"निम्नतापिकी": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
आशीष भटनागर (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1:
'''तुषारजनिकी''' या '''[[प्राशीतनी]]''' ([[अंग्रेज़ी]]:''क्रायोजेनिक्स'') [[भौतिकी]]
क्रायोजेनिक्स में अध्ययन किए जाने वाले तापमान का परास काफी अधिक होता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें -१८०° फारेनहाइट (-१२३° सेल्सियस) से नीचे के तापमान पर ही अध्ययन किया जाता है। यह तापमान जाल के प्रशीतन बिन्दु (०° से.) से काफी नीचे होता है और जब धातुओं को इस तापमान तक लाया जाता है तो उन पर आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाई देते हैं। इतना कम तापमान तैयार करने के कुछ तरीके होते हैं, जैसे विशेष प्रकार के प्रशीतक या नाइट्रोजन जैसी तरल गैस, जो अनुकूल दाब की स्थिति में तापमान को नियंत्रित कर सकती है। धातुओं को तुषारजनिकी द्वारा ठंडे किए जाने पर उनके अणुओं की क्षमता बढ़ती है। इससे वह धातु पहले से ठोस और मजबूत हो जाते हैं। इस विधि से कई तरह की औषधियाँ तैयार की जाती हैं और विभिन्न धातुओं को संरक्षित भी किया जाता है। रॉकेट और अंतरिक्ष यान में क्रायोजेनिक ईंधन का प्रयोग भी होता है। तुषारजनिकी का प्रयोग [[जी एस एल वी]] [[रॉकेट]] में भी किया जाता है। जी.एस.एल.वी. रॉकेट में प्रयुक्त होने वाली द्रव्य ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन ''क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन'' कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस इंजन में [[हाइड्रोजन]] और [[ईंधन]] क्रमश: ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा
तुषारजनिकी संरक्षण की एक शाखा को क्रायोनिक कहते हैं। संभव है कि इसके माध्यम से भविष्य में चिकित्सा तकनीक द्वारा मनुष्य और पशुओं के शरीरों को प्रशीतन में संरक्षित कर रखा जा सकें। ऐसा नियंत्रित परिस्थितियों में ही करना संभव होगा।
==इन्हें भी देखें==
*[[तुषारजनिक रॉकेट इंजन]]
|