श्वा
भाषाविज्ञान और स्वानिकी में श्वा (अंग्रेजी: schwa) मध्य-केंद्रीय स्वर वर्ण को कहते हैं। इस वर्ण को देवनागरी में 'अ' लिखा जाता है और अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसे [ə] के चिह्न से दर्शाया जाता है।
देवनागरी और श्वा
संपादित करेंदेवनागरी के व्यंजनों में सामान्यतः एक निहित श्वा ('अ') की ध्वनि मानी जाती है। उदाहरणतः अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला के अनुसार 'क' को [kə] पढ़ा जाता है, न कि केवल [k]। यदि किसी व्यंजन से यह श्वा की धवनी हटानी हो तो हलन्त् के चिह्न ('्') का प्रयोग किया जाता है, अथवा श्वा-रहित अक्षर के अर्ध रूप का प्रयोग किया जाता है, जैसे की 'क्या' शब्द में 'क्' वर्ण के अर्ध रूप का उपयोग होता है व इस में यह वर्ण श्वा-रहित है।
श्वा विलोपन
संपादित करेंहिंदी और बहुत सी अन्य आधुनिक हिन्द-आर्य भाषाओँ में कईं स्थानों में देवनागरी के व्यंजनों के निहित श्वा का विलोपन अनिवार्य है।[1] यद्यपि देवनागरी लिपि में अक्षरों और ध्वनियों का अन्य लिपियों की तुलना में बहुत घनिष्ठ संंबन्ध है, परन्तु कई हिंद-आर्य भाषाएँ कुछ इस प्रकार विकसित हुईं हैं कि कई स्थानों में बिना हलन्त का प्रयोग करे ही हलन्त लागू होता है।[2] यह श्वा विलोपन नियम (अंग्रेजी: schwa deletion rule) सही उच्चारण के लिए आवश्यक है और बिना इसे करे या तो बोलने वाले को समझने में कठिनाई होती है या उसके बोलने का स्वर विचित्र लगता है।[3]
शब्द | उचित उच्चारण | लिप्यन्तरण | अनुचित लिप्यन्तरण | टिप्पणी |
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जलन | जलन् | jalan | jalana | आँखों में जलन - अंतिम अक्षर 'न' पर हलन्त न लगे होने के बावजूद हलन्त-जैसा उच्चारण अनिवार्य है |
जलना | जल्ना | jalnā | jalanā | आँखों का जलना - इस रूप में शब्द के मध्य अक्षर 'ल' पर न लिखे होने पर भी हलन्त लगता है |
धड़कने | धड़क्ने | dhaṛakne | dhaṛakane | दिल धड़कने लगा - यहाँ 'ड़' पर श्वा ग्रहण लागू है |
धड़कनें | धड़्कने | dhaṛkaneṅ | dhaṛakaneṅ | दिल की धड़कनें - यहाँ 'ड़' पर श्वा ग्रहण लागू है |
नमक | नमक् | namak | namaka | अहिन्दी लहजे से बोलने वाले अंतिम वर्ण ('क') पर कभी-कभी श्वा विलोपन नहीं करते जो हिन्दी मातृभाषियों को 'नमका' सा प्रतीत होता है |
नमकीन | नम्कीन् | namkīn | namakīna | नमक में 'क' पर श्वा विलोपन हुआ था, लेकिन 'नमकीन' में श्वा विलोपन, शब्द के मध्य में 'म' और शब्द के अंत में 'न' पर है; अहिन्दी लहजे से बोलने वाले इन वर्णों पर कभी-कभी श्वा ग्रहण नहीं करते जो हिन्दी मातृभाषियों को 'नमाकीना' सा प्रतीत होता है |
उत्तर प्रदेश | उत्तर् प्रदेश् | uttar pradesh | uttara pradesha | अहिन्दी लहजे से बोलने वाले इन वर्णों पर कभी-कभी श्वा विलोपन नहीं करते जो हिन्दी मातृभाषियों को 'उत्तरा प्रदेशा' सा प्रतीत होता है |
तुलसी | तुल्सी | tulsī | tulasī | शब्द के मध्य वाले 'ल' पर श्वा विलोपन न करने से शब्द हिन्दी मातृभाषियों को 'तुलासी' सा प्रतीत होता है |
पलक | पलक् | palak | palaka | आँख की पलक - एकवचन शब्द 'पलक' में 'क' पर श्वा विलोपन है |
पलकें | पल्कें | palkeṅ | palakeṅ | आँखों की पलकें - बहुवचन शब्द 'पलकों' में श्वा विलोपन 'क' से हट के 'ल' पर लग जाता है |
व्युत्पत्ति
संपादित करेंव्युत्पत्तिशास्त्र के नज़रिए से 'श्वा' शब्द मूलतः प्राचीन इब्रानी भाषा के 'शेवा' (इब्रानी: שְׁוָא) शब्द से उत्पन्न हुआ है। ध्यान रहे कि यद्यपि 'श्वा' का रूप संस्कृत के शब्द 'श्वास' से मिलता-जुलता है, इन दो शब्दों का वास्तव में कोई भी सम्बन्ध नहीं है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Larry M. Hyman, Victoria Fromkin, Charles N. Li (1988), Language, speech, and mind, Taylor & Francis, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0415003113, मूल से 28 मई 2013 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 14 मार्च 2011,
... The implicit /a/ is not read when the symbol appears in word-final position or in certain other contexts where it is obligatorily deleted (via the so-called schwa-deletion rule which plays a crucial role in Hindi word phonology ...
सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link) - ↑ Tej K. Bhatia (1987), A history of the Hindi grammatical tradition: Hindi-Hindustani grammar, grammarians, history and problems, BRILL, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9004079246, मूल से 28 मई 2013 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 14 मार्च 2011,
... Hindi literature fails as a reliable indicator of the actual pronunciation because it is written in the Devanagari script ... the schwa syncope rule which operates in Hindi ...
- ↑ Monojit Choudhury and Anupam Basu (July 2004), "A Rule Based Schwa Deletion Algorithm for Hindi" (PDF), Proceedings of the International Conference On Knowledge-Based Computer Systems, मूल से 21 जुलाई 2011 को पुरालेखित (PDF), अभिगमन तिथि 14 मार्च 2011,
... Without any schwa deletion, not only the two words will sound very unnatural, but it will also be extremely difficult for the listener to distinguish between the two, the only difference being nasalization of the e at the end of the former. However, a native speaker would pronounce the former as dha.D-kan-eM and the later as dha.Dak-ne, which are clearly distinguishable ...