श्रीकृष्ण कीर्तन काव्य (असमिया: শ্ৰীকৃষ্ণকীৰ্তন কাব্য, बांग्ला: শ্রীকৃষ্ণকীর্তন কাব্য) बरु चण्डीदास द्वारा लिखित एक ग्रामीण वैष्णव नाट है, जो कृष्ण और राधा की कहानी का वर्णन करती है। इस ग्रन्थ को चर्यापदों के बाद लिखे जाने वाली, असमिया एवं बांग्ला भाषाओं की सबसे महत्वपूर्ण रचनाओं मे से एक माना जाता है।[1] अनुमान किया जाता है कि यह ग्रन्थ १४वी शताब्दी के प्रथमार्ध मे लिखी गयी थी, चैतन्य महाप्रभु के पेहले।

प्रकाशन का इतिहास संपादित करें

सन १९०९ मे बसन्त रंजन राय विद्वत्बल्लभ ने बांकुरा के देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय के गौशाला से इस ग्रन्थ के पुथि (हस्तलिपि) का उद्धार किया था। क्योंकि इस ग्रन्थ के पन्ने फटे हुए थे और इसके प्रथम तथा शेष पन्ने मिले ही नही थे, इस ग्रन्थ का वास्तव नाम जाना नही जा सका। हस्तलिपि के अंदर के पर्ची से यह पता चला कि इस हस्तलिपि को पेहले बिष्णुपुर के राजकीय ग्रन्थागार मे "श्री कृष्ण संदर्भ" नाम से संचय किया गया था। बाद मे १९१६ सन मे विद्वत्बल्लभ ने इसको सम्पादित कर वंगीय साहित्य परिषद के माध्यम से श्री कृष्ण कीर्तन के नाम से प्रकाशित किया।

मूल संपादित करें

श्री कृष्णकीर्तन लिखते समय बरु चण्डीदास विष्णु पुराण तथा लोककथाओं से प्रभावित हुए थे।[2] तदोपरि, वे जयदेव के गीतागोविंदं से भी प्रभावित हुए थे। पद्म पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण तथा अन्य वैष्णव साहित्य का प्रभाव भी श्रीकृष्ण कीर्तन मे दिखता है। लिखनशैली उस समय के लोकसाहित्य से मेल खाती है। असमिया शब्द जैसे বাটে বাটে (बाटे बाटे), আছিলা (आसिला), আই (आइ), পেলাইয়া (पेलाइया) तथा असमिया लिपि के 'ৰ' (र) अक्षर का भी प्रयोग देखा जाता है।

अंतर्वस्तु संपादित करें

श्री कृष्ण कीर्तन मे ४१८ असमिया या बांग्ला भाषा के पद तथा १३३ संस्कृत भाषा के श्लोक है, जिसमे से २८ श्लोक दो बार उल्लिखित है। असमिया/ बांग्ला भाषा के ४१८ श्लोकों मे से ४०९ मे लेखक का नाम उल्लिखित है। इस कर्म को १३ खण्डों मे बांटा गया है: जन्म, तम्वुल (सुपारी, जिसे असम मे प्रेम का भेंट माना जाता है), दान, नौका, भार, वृंदावन, यमुना, बाण, बंशी और राधा विरह। आखरी खण्ड का नाम लेखक ने उल्लेख नही किया है।[3] यमुना खण्ड को तीन भागो मे विभक्त किया गया है: प्रथम कै कालिया दमन, दूसरे का नाम हस्तलिपि मे नही मिला था और तीसरा है हार खण्ड। दूसरे खण्ड का विषयवस्तु है राधा का वस्त्रहरण। भार खण्ड का भी एक उपखण्ड है: छत्त्र खण्ड।

ग्रन्थ मे तीन मूल चरित्र है: कृष्ण, राधा और बदयी। चरित्रों के बीच मे वार्तालाप पायर और त्रिपदी पद्य मे हुए है, जिससे नाटकीय रस अधिक पूठता है।

श्रीकृष्णकीर्तन काब्य का बार-बार उद्धृत मर्मस्पर्शी एक पद देखिये-

के ना बाँशि बाए बड़ाय़ि कालिनी नइ कूले।
के ना बाँशि बाए बड़ाय़ि ए गोठ गोकुले।
आकुल शरीर मोर बेयाकुल मन।
बाँशीर शबदेँ मो आउलाइलोँ बान्धन।
के ना बाँशि बाए बड़ायि से ना कोन जना।
दासी हुआँ तार पाए निशिबोँ आपना।
के ना बाँशि बाए बड़ायि चित्तेर हरिषे।
तार पाए बड़ायि मोँ कैलोँ कोन दोषे।
आझर झरए मोर नयनेर पाणी।
बाँशीर शबदेँ बड़ायि हारायिलोँ पराणी।

कहानी संपादित करें

श्रीकृष्ण कीर्तन की कहानी भागवत्पुराण पर आधारित नही है। यह कहानिया वास्तव मे लोक कथा का हिस्सा है जो कृष्ण और राधा के बीच कामुक कहानिया है, जिंहे धेमालि कहा जाता है।[4] इसके बावजूद बरु चण्डीदास ने श्रीकृष्ण कीर्तन मे वृहत्परिमाण मे नई चीजे योग किया, जो इस ग्रन्थ को मध्यकालीन असमिया और बांग्ला साहित्य के श्रेष्ठ कर्मों मे से एक बनाती है।

टिप्पणियाँ संपादित करें

  1. (Saikia 1997, p. 5)
  2. Sen, Sukumar (1991, reprint 2007). Bangala Sahityer Itihas, Vol.I, (Bengali में), Kolkata: Ananda Publishers, ISBN 81-7066-966-9, pp.120-154
  3. Sen, Sukumar (1991, reprint 2007). Bangala Sahityer Itihas, Vol.I, (Bengali में), Kolkata: Ananda Publishers, ISBN 81-7066-966-9, pp.120-154
  4. Sen, Sukumar (1991, reprint 2007). Bangala Sahityer Itihas, Vol.I, (Bengali में), Kolkata: Ananda Publishers, ISBN 81-7066-966-9, pp.120-154
  • Saikia, Nagen (1997). "Medieval Assamese Literature". प्रकाशित Ayyappa Panicker, K (संपा॰). Medieval Indian Literature: Assamese, Bengali and Dogri. 1. New Delhi: Sahitya Akademi. पपृ॰ 3–20. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788126003655.

बाहरी संबंध संपादित करें