शिवसिंह सेंगर (संवत् 1890-1935 वि.) हिन्दी के इतिहास लेखक थे।

शिवसिंह सेंगर ग्राम कांथा जिला उन्नाव के जमींदार श्री रणजीतसिंह के पुत्र थे। वे पुलिस इंस्पेक्टर होते हुए भी संस्कृत, फारसी और हिंदी कविता के अध्येता, रसिक काव्यप्रेमी तथा स्वयं भी कवि थे। "ब्रह्मोत्तर खंड" और "शिवपुराण" का हिंदी अनुवाद करने के अतिरिक्त आपकी प्रसिद्धि हिंदी कविता के पहले इतिहासग्रंथ "शिवसिंह सरोज" (रचनाकाल सं. 1934 वि.) लिखने के कारण है। हिन्दी साहित्य में उनकी अपार निष्ठा थी। उनका निजी पुस्तकालय हिन्दी साहित्य की पुस्तकों से भरा था। जब बहुत सारी पुस्तकें जमा हो गईं तो उनके मन में आया कि इन ग्रन्थों और कवियों का परिचय दिया जाय।

इस अनूठे साहित्यसेवी का देहावसान 1879 ई. में मात्र 45 वर्ष की आयु में हुआ।

शिवसिंह सरोज

संपादित करें

शिवसिंह सरोज, शिवसिंह सेंगर द्वारा रचित हिन्दी कविता का पहला इतिहासग्रन्थ है। इसमें लगभग एक सहस्र कवियों के जीवन और काव्य का अत्यन्त संक्षिप्त परिचय है। कवियों के जीवनकाल आदि के सम्बन्ध में कुछ त्रुटियों के होते हुए भी, जिनका अपने ढंग के पहले ग्रंथ में होना बहुत स्वाभाविक है, |इन्होंने कॉलकर्म अनुसार कवियों के नाम लिखे व अपनी पुस्तक में 1000 कवियों को स्थान दिया इन्होंने कारल विभाजन नहीं किया वह उर्दू के कवियों को स्थान दिया| इस कृति के लिए हिन्दी जगत् सर्वदा उनका आभारी रहेगा। डॉ॰ ग्रियर्सन का "माडर्न वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑव हिंदुस्तान" "शिवसिंह सरोज" पर ही लगभग आधारित है। आज भी यह कृति हिन्दी कविता के इतिहास के लिये संदर्भग्रन्थ बनी हुई है।

किसी भारतीय विद्वान द्वारा लिखा गया यह प्रथम हिन्दी-इतिहास है। यह ग्रन्थ हिन्दी विद्वानों में बहुचर्चित रहा है। डॉ रामचन्द्र शुक्ल ने इस ग्रन्थ से काफी सहायता ली है। शिवसिंह सरोज का पहला प्रकाशन सन् १८७८ में हुआ। १८८३ में इसका तृतीय संस्करण प्रकाशित हुआ। इससे इसकी लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है। सन् १९२६ में इसका सातवाँ संस्करण प्रकाशित हुआ। १९७० में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से इसका नवीनतम संस्करण प्रकाशित हुआ है।

‘शिवसिंह सरोज’ क्यों लिखा गया, इसका उत्तर लेखक ने इस पुस्तक की भूमिका में दे दिया है-

मैंने सन् 1876 ई. में भाषा कवियों के जीवन चरित्र विषयक एक-दो ग्रंथ ऐसे देखे जिनमें ग्रंथकर्ता ने मतिराम इत्यादि ब्राह्मणों को लिखा था कि वे असनी के महापात्र भाट हैं । इसी तरह की बहुत सी बातें देख कर मुझसे चुप नहीं रहा गया । मैंने सोचा कि अब कोई ग्रंथ ऐसा बनाना चाहिए जिसमें प्राचीन और अर्वाचीन कवियों के जीवन चरित्र, सन्-संवत, जाति, निवास-स्थान आदि कविता के ग्रंथों समेत विस्तारपूर्वक लिखे हों।

सन् 1877-78 में उन्होंने ग्रंथों का गहराई से अध्ययन प्रारंभ किया और एक वर्ष और 3 महीने में ‘शिवसिंह सरोज’ का लेखन पूर्ण कर लिया।

संदर्भ ग्रन्थ

संपादित करें
  • मिश्रबंधु : "मिश्रबंधु विनोद";
  • रामनरेश त्रिपाठी : "कविता कौमुदी"

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें