"स्पेक्ट्रोस्कोपी": अवतरणों में अंतर

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मूलत: [[विकिरण]] एवं [[पदार्थ]] के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को '''स्पेक्ट्रमिकी''' या '''स्पेक्ट्रोस्कोपी''' (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से [[दृष्य प्रकाश]] का किसी [[प्रिज्म]] से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग राते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था।
 
बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब [[तरंगदैर्ध्य]] (या [[आवृत्ति]]) के [[फलन]] के रूप में किसी भी राशि का [[मापन]] ''स्पेक्ट्रोस्कोपी'' कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब [[उर्जा]] (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है -: E = hν )
 
किसी राशि का आवृत्ति के फलन के रूप में आलेख (प्लॉट) [[वर्णक्रम]] (स्पेक्ट्रम) कहलाता है। किसी पदार्थ के किसी द्रव्यमान में आयनों, परमाणुओं या अणुओं की उपस्थिति की सघनता (concentration) का मापन ''स्पेक्ट्रोमेट्री'' कहलाता है। जो उपकरण स्पेक्ट्रोमेट्री में सहायक होते हैं वे ''स्पेक्ट्रोमीटर'', ''स्पेक्ट्रोफोटोमीटर'' या ''स्पेक्ट्रोग्राफ'' आदि नामों से जाने जाते हैं। स्पेक्ट्र्स्कोपी/स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग भौतिक एवं वैश्लेषिक रसायन विज्ञान में बहुधा किया जाता है। इसका उपयोग [[खगोल विज्ञान]] एवं [[सुदूर संवेदन]] (remote sensing) में भी होता है।
[[चित्र:Fluorescent lighting spectrum peaks labelled.png|right|thumb|300px|प्रदीप्त-बत्ती (फ्लोरिसेन्त लैम्प) से उत्सर्जित 'प्रकाश' का स्पेक्ट्रम - इसमें पारा के संगत चोटियाँ दर्शनीय हैं।]]
 
==इतिहास==
[[चित्र:Fluorescent lighting spectrum peaks labelled.png|right|thumb|300px|प्रदीप्त-बत्ती (फ्लोरिसेन्त लैम्प) से उत्सर्जित 'प्रकाश' का स्पेक्ट्रम - इसमें पारा के संगत चोटियाँ दर्शनीय हैं।]]
स्पेक्ट्रमिकी की नींव [[आइजेक न्यूटन]] ने सन् 1666 ई. में डाली थी। उन्होंने एक बंद कमरे में खिड़की के छिद्र से आते हुए सौर किरणपुंज (beam of light) को एक प्रिज़्म से होकर पर्दे पर जाने दिया। पर्दे पर सात रंगों पर बैंगनी रंग था। पट्टी में सातो रंग - लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैंगनी - इसी क्रम में दिखाई पड़ते थे। न्यूटन ने इस पट्टी को "स्पेक्ट्रम" कहा। इस प्रयोग से उन्होंने यह सिद्ध किया कि सूर्य का श्वेत प्रकाश वास्तव में सात रंगों का मिश्रण है। बहुत समय तक "स्पेक्ट्रम" का अर्थ इसी सतरंगी पट्टी से ही लगाया जाता था। बाद में वैज्ञानिकों ने यह देखा कि सौर स्पेक्ट्रम के बैंगनी रंग से नीचे भी कुछ रश्मियाँ पाई जाती हैं जो आँख से नहीं दिखाई पड़ती हैं परंतु फोटोप्लेट पर प्रभाव डालती हैं और उनका फोटो लिया जा सकता है। इन किरणों को [[पराबैगनी किरणे|पराबैंगनी किरणें]] (Ultraviolet rays) कहा जाता है। इसी प्रकार लाल रंग से ऊपर [[अवरक्त किरणें]] पाई जाती हैं। वास्तव में सभी वर्ण की रश्मियाँ विद्युच्चुंबकीय तरंगें होती हैं। रंगीन प्रकाश, अवरक्त, पराबैंगनी प्रकाश, एक्स-किरण, गामा-किरण, माइक्रो तरंगें तथा रेडियो तरंगें - ये सभी विद्युच्चुंबकीय तरंगें हैं। इन सबका स्पेक्ट्रम होता है। प्रत्येक वर्ण की रश्मियों का निश्चित तरंगदैर्घ्य लगभग 7000 ॠ डिग्री होता है। पारे को उत्तेजित करने से जो हरे रंग की किरणें निकलती हैं उनका तरंगदैर्घ्य 5461 एंग्स्ट्रॉम होता है। अत: अब विभिन्न वर्ण की रश्मियों का विभाजन रंग के आधार पर नहीं वरन् तरंगदैर्घ्य के आधार पर किया जाता है और स्पेक्ट्रम का अर्थ बहुत व्यापक हो गया है - तरंगदैर्घ्य के अनुसार रश्मियों की सुव्यवस्था को स्पेक्ट्रम कहा जाता है। स्पेक्ट्रमविज्ञान का संबंध प्राय: सभी प्रकार की विद्युच्चुंबकीय तरंगों से है। माइक्रो तरंग स्पेक्ट्रमिकी, इफ्रारेड-स्पेक्ट्रमिकी, दृश्य क्षेत्र स्पेक्ट्रमिकी, एक्स किरणस्पेक्ट्रमिकी और न्यूक्लियर-स्पेक्ट्रमिकी आदि सभी विभाग स्पेक्ट्रमिकी के ही अंग हैं किंतु प्रचलित अर्थ में स्पेक्ट्रमिकी के अंतर्गत अवरक्त, दृश्य तथा पराबैंगनी किरणों के स्पेक्ट्रम का अध्ययन ही आता है।