व्यूह
युद्ध के समय की जाने वाली सेना की स्थापना (विन्यास) व्यूह कहलाता है। अर्थात् लड़ाई के समय की अलग उपयुक्त स्थानों पर की गयी सेना के भिन्न भिन्न अंगों (संसाधनों) की नियुक्ति, ताकि विद्यमान संसाधनों से अधिकतम फल प्राप्त किया जा सके। महाभारत युद्ध में कौरवों ने अभिमन्यु को फंसाने के लिये 'चक्रव्यूह' नामक व्यूह की रचना की थी। पाण्डवों को पता था कि भीष्म 'मकरव्यूह' के द्वारा रक्षित हैं, इसलिए पाण्दवों ने इस व्यूह के विरुद्ध 'श्येनव्यूह' की रचना की जिसमें भीम 'मुख'स्थान पर थे, अर्जुन गर्दन के स्थान पर थे, और युधिष्ठिर उसके 'पुच्छ'स्था' (पिछले भाग) को संभाल रहे थे। [1]
प्राचीन काल में युद्धक्षित्र में लड़ने के लिये पैदल, अश्वारोही, रथ और हाथी आदि कुछ खास ढ़ंग से और खास-खास मौकों पर रखे जाते थे, और सेना का यही स्थापन व्यूह कहलाता था। आकार आदि के विचार से ये व्यूह कई प्रकार के होते थे जैसे,— दण्डव्यूह, शकटव्यूह, वराहव्यूह, मकरव्यूह, सूचीव्यूह, पद्मव्यूह, अर्धचन्द्रव्यूह, चक्रव्यूह, वज्रव्यूह, गरूड़व्यूह या श्येनव्यूह, मण्डलव्यूह, धनुर्व्यूह, सर्वतोभद्रव्यूह आदि। राजा या सेना का प्रधान सेनापति प्रायः व्यूह के मध्य में रहता था और उसपर सहसा आक्रमण नहीं हो सकता था। जब इस प्रकार सेना के सब अंग स्थापित कर दिए जाते थे, तब शत्रु सहसा उन्हें छिन्न भिन्न नहीं कर सकते थे।
सैनिकों की स्थिति का क्रम टूटना व्यूहभंग या व्यूहभेद कहलाता था।
- शब्दावली
- दण्डव्यूह -- दण्डे के जैसी रचना,
- शकटव्यूह -- शकट (गाड़ी) जैसी व्यूहरचना
- वराहव्यूह -- सूअर के तुल्य आकृति वाला व्यूह
- मकरव्यूह -- मगरमच्छ जैसा व्यूह
- सूचीव्यूह -- सूई जैसा व्यूह,
- पद्मव्यूह -- कमल की पंखुड़ियों के आकार से मिलता हुआ व्यूह,
- चक्रव्यूह -- वृत्ताकार या चक्राकार व्यूह,
- वज्रव्यूह -- सैनिकों का एक त्रिस्तरीय व्यूह
- गरुड़व्यूह (श्येनव्यूह) -- बाज पक्षी के आकार जैसा व्यूह,
- मण्डलव्यूह --
- धनुर्व्यूह -- धनुष के आकार का व्यूह
- अर्धचन्द्रच्यूह -- आधे चन्द्रमा के आकार का व्यूह,
- सर्वतोभद्रव्यूह -- महान व्यूह
- ऊर्मिव्यूह -- समुद्र की लहरों के गुण वाला व्यूह
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Mahabharata Vol.5. Penguin U.K. June 2015. p. 288. ISBN 9788184756814.