"पाञ्चजन्य (पत्र)": अवतरणों में अंतर

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‘पाचजन्य‘ की यात्रा साधनों के अभाव एवं सरकारी प्रकोपों के विरूद्ध राष्ट्रीय चेतना की जिजीविषा और संघर्ष की प्रेरणादायी गाथा है। ‘पाचजन्य‘ द्वारा समय-समय पर घोषित ध्येय वाक्यों जैसे ‘राष्ट्रीयता का प्रहरी‘, ‘सांस्कृतिक चेना का अग्रदूत‘ या ‘राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं शौर्य का स्वर‘ से स्पष्ट है कि ‘पाचजन्य‘ राष्ट्रीय पुननिर्माण के पथ पर स्वाधीन भारत की यात्रा को स्वाधीनता आंदोलन की मूल प्रेरणाओं से जोड़े रखने के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली प्रवृत्तियों एवं शक्तियों को चेतावनी का स्वर निर्भीकता के साथ बार-बार गुंजाता रहा। समय-समय पर प्रारंभ किए गए स्तम्भों से स्पष्ट होता है कि राष्ट्र जीवन का कोई भी क्षेत्र या पहलू उसकी दृष्टि से ओझल नहीं रहा। अन्तर्राष्ट्रीय घटनाचक्र हो या राष्ट्रीय घटना चक्र, अर्थ जगत, शिक्षा जगत, नारी जगत, युवा जगत, राष्ट्र चिन्तन, सामयिकी, इतिहास के झरोके से, फिल्म समीक्षा, साहित्य समीक्षा, संस्कृति-सत्य जैसे आदि अनेक स्तंभ ‘पाचजन्य‘ की सर्वांगीण रचनात्मक दृष्टि के परिचायक है।
 
‘पाचजन्य‘ के लेखक वर्ग में [[सम्पूर्णानन्द|डा० सम्पूर्णानन्द]], [[पुरुषोत्तम दास टण्डन|राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन]], [[राममनोहर लोहिया|डा० राममनोहर लोहिया]], [[आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]], [[अमृतलाल नागर]], [[महादेवी वर्मा]], [[किशोरी दास वाजपेयी]], [[कृष्णचन्द प्रकाश मेढ़े]] जैसे मूर्धन्य विचारकों राजनेताओं तथा साहित्यकारों का योगदान रहा हैं। इनके अतिरिक्त ‘पाचजन्य‘ ने विभिन्न राजनैतिक दलों के शिखर नेताओं के साक्षात्कार प्रकाशित करके राष्ट्रीय समस्याओं पर बहस चलाने की सार्थक कोशिश की है। ऐसे नेताओं में मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, चन्द्रशेखर, मुलायम सिंह यादव, शरद पवार, शरद यादव, ए०बी०ए० बी० वर्धन, एम० फारूखी, मौलाना वहीदुदीन खान आदि के नाम गिनाए जा सकते है। इस समय भी जगमोहन, अरुण शौरी व जे०एन० दीक्षित जैसे विचारक ‘पाचजन्य‘ के नियमित लेखक हैं।
 
‘पाचजन्य‘ ने जहां अपने सामान्य अंक के सीमित कलेवर में अनेक स्तम्भों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक दृष्टि के आलोक में पाठकों को देश-विदेश के घटनाचक्र से अवगत कराने की कोशिश की, तो विचार प्रधान लेखों के द्वारा मूलगामी राष्ट्रीय प्रश्नों पर भी उन्हें सोचने की सामग्री प्रदान की। असम और पूर्वोत्तर भारत आज जिस संकट से गुजर रहा है, कश्मीर समस्या आज क्यों हमारे जी का जंजाल बनी हुई है?इसके बारे में ‘पाचजन्य‘ अपने जन्म काल से ही चेतावनी देता रहा है। ‘पाचजन्य‘ के पुराने अंकों का अध्ययन करने पर स्पष्ट होगा कि यदि समय रहते ‘पाचजन्य‘ की चेतावनियों को सुना गया होता तो पृथकतावाद, सामाजिक विघटन एवं राजनैतिक दलों के जिस संकट से हम गुजर रहे हैं, वह हमारे सामने न आता। स्वाधीन भारत की यात्रा के प्रत्येक महत्वपूर्ण मोड़ पर ‘पाचजन्य‘ राष्ट्रीयता के प्रहरी की भूमिका निभा रहा है। ‘पाचजन्य‘ ने वर्ष में कम से कम पांच अवसरों पर विशेषांक निकालने का निश्चय किया। स्वाधीनता दिवस ‘१५ अगस्त‘, गणतंत्र दिवस ‘२६ जनवरी‘, विजया दशमी, दीपावली, वर्ष प्रतिपदा। इनके अतिरिक्त भी आवश्यकतानुसार, विषयानुसार, विशेषांकों का आयोजन किया जाता रहा। प्रत्येक विशेषांक में इतिहास, संस्कृति और राजनीति पर विचारप्रधान लेखों का संकलन होता है। विषय केन्द्रित विशेषांकों की परम्परा स्वयं में बहुत समृद्ध और अनूठी है। प्रारंभ से ही ‘पाचजन्य‘ ने व्यवस्था त्रयी के अन्तर्गत ‘राजनीति‘, ‘अर्थ‘, और ‘समाज‘ विषयों पर तीन विशेषांकों का पुस्तकाकार रूप में आयोजन किया। तिलक सिंह परमार के सम्पादन काल में ‘समाज अंक‘, ‘राष्ट्रीय एकता अंक‘, ‘केरल अंक‘, ‘तिब्बत अंक‘ और ‘जनसंघ अंक‘ निकले। यादवराव देशमुख ने ‘हिमालय बचाओ अंक‘, ‘युद्ध अंक‘, ‘कश्मीर अंक‘, ‘भारत-नेपाल मैत्री अंक‘ का आयोजन किया। वचनेश त्रिपाठी ने स्वाधीनता के लिए हुए क्रान्ति संघर्ष पर दो ‘क्रांति संस्मरण अंक‘ आयोजित किए। केवल रतन मलकानी के प्रधान सम्पादकत्व में देवेन्द्र स्वरुप ने ‘भारतीयकरण विशेषांक‘, ‘गांधी जन्म शताब्दी विशेषांक‘, ‘बंगाल विशेषांक‘, ‘बंगलादेश मुक्ति विशेषांक‘, ‘दरिद्रनारायण विशेषांक‘ आदि का आयोजन किया। भानु प्रताप शुक्ल ने ‘क्रांति कथा अंक‘, ‘वीर वनवासी अंक‘, ‘उद्योग अंक‘ आदि निकाले। प्रबाल मैत्र के सम्पादन काल में ‘अपना वतन अंक‘, ‘समाधान अंक‘, ‘वैशाखी अंक‘ आदि का प्रकाशन हुआ।
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==बाहरी कड़ियाँ==
* [http://www.panchjanya.com '''पाञ्चजन्य''' का जालघर] (DV-TTSurekhEN फॉन्ट में)
* [https://technical-hindi.googlegroups.com/web/DV-TTSurekhEN_to_Unicode_Converter_08.htm?hl=en&gda=2P9RF1sAAABK7OLuOm601guSX11NJCePJbs-_ykOipVk1OmzroLZs7QwMb8lfRkzXUPQXIv-gxwHFjROvKVwLyqbUVVhTgt4T0-CrODKHIoI6I89zFSadQZF2vdCvKU-TDZpFtcP-AU DV-TTSurekhEN फॉन्ट को यूनिकोड में बदलने वाला आनलाइन प्रोग्राम]
 
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