शीलाभट्टारिका ९वीं शताब्दी की संस्कृत कवयित्री थीं। अधिकांश प्रमुख संस्कृत काव्य-संग्रहों में उनका काव्य सम्मिलित मिलता है। अनेक मध्यकालीन संस्कृत आलोचकों ने उनके काव्यकौशल की प्रशंसा की है।

१०वीं शताब्दी के कवि राजशेखर ने शीलाभट्टारिका को पाञ्चाली शैली की प्रमुख कवयित्री कहकर उनकी प्रशंसा की है। उस समय साहित्य की चार शैलियाँ प्रमुख थीं- वैदर्भी, गौड़ी, लाटी एवं पाञ्चाली। १५वीं शताब्दी में रचित सुभाषितावली में राजशेखर को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि पाञ्चाली शैली में शब्द और अर्थ का संतुलन होता है। राजशेखर ने लिखा है कि पाञ्चाली शैली शीलभट्टारिका के काव्य में मिलती है तथा बाणभट्ट के कुछ ग्रन्थों में भी पांचाली शैली के दर्शन होते हैं।