योग दर्शन में शक्तिपात एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा गुरु अपनी आध्यात्मिक शक्ति शिष्य में स्थापित करता है। शक्तिपात एक गुप्त मन्त्र के द्वारा किया जा सकता है या आँख द्वारा देखकर या विचार द्वारा या स्पर्श द्वारा।

शक्तिपात, कुंडलिनी तंत्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। यह कुंडलिनी जागृत करने की एक सरल व शीघ्र विधि हैं। प्राचीन काल से, यह विधि गुरूओ के द्वारा अपने शिष्यों को दी जा रही है। इसमें गुरु शिष्य को एक गुप्त मंत्र देते हैं और साथ में शिष्य को मां शक्ति व महादेव शिव की साधना करने के लिए कहते हैं;और यदि कुंडलिनी जागृत करने में शिष्य को कोई बाधा या समस्या उत्पन्न होती है, तो गुरु शिष्य को शक्तिपात देते हैं। इसमें सक्षम व दक्ष गुरु जिसकी स्वयं की कुंडलिनी जागृत होती है, वह शिष्य के त्रिनेत्र को अपने अंगुष्ठ से स्पर्श कर, अथवा मानसिक या दूर से हस्त के द्वारा ब्रह्मांडीय माता कुंडलिनी शक्ति की ऊर्जा को प्रवाह करते हैं। इससे साधक को कुंडलिनी शक्ति जागरण का अस्थायी अनुभव प्राप्त होता है। यदि साधक साधना के उच्च स्तर पर है तो वह कुंडलिनी जागृत रख सकता है। इसको जीवन पर्यन्त जागृत रखने के लिए, साधक को नित्य साधना में अभ्यासरत रहना चाहिए।

शक्तिपात के विभिन्न प्रकार संपादित करें

काश्मीरी शैव सम्प्रदाय में शक्तिपात के निम्नलिखित प्रकार हैं-

  • तीव्र-तीव्र-शक्तिपात
  • तीव्र-मध्य-शक्तिपात
  • तीव्र-मन्द-शक्तिपात
  • मध्य-तीव्र-शक्तिपात
  • मध्य-मध्य-शक्तिपात
  • मध्य-मन्द-शक्तिपात
  • मन्द-मन्द-शक्तिपात
  • मन्द-मध्य-शक्तिपात
  • मन्द-तीव्र-शक्तिपात