श्रीपति
श्रीपति (१०१९ - १०६६) भारतीय खगोलज्ञ तथा गणितज्ञ थे। वे ११वीं शताब्दी के भारत के सर्वोत्कृष्ट गणितज्ञ थे।
जीवन परिचय
संपादित करेंश्रीपति के पिता का नाम नागदेव था (कहीं कहीं 'नामदेव' भी मिलता है) तथा उनके दादा का नाम केशव था। खगोलशास्त्र, ज्योतिष तथा गणित में श्रीपति लल्ल के अनुयायी थे। गणित पर किये गये उनके कार्य खगोल में उपयोग को ध्यान में रखकर किये गये थे। उदाहरण के लिये, गोलों का अध्ययन खगोलिकी में उपयोग को दृष्टिगत रखकर ही किया गया था। खगोलिकी से सम्बन्धित उनके ग्रन्थ उनके ज्योतिष (astrology) के कार्यों को आधार प्रदान करने के लिये किये गये थे।
कृतियाँ
संपादित करें- धीकोटिदकरण -१०३९ में रचित ; २० श्लोकों से युक्त ; सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण से सम्बन्धित हैं।
- ध्रुवमानस - १०५६ में रचित ; १०५ श्लोक ; ग्रहों के रेखांश (longitudes), ग्रहण तथा मार्ग (transits) की गणना दी गयी है।
- सिद्धान्तशेखर - खगोलिकी से सम्बन्धित १९ अध्यायों वाला वृहद ग्रन्थ ।
- गणिततिलक - अपूर्ण अंकगणितीय ग्रन्थ, जिसमें १२५ श्लोक हैं। यह श्रीधराचार्य के ग्रन्थों पर आधारित है।
- दैवज्ञवल्लभ - ज्योतिष ग्रन्थ
- जातककर्मपद्धति - ज्योतिष ग्रन्थ
- ज्योतिषरत्नमाला - ज्योतिष ग्रन्थ
- ज्योतिषरत्नमालाटीका - ज्योतिषरत्नमाला की टीका
कुछ विद्वानों के मतानुसार इन ग्रन्थों की रचनाकार श्रीपति ही हैं-[1]
- सुधाकर द्विवेदी के अनुसार -- बीजगणित, पाटीगणित
- मजुमदर के अनुसार -- बीजगणित, पाटीगणित, रत्नावली और रत्नसार
- कपाड़िया के अनुसार -- बीजगणित
- बबुआजी मिश्र -- श्रीपतिनिबन्धः, श्रीपतिसमुच्चय, रत्नसार
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
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