द्रौपदी
द्रौपदी महाभारत के अनुसार पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री थी। वह पंचकन्याओं में से एक थी जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता था। कृष्णेयी, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री, पांचाली, अग्निसुता आदि अन्य नामो से भी विख्यात थी। वह पाण्डु पुत्रो ( युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल सहदेव की भार्या हुई।
द्रौपदी | |
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सतीत्व, पवित्रता कि देवी | |
![]() हस्तिनापुर की राजसभा में लेजाते समय द्रोपदी जी | |
अन्य नाम | कृष्णा, यज्ञसेनी, पांचाली, द्रुपदकन्या |
संबंध | कुरु रानी, पंचकन्या, देवी |
जीवनसाथी | युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव |
माता-पिता | द्रुपद (पिता) पृशति (माता) |
भाई-बहन |
धृष्टद्युम्न (जुड़वा भाई) शिखंडी (बहन) सत्यजीत (भाई) |
संतान |
प्रतिविन्ध्य |
शास्त्र | महाभारत |
सन्दर्भ वाल्मीकि रामायण (world Laibrary British government)[1]
विदेशी आक्रांताओं मैक्समूलर आदि ने भारत की संस्कृतिक विरासत ज्ञान को नष्ट करने के लिए हमारे पौराणिक इतिहास को अशुद्ध किया जान बुझ कर नष्ट करने के इरादे से अर्थ का अनर्थ लिखा और कुछ विद्वानों ने अज्ञान वश कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास के लिखे महाभारत जो जटिल देवनागरी लिपि में लिखी गई थी उसका आधा अधूरा अशुद्ध गलत अनुवाद किया है या गलत चीजें नवीन संस्करणों में जोड़ दी हैं, पांचल्य या कांपिल्य राज्य (वर्तमान kampil फर्रूखाबाद उत्तर प्रदेश) के राजा द्रुपद की एक नहीं बल्कि 5 पुत्रियां थीं, जिनके नाम अलग अलग थे, राजा द्रुपद की पुत्रियां होने के कारण उन सभी को द्रोपदी कहा गया, जिसका स्वयंवर था उसका नाम माधवी/प्रगति (असली द्रोपदी)था स्वयंवर में अर्जुन ने इन्हीं से विवाह किया था और अन्य 4 पुत्रियों का विवाह उसी स्वयंवर में पांडवों से हुआ था सुथानु (युधिष्ठिर की पत्नी), शमयुक्तना (भीम की पत्नी), प्रगति (अर्जुन की पत्नी), प्रिंता (नकुल की पत्नी), सुमित्रा (सहदेव की पत्नी)। युधिष्ठिर,भीम,नकुल, सहदेव से हुआ था, अर्जुन की पत्नी (माधवी)द्रोपदी का ही चीरहरण हुआ था, जिसके कारण महाभारत युद्ध हुआ था
पूर्व जन्म
संपादित करेंद्रौपदी पूर्वजन्म में मुद्गल ऋषि की पत्नी थी उनका नाम मुद्गलनी / इंद्रसेना था। उनके पति की अल्पायु में मृत्यु उपरांत उसने पति पाने की कामना से तपस्या की। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसे वर देने की इच्छा की। उसने भगवान शंकर से पाँच बार कहा कि वह सर्वगुणसंपन्न पति चाहती है जो सर्वोच्च धर्मवान, सबसे सुंदर, सर्व बलशाली, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर, सर्वश्रेष्ठ तलवार विद्या निपुण हो तब भगवान शंकर ने कहा कि अगले जन्म में उसे 5 गुणों से भरा पति मिलेगा। क्योंकि उसने पति पाने की कामना पाँच बार दोहराई थी, सारे गुण एक और यह सर्वगुणसंपन्न एक में सम्भव भी नहीं।।[2]
जन्म
संपादित करेंप्राचीन भारत के महाकाव्य महाभारत के अनुसार द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के द्वारा गुरु द्रोणाचार्य से अपमान का बदला लेने हेतु कराए गए यज्ञ के उपरांत हुआ था।
गुरु द्रोणाचार्य द्वारा महाराज द्रुपद को बंदी बनाया जाना
संपादित करेंजब पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण हो गई तो उन्होंने द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा देनी चाही। द्रोणाचार्य को द्रुपद के द्वारा किये गये अपने अपमान का स्मरण हुआ और उन्होंने राजकुमारों से कहा, "राजकुमारों! यदि तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो पांचाल नरेश द्रुपद को बन्दी बना कर मेरे समक्ष प्रस्तुत करो। यही तुम लोगों की गुरुदक्षिणा होगी।" गुरुदेव के इस प्रकार कहने पर समस्त राजकुमार अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र ले कर पांचाल देश की ओर चले।
पांचाल पहुँचने पर अर्जुन ने द्रोणाचार्य से कहा, "गुरुदेव! आप पहले कौरवों को राजा द्रुपद से युद्ध करने की आज्ञा दीजिये। यदि वे द्रुपद को बन्दी बनाने में असफल रहे तो हम पाण्डव युद्ध करेंगे।" गुरु की आज्ञा मिलने पर दुर्योधन के नेतृत्व में कौरवों ने पांचाल पर आक्रमण कर दिया। दोनों पक्षों के मध्य भयंकर युद्ध होने लगा किन्तु अन्त में कौरव परास्त हो कर भाग निकले। कौरवों को पलायन करते देख पाण्डवों ने आक्रमण आरम्भ कर दिया। भीमसेन तथा अर्जुन के पराक्रम के समक्ष पांचाल नरेश की सेना हार गई। अर्जुन ने आगे बढ़ कर द्रुपद को बन्दी बना लिया और गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष ले आए।[3]
द्रुपद को बन्दी के रूप में देख कर द्रोणाचार्य ने कहा, "हे द्रुपद! अब तुम्हारे राज्य का स्वामी मैं हो गया हूँ। मैं तो तुम्हें अपना मित्र समझ कर तुम्हारे पास आया था किन्तु तुमने मुझे अपना मित्र स्वीकार नहीं किया था। अब बताओ क्या तुम मेरी मित्रता स्वीकार करते हो?" द्रुपद ने लज्जा से सिर झुका लिया और अपनी भूल के लिए क्षमायाचना करते हुए बोले, "हे द्रोण! आपको अपना मित्र न मानना मेरी भूल थी और उसके लिये अब मेरे हृदय में पश्चाताप है। मैं तथा मेरा राज्य दोनों ही अब आपके आधीन हैं, अब आपकी जो इच्छा हो करें।" द्रोणाचार्य ने कहा, "तुमने कहा था कि मित्रता समान वर्ग के लोगों में होती है। अतः मैं तुमसे बराबरी का मित्र भाव रखने के लिए तुम्हें तुम्हारा आधा राज्य लौटा रहा हूँ।" इतना कह कर द्रोणाचार्य ने गंगा नदी के दक्षिणी तट का राज्य द्रुपद को सौंप दिया और शेष को स्वयं रख लिया।[4]
अपमान का बदला लेने हेतु यज्ञ उपरांत धृष्टद्युम्न और यज्ञसेनी द्रौपदी का जन्म
संपादित करेंगुरु द्रोण से पराजित होने के उपरान्त महाराज द्रुपद अत्यन्त लज्जित हुए और उन्हें किसी प्रकार से नीचा दिखाने का उपाय सोचने लगे। इसी चिन्ता में एक बार वे घूमते हुए कल्याणी नगरी के ब्राह्मणों की बस्ती में जा पहुँचे। वहाँ उनकी भेंट याज तथा उपयाज नामक महान कर्मकाण्डी ब्राह्मण भाइयों से हुई। राजा द्रुपद ने उनकी सेवा करके उन्हें प्रसन्न कर लिया एवं उनसे द्रोणाचार्य के मारने का उपाय पूछा। उनके पूछने पर बड़े भाई याज ने कहा, "इसके लिए आप एक विशाल यज्ञ का आयोजन करके अग्निदेव को प्रसन्न कीजिये जिससे कि वे आपको वे महान बलशाली पुत्र का वरदान दे देंगे।" महाराज ने याज और उपयाज से उनके कहे अनुसार यज्ञ करवाया। यज्ञ के उपरांत एक पुत्र का जन्म हुआ जो संपूर्ण आयुध एवं कवच कुण्डल से युक्त था और एक जुड़वा कन्या उत्पन्न हुई जिसके नेत्र खिले हुये कमल के समान देदीप्यमान थे, भौहें चन्द्रमा के समान वक्र थीं तथा उस सुन्दर तेजस्वी अग्नि पुत्री तेजस्वी कन्या का वर्ण थोड़ा श्यामल था। बालक का नाम धृष्टद्युम्न एवं बालिका का नाम द्रौपदी रखा गया। यज्ञ द्वारा उत्पन्न होने पर द्रौपदी, ‘यज्ञसेनी’ भी कहलाई।
विवाह
संपादित करेंद्रौपदी के स्वयवर की शर्त बहुत कठोर थी जिसे कोई भी नही तोड़ सका कर्ण जो अंग देश का राजा था वो ये प्रतियोगिता जीत सकता था पर उसे अवसर नही दिया गया अंत मे अर्जुन ने ये शर्त जीती। शर्त जीतने के उपरांत कौरवों और उपस्थित राजाओं ने पांडवों को द्रौपदी को ले जाने से रोकना चाहा, जिसका सभी पांडवों ने डट कर सामना किया, जिसके फलस्वरूप वे द्रौपदी को ले जाने में सफल रहे।
द्रौपदी सहित कुटिया पहुँचने पर जब पांडवों ने बाहर से ही कहा की माता देखो हम क्या लाए है तो बिन देखे ही कुंती ने कहा कि जो लाए हो आपस मे बाँट लो। माता की आज्ञा का निरादर नही करना चाहते थे, परंतु उन्हे अहसास था कि ऐसा करना ठीक नही होगा। परिणाम स्वरूप, कुंती ने द्रौपदी को पांचो पांडवों में से एक को चुनने के लिए कहा। द्रौपदी ने युधिष्ठिर को चुना।
पाणिग्रहण संस्कार के लिए जब कुंती समेत पांडवो ने पांचाल नरेश द्रुपद के पास जाकर सारा वृत्तांत सुनाया, तब ऋषि ने द्रौपदी के पूर्व जन्म की कथा सुनाई, जिसके उपरांत द्रुपद ने औपचारिक रूप से पांचो पांडवों के साथ द्रौपदी का पाणिग्रहण संस्कार संपन्न किया।
द्रौपदी का चीर हरण
संपादित करेंमहाभारत में युधिष्ठिर सब कुछ हार ने के बाद उन्होंने द्रौपदी को दाँव पर लगा दिया और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्युत में अग्नि पुत्री द्रोपदी को जीत लिया। उस समय दुशासन द्रौपदी को बालों को पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया। जब वहाँ द्रौपदी का अपमान हुआ अंगराज कर्ण ने भी दुर्योधन की मित्रता के अनैतिक प्रभाव में अपमान के शब्द बोले। तब भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोग भी बैठे थे लेकिन वहाँ मौजूद सभी बड़े दिग्गज मुँह झुकाए बैठे रह गए। इन सभी को उनके मौन रहने का दंड भी मिला।[5] भगवान श्रीकृष्ण ने पांचाल नरेश ध्रुपद की पुत्री द्रौपदी को प्रश्न के उत्तर में कहा कि तीनों ने दुर्योधन को अन्नदाता समझ लिया था इसीलिए उसे रोकने के लिए पर्याप्त नैतिक धर्मोचित साहस नहीं कर सके।
दुर्योधन के आदेश पर दुशासन ने सभा के सामने ही द्रौपदी का वस्त्र (चीर) हरण करना चाहा। परंतु श्री कृष्ण ने हस्तक्षेप करके चीर हरण को रुकवाया।
सन्दर्भ
संपादित करेंसुखसागर के सौजन्य से
- ↑ Regier, Willis Goth (1997-12). "The Ramayana of Valmiki. Volume 4. Kiskindhakanda, and: The Ramayana of Valmiki. Volume 5. Sundarakanda (review)". MLN. 112 (5): 994–998. doi:10.1353/mln.1997.0070. ISSN 1080-6598.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 1 जुलाई 2016. Retrieved 2 अगस्त 2016.
- ↑ नवभारतटाइम्स.कॉम (2019-01-27). "Page 4 : दुर्योधन नहीं दे पाया, लेकिन अर्जुन ने द्रोणाचार्य को दी ऐसी गुरुदक्षिणा". नवभारत टाइम्स. Archived from the original on 14 नवंबर 2019. Retrieved 2020-06-07.
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(help) - ↑ shashikant (2019-11-09). "द्रोणाचार्य और द्रुपद बचपन में थे मित्र, राजा बनने के बाद द्रुपद ने किया था द्रोणाचार्य का अपमान". Dainik Bhaskar. Archived from the original on 29 मई 2020. Retrieved 2020-06-07.
- ↑ जोशी, अनिरुद्ध. "draupadi | चीरहरण के समय श्रीकृष्ण द्वारा द्रौपदी की लाज बचाने के पीछे दो कारण थे, जानकर चौंक जाएंगे". hindi.webdunia.com. Archived from the original on 25 मई 2019. Retrieved 2020-06-08.
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