हर साल भारत में ९ नवम्बर को विश्व उर्दू दिवस (आलमी यौम-ए-उर्दू) मनाया जाता है। यह दिन इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि यह उर्दू के प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल का जन्म दिवस भी है। उस दिन कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिनमें सेमिनार, सिम्पोज़ियम, मुशायरे आदि आयोजित होते हैं जिनका मुख्य विषय यह होता है कि कैसे उर्दू को भारत में एक जीवित भाषा के रूप में न केवल बाक़ी रखा जाए, बल्कि उसकी उन्नति के कार्य किए जाएँ और उसे गैर-उर्दू देशवासियों तक पहुँचाया जाए।

उर्दू शायरों, लेखकों और शिक्षकों का सम्मान

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दिल्ली में स्थित उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन और देश के कुछ कल्याणकारी संगठन उस दिन उर्दू शायरों, लेखकों और शिक्षकों को पुरस्कार प्रदान करते हैं[1]

उर्दू दिवस बदलने की वकालत

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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषाओं के केन्द्र और अखिल भारतीय कॉलेज एवं विश्वविद्यालय उर्दू शिक्षक संघ ने माँग की है कि ३१ मार्च को उर्दू दिवस मनाया जाना चाहिए। इसका कारण यह बताया गया है कि उस दिन उर्दू के लिए पंडित देव नारायण पाण्डेय और जय सिंह बहादुर ने अपनी जानों का बलिदान दिया था। ये दो लोग उर्दू मुहाफ़िज़ दस्ता के सदस्य थे। २० मार्च १९६७ को उत्तर प्रदेश में देव नारायण पाण्डेय कानपुर कलेकटर के कार्यालय के समक्ष धरना दिए थे और भूख हड़ताल पर बैठे थे, जबकि सिंह ने राज्य विधान सभा के समक्ष धरना और भूख हड़ताल की। देव नारायण पाण्डेय का देहान्त ३१ मार्च को हुआ जबकि सिंह इसके कुछ दिनों बाद गुज़र गए।[2]

इन्हें भी देखिए

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  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 नवंबर 2018.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 7 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 नवंबर 2018.