"हेमाद्रिपंत": अवतरणों में अंतर

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तेरहवी शताब्दी में [[कर्नाटक]] के दक्षिण कन्नड़ के एक छोटे से ग्राम हेमाद्री के स्मार्त ऋग्वेदी, वत्स गोत्री, शाकालशक्शी कर्हाड़े ब्राह्मण परिवार में जन्मे हेमाद्रिपंत को उनके पिता कामदेओ बहुत छोटी उम्र में महाराष्ट्र ले आये थे.
 
हेमाद्रिपंत ने बहुत-सी धार्मिक पुस्तकें लिखीं जिनमे [[चतुर्वर्ग चिंतामणि]] है जिसमे हज़ारों व्रतों और उनके करने के विधान का वर्णन है. चिकित्सा के सम्बन्ध में इन्होने [[आयुर्वेद रहस्यं]] पुस्तक लिखी जिसने हजारो बीमारियो और उनके निदान के बारे में लिखा गया है।
 
इन्होने एक इतिहासिक पुस्तक भी लिखी जिसका नाम 'हेमाद्पंती बखर' है. हेमाद्रिपंत ने प्रशासन और राजकीय कार्यो में एकरूपता लाने के लिए एक पुस्तक भी लिखी जिसमे राज-काज के दैनिंदिन कार्यो की प्रक्रिया को विस्तार से निश्चित किया गया है।
 
हेमाद्रिपंत ने [[मोदी लिपि]] को सरकारी पत्रव्यवहार की भाषा बनाया. गोंदेश्वर मंदिर, तुलजा भवानी और अनुधा नागनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर और रत्नागढ़ के अमृतेश्वर मंदिर को हेमदपंथी वास्तुकारिता से बनाया गया है जिसका सृजन हेमाद्र्पंत ने किया था
 
हेमाद्रिपंत ने भारत में बाजरे के पौधे, जिसे कन्नड़ में सज्जे, तमिल में कम्बू, तेलुगु में सज्जालू, मराठी में बाजरी और उर्दू, पंजाबी या हिंदी में [[बाजरा]] कहा जाता है, को बहुत प्रोत्साहन दिया. महाराष्ट्र में महालक्ष्मी के पूजन को प्रोत्साहित और वैभवशाली बनाने में भी हेमाद्रिपंत का बहुत योगदान है.
 
[[श्रेणी:भारत का इतिहास]]