"न्यूट्रिनो": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) नया पृष्ठ: '''क्लीबाणुक''' (Neutrino) यह एक नया कण (Particle) है जिसका सर्वप्रथम अनुसंधान स... |
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(घ) [[फर्मी-डिराक सांख्यिकी]] (स्टाटिस्टिक्स statistics) का अनुसरण करता है।
(ङ)
उन अभिक्रियाओं की, जिनसे बीटा किरणें मिलती है, जाँच करते समय यह देखा गया कि निकले हुए कणों का ऊर्जा वर्णक्रम (Spectrum) ऐल्फ़ा किरण के ऊर्जा वर्णक्रम से भिन्न है। ऐल्फ़ा किरणें पृथक् रेखा वर्णक्रम के अनुसार मिलती हैं, पर बीटा किरणें उनसे पूर्णत: भिन्न प्रकार के संतत वर्णक्रम का अनुकरण करती हैं। रेडियम-ई (Radium E) के लिये प्राप्त बीटा किरण का ऊर्जा वर्णक्रम चित्र में दिखाया गया
बीटा किरणों द्वारा दिए संतत वर्णक्रम का सैद्धांतिक आधार स्थिर करना बहुत समय तक कठिन समस्या बना रहा। मान लिया जाय कि किसी नाभिक क से, जो एक विशेष ऊर्जा के तल पर है, एक बीटा किरण निकलती है और इस अभिक्रया द्वारा एक दूसरा नाभिक ख बनता है, जो पुन: एक विशेष ऊर्जा के तल पर है। पुज एवं ऊर्जास्थिरता के सिद्धांत: के अनुसार, निकले हुए बीटा कण की ऊर्जा नाभिक क एवं ख के ऊर्जातलों क अंतर के बराबर होनी चाहिए। यह ऊर्जा सिद्धांत सर्वदा
इस समस्या को फर्मी ने बीटा किरण के बाद वाली अपनी क्लीबाणुक उपकल्पना देकर सर्वप्रथम सफलतापूर्वक सुलझाया। उन्होंने यह सुझाव दिया कि बीटा किरण देने वाली अभिक्रियाओं में एक और कण क्लीबाणुक भी प्राप्त होता है और वही लुप्त प्रतीत होने वाली ऊर्जा को ग्रहण कर लेता है। आज तक परीक्षा से क्लीबाणुक की पहचान नहीं हो पाई है, फलत: इसके गुण ऐसे होने चाहिए जिनके कारण इसकी पहचान अति कठिन हो। इसलिये यह धारणा की गई कि क्लीबाणुक आवेश रहित है और इसका भार इलेक्ट्रान की तुलना में अतिन्यून है, शुन्य के ही लगभग है। क्लीबाणुक का आवेशरहित होना, बीटा किरण की अभिक्रिया के लिये आवेशस्थिरता के सिद्धांत के अनुसार है। क्लीबाणुक परिकल्पना के अनुसार, बीटा किरण अभिक्रिया में प्राप्त हुई ऊर्जा की मात्रा इर् अ है। यह ऊर्जा बीटा कण क्लीबाणुक एवं प्रतिक्षिप्त नाभिक को प्राप्त होती है। तीन कणों में ऊर्जा विभाजन अनेकानेक भाँति हो सकता है, इसलिये संतत वर्णक्रम बन जाता है।
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