हैं, परंतु सर्वोत्तम परिणाम के लिए कंक्रीट को मिलाने और ढालने का काम प्रशिक्षित मजदूरों को सौंपना चाहिए। कंक्रीट की पुष्टता उसके अवयवों के अनुपात और उनको मिलाने के ढंग पर निर्भर रहती है।
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इंजीनियरी और भवननिर्माण में इसके प्राय: असंख्य प्रकार के उपयोग हो सकते हैं, जिनमें भारी नींवे, पुश्ते, नौस्थान (डाक, dock) की भित्तियाँ, तरंगों से रक्षा के लिए समुद्र में बनी दीवारें, पुल, उद्रोध इत्यादि बृहत्काय संरचनाएँ भी सम्मिलित हैं। [[इस्पात]] से प्रबलित (रिइन्फ़ोर्स्ड, reinforced) कंक्रीट के रूप में यह अनेक अन्य संरचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है, जैसे फर्श, छत, [[मेहराब]], पानी की टंकियाँ, अट्टालिकाएँ, पुल के बड़े पीपे (पांटून, pontoon), घाट, नरम भूमि में नींव के नीचे ठोके जानेवो खूँटे, जहाजों के लिए समुद्री घाट, तथा अनेक अन्य रचनाएँ। टिकाऊपन, पुष्टता, सौंदर्य, अग्नि के प्रति सहनशीलता, सस्तापन इत्यादि ऐसे गुण हैं जिनके कारण भवननिर्माण में कंक्रीट अधिकाधिक लोकप्रिय होता जा रहा है और इनके कारण भवननिर्माण में प्रयुक्त होनेवाले पहले के कई अन्य पदार्थ हटते जा रहे हैं।
 
=== गिट्टी ===
[[बालू पत्थर]] या ईंट के छोटे-छोटे टुकड़ों को '''गिट्टी''' कहते हैं। गिट्टी के बदले बड़ी बजरी आदि का भी उपयोग हो सकता है, अत: उनको भी हम यहाँ गिट्टी के अंतर्गत मानेंगे। गिट्टी और बालू दोनों के सम्मिलित रूप को अभिसमूह (ऐग्रिगेट) कहते हैं। नाप के अनुसार गिट्टी के निम्नलिखित वर्ग हैं :
 
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गिट्टी कुछ गोलाकार हो, रुक्ष हो, उससे चिप्पड़ न छूटें और तोड़ने में पुष्ट हो। तौल के अनुसार गिट्टी पाँच प्रतिशत से अधिक पानी सोखे। उसमें यथासंभव मिट्टी न हो और प्राणिज (ऑगैंनिक) पदार्थ (जैसे घास, काई इत्यादि) न हों।
 
=== सीमेंट ===
यों तो कार्य और आवश्यकता के अनुसार कई प्रकार के सीमेंटों का व्यवहार किया जाता है, परंतु साधारण काम के लिए अधिकतर [[पोर्टलैंड सीमेंट]] काम में लाया जाता है। यह प्रधानत: ट्राइकैल्सियम सिलिकेट, डाइकैल्सियम सिलिकेट, ट्राइकैल्सियम ऐल्युमिनेट और [[जिपसम]] का मिश्रण होता है। पानी मिलाने के बाद सबसे पहले पुष्टता ऐल्युमिनेटों और ट्राइकैल्सियम सिलिकेट से आती है, क्योंकि पानी का शोषण करते समय उनके कारण अधिक गरमी उत्पन्न होती है। काम में लाने के पहले सीमेंट को सूखे स्थान में रखना चाहिए अन्यथा आर्द्रता से सीमेंट खराब हो जाएगा। नम स्थान में रखने से जो सीमेंट कड़ा हो जाता है वह किसी काम का नहीं रहता। कभी-कभी, जब सीमेंट की बोरियाँ एक के ऊपर एक बहुत ऊँचाई तक लदी रहती हैं तब नीचे का सीमेंट अधिक दाब के कारण भी बँध जाता है, परंतु यह सीमेंट खराब नहीं रहता और कंक्रीट बनाते समय सरलतापूर्वक अन्य पदार्थों के साथ मिल जाता है।
 
कड़ा होने का प्रारंभिक समय 30 मिनट से कम नहीं होना चाहिए। कंक्रीट को सानने के बाद 30 मिनट के भीतर ही अपने स्थान में ढाल देना चाहिए। कड़ा होने का अंतिम समय 10 घंटे से कम न होना चाहिए। सात दिन के बाद परीक्षा लेने पर दाब और तनाव में सीमेंट की पुष्टता क्रमानुसार 2.500 पाउंड प्रति वर्ग इंच और 375 पाउंड प्रति वर्ग इंच से कम न होनी चाहिए। 170 नंबर की चलनी से सीमेंट के 90 से अधिक अंश को पार हो जाना चाहिए और एक ग्राम सीमेंट के कणों का सम्मिलित क्षेत्रफल 2,250 वर्ग सेंटीमीटर से कम न होना चाहिए।
 
=== पानी ===
पानी स्वच्छ हो, उसमें प्राणिज पदार्थ, [[अम्ल]], [[क्षार]] और कोई भी अन्य हानिकारक पदार्थ न होना चाहिए। संक्षेप में, जो जल पीने योग्य होता है वही कंक्रीट बनाने के भी योग्य होता है।
 
=== पदार्थों की नाप ===
कंक्रीट बनाने में विविध पदार्थों को ठीक-ठीक नापना बहुत महत्वपूर्ण है। जब पदार्थों को आयतन के अनुसार नापकर मिलाया जाता है तब नापनेवाला बर्तन छोटा बड़ा होने से अंतिम नाप में अंतर पड़ जाता है, इसका प्रभाव भी अंतिम नाप पर पड़ता है। फिर, मिलावे की किस्म और उसकी आर्द्रता का भी प्रभाव पड़ता है। महीन मिलावे (बालू आदि) में 3.5 प्रतिशत आर्द्रता रहने पर आयतन लगभग 25 प्रतिशत अधिक हो जाता है। मिलावा जितना ही अधिक महीन होगा, आर्दता से आयतन उतना ही अधिक बढ़ेगा।
 
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मिलावे के विविध पदार्थों को नाप के अनुसार उचित अनुपात में मिलाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे केवल पुष्टता ही नहीं बढ़ती, सुकरता भी बढ़ती है। उचित रीति से श्रेणीबद्ध गिट्टी-बालू में सभी नापों के कण इस प्रकार रहते हैं कि बड़े कणों के बीच के रिक्त स्थान छोटे कणों से भर जाते हैं, इत्यादि। यदि ऐसान हुआ तो सब रिक्त स्थानों को जल-सीमेंट-मिश्रण से भरना पड़ेगा। इसलिए कंक्रीट की चरम सघनता के निमित्त मिलनेवाले मिलावे की गिट्टी और बालू को इस प्रकार उचित रीति से श्रेणीबद्ध किया जाता है कि मिलावे में कम से कम रिक्तता हो जाए। कुछ महत्वपूर्ण कामों में सस्तेपन के लिए अंतर-श्रेणीकरण (गैप ग्रेडिंग) की रीति बरती जाती है। इसमें ब्रिटिश स्टैंडर्ड नंबर से 7 की चलनी तक की बजरी को मिलावे में सम्मिलित नहीं किया जाता है।
 
=== आवश्यक मात्राओं का अनुपात ===
साधारणत: कंक्रीट का मिश्रण सीमेंट, बालू और गिट्टी के आयतनों के अनुपात के अनुसार तैयार किया जाता है। कभी-कभी सीमेंट की मात्रा बताने के लिए बोरियों की संख्या बताई जाती है। प्रत्येक बोरी में 112 पाउंड या 1.25 घन फुट सीमेंट रहता है। इस प्रकार 1 : 2 : 4 के कंक्रीट मिश्रण का अर्थ है 1 घन फुट सीमेंट (जिसकी तौल प्रति घनफुट 90 पाउंड होती है), 2 घनफुट बालू (अथवा अन्य महीन मिलावा) और 4 घन फुट गिट्टी। मिश्रण में औसत से 66% से 78% मिलावा 7% से 14% सीमेंट और 15% से 22% पानी होता है। इस प्रकार 100 घन फुट तैयार (सघन किए गए) कंक्रीट के लिए कुछ मिलाकर लगभग 155 घन फुट सूखें पदार्थ की आवश्यकता पड़ती है।
 
=== कंक्रीट का मिलाना ===
यह महत्वपूर्ण है कि सब पदार्थ अच्छी तरह मिल जाएँ जिसमें सर्वत्र एक समान की संरचना रहे। जब कभी अधिक कंक्रीट की आवश्यकता होती है तब उसे हाथ से मिलाना कठिन होता है इसलिए मशीन का प्रयोग किया जाता है। ऐसी मशीन में एक बड़ा सा ढोल रहता है जिसके भीतर पंखे लगे रहते हैं। ढोल को इंजन से घुमाया जाता है और भीतर सीमेंट, बालू, गिट्टी और पानी नापकर डाल दिया जाता है। शीघ्र ही अच्छा मिश्रण तैयार हो जाता है।
 
=== कंक्रीट को ढालना और कूटना ===
मिश्रण तैयार होने के बाद कंक्रीट को चपपट ढालना और सघन करना चाहिए। पानी डालने के क्षण से इस क्रिया के अंत तक कुल 30 मिनट से कम समय लगना चाहिए। इसपर भी इसका ध्यान रखना चाहिए कि ढालते समय कंक्रीट के मिश्रण का कोई अवयव अंशत: अलग न होने पाए। इसका तात्पर्य यह है कि कंक्रीट बहुत ऊँचे से नहीं गिराया जाना चाहिए।
 
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कम कुटाई तो हानिकारक है ही, परंतु कुटाई या कंपन की अधिकता भी हानिकर हो सकती है, क्योंकि इससे कंक्रीट के अवयव अलग होने लगते हैं और उसमें मधुमक्खी के छत्ते की तरह रिक्त स्थान बन जाने की संभावना रहती है। अत: यह चेतावनी देना उचित है कि पूर्ण सघनता के बदले केवल 85 प्रतिशत सघनता उत्पन्न की जाए तो पुष्टता पूर्ण सघन कंक्रीट की कुल 15 प्रतिशत ही उत्पन्न होगी।
 
=== कंक्रीट को परिपक्व करना ===
जब तक कंक्रीट कड़ा होता रहता है तब तक उसे आर्द्र रखना चाहिए। इस क्रिया को परिपक्वीकरण (पक्का करना) कहते हैं। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि कड़ा होने की क्रिया में जितना पानी सीमेंट के रासायनिक संयोग के लिए आवश्यक है, उतना उसे मिलता रहे। यदि कंक्रीट को ठीक प्रकार से परिपक्व न किया जाए तो पुष्टता बहुत कम हो जाती है। कंक्रीट की पुष्टता का अधिकांश दो तीन सप्ताहों में उत्पन्न होता है, अतएव इतने ही समय तक को आर्द्र रखना आवश्यक है। यदि इस समय में कंक्रीट सूखे वातावरण में रहता है तो उसमें अधिक संकोच हो जाता है और परिणामत: वह फट जाता है।
 
यदि ताप अधिक हो तो कंक्रीट की पुष्टता कम समय में आती है। इसलिए जाड़े की अपेक्षा गरमी के दिनों में साँचा कम समय में हटाया जा सकता है। यदि कंक्रीट को बहुत शीघ्र परिपक्व करना रहता है तो कंक्रीट को भाप से तप्त किया जाता है। बहुधा सड़क बनाने में ऐसा करना पड़ता है, क्योंकि सड़कों के दो तीन सप्ताह तक बंद रखने में असुविधा होती है।
 
== कंक्रीट के गुण ==
निम्नलिखित सारणी में विविध संरचनाओं के कंक्रीट और उनके गुण दिखाए गए हैं :
 
28 दिन बाद संपीडन क्षमता, मिश्रण पाउंड प्रति वर्ग इंच, प्रयोग
 
1 : 2 : 4 2,250 प्रबलित (रिइन्फ़ोर्स्ड) काम में।
 
1 : 1 : 3 2,850 मेहराब, स्तंभ, पानी की टंकियों और पानी के अन्य कामों में।
 
1 : 1 : 2 3,450 पूर्व प्रतिबलित (प्रस्ट्रेस्ड, ) कंक्रीट और ऐसी संरचनाओं में जहाँ विशेष पुष्टता की आवश्यकता होती है।
 
== सादा कंक्रीट ==
जो कंक्रीट प्रबलित (रिइन्फ़ोर्स्ड) नहीं रहता उसे सादा (प्लेन) कंक्रीट कहते हैं। साधारण बोझवाली दीवारों की नीवों में साधारणत: 1 : 3 : 6 का सीमेंट कंक्रीट दिया जाता है। यदि भूमि कड़ी हो तो खंभों की नीवों में भी ऐसा ही कंक्रीट दिया जा सकता है। तनाव में ऐसा कंक्रीट बहुत पुष्ट नहीं होता और जब किसी भाग में तनाव पड़ने की आशंका रहती है तब उसे इस्पात की छड़ों से प्रबलित करना आवश्यक होता है।
 
== विपुल कंक्रीट ==
जब बहुत बड़े आयतनवाला, कंक्रीट का कोई काम बनता है, जैसे उद्रोध (डैम), पुश्ता (रिटेनिंग वाल), भारी काम होनेवाले कारखाने का फर्श, इत्यादि तब सुभीते के लिए उसे विपुल कंक्रीट (मास कंक्रीट) कहा जाता है। जब कभी बहुत सा कंक्रीट एक साथ ढाला जाता है तब सीमेंट के जल सोखने से बड़ी गरमी उत्पन होती है। पीछे जब कंक्रीट ठंडा होता तब भीतरी तनाव बहुत हो जाता है और कंक्रीट चटख जाता है। इसलिए उद्रोध आदि बनाने में गिट्टी और बालू को पहले से खूब ठंडा कर लिया जाता है और कंक्रीट में नल (पाइप) लगा दिए जाते हैं, जिनमें ठंडा पानी प्रवाहित किया जाता है। इससे ताप बढ़ने नहीं पाता। विपुल कंक्रीट के लिए बड़ी नाप की गिट्टियों का उपयोग किया जाता है जो व्यास में 6 इंच तक की होती हैं। इससे पानी कम खर्च होता है और यदि जल-सीमेंट-अनुपात न बदला जाए तो सीमेंट भी कम खर्च होता है। फलत: बचत होती है। साथ ही, कंक्रीट का घनत्व भी बढ़ जाता है। यह गुरुत्वउद्रोध और बड़ी टंकियों के फर्श के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि ये अपनी स्थिरता के लिए अपने ही भार पर निर्भर रहते हैं।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.csmrs.nic.in/csmrsh/con_tech.htm कंक्रीट प्रौद्योगिकी] (केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला]
* [http://www.bmtpc.org/hindi/index.htm निर्माण सामग्री एवं प्रौद्योगिकी संवर्द्धन परिषद (BMTPC)] (आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय, भारत सरकार)
* [http://www.indianconcreteinstitute.org/ भारतीय कंक्रीट संस्थान]
* [http://www.groupecorbeil.com/en/concrete/ Concrete History Oct 1 2009]
* [http://www.traditionaloven.com/tutorials/concrete.html Refractory Concrete] Information related to heat resistant concrete; recipes, ingredients mixing ratio, work with and applications.
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[[ar:خرسانة]]
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[[zh-yue:石屎]]