संताजी जगनाडे

भारतीय वैष्णव संत (1624-1688)

संताजी जगनाडे (वैष्णव संत) (१६२४-१६८८), सन्त तुकाराम द्वारा गाए गए अभंगों को लिपिबद्ध करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे जाति से तेली थे और उन्हें 'संतु तेली' के नाम से भी जाना जाता है। संताजी के द्वारा रचित अभंगो को पांचवा वेद कहा जाता है। संत तुकाराम महाराज जो अभंग अपने कीर्तन में सुनाया करते थे संता जी उन्हें लिपिबद्ध करते थे।

मराठी तेली समाज रायपुर छत्तीसगढ़ में स्थापित संताजी की प्रतिमा
संतजी महाराज-जगन्नाडे-महाराज-समाधि-मंदिर-सुदुम्बारे

जीवन चरित

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श्री संताजी जगन्नाडे महाराज का जन्म ८ दिसम्बर १६२४ में चाकण गाँव में हुआ था जो वर्तमान समय में पुणे जिले के खेड़ तहसील में आता है। उनका जन्म जगन्नाडे परिवार में श्री विठोबा पंत और मथुबाई के यहाँ हुआ था। उनके घर का वातावरण आध्यात्मिक और धार्मिक था। उनके माता-पिता  विट्ठल भक्त थे। श्री संताजी की माता नियमित चक्रेश्वर के मंदिर जाती थीं। छोटे संताजी अपनी माँ के साथ प्रतिदिन मंदिर जाते थे।

ऐसे ही एक दिन, संताजी महाराज और उनकी माँ चक्रेश्वर मंदिर जा रहे थे। संता जी ने देखा सड़क पर  एक भिखारी सभी आने जाने वाले लोगो से भोजन की भीख मांग रहा था। संताजी ने अपनी माता जी को रुकने के लिए कहा व उनकी हाथो से भोग की थाली को ले कर उस गरीब भिखारी को दे दी।  ऐसा करने पर संताजी की माताजी ने उनसे  कहा अरे ये क्या पागलपन है, अब मै भगवान को किसका भोग लगाउंगी। इस पर, संताजी ने कहा," माँ, अगर हमने उन्हें यह भोजन नहीं दिया होता, तो वे मर जाते। माँ किसी भूखे को भोजन करवाना भगवान को भोजन कराने के सामान है। संता जी की बाते सुनकर माँ ने मुस्कुराते हुए कहा," इतनी छोटी सी उम्र में तुम्हारे अंदर इतने अच्छे विचार कहा से आये,  सन्तु?"

मराठी तेली समाज रायपुर छत्तीसगढ़ में स्थापित संताजी की प्रतिमा

शिक्षा एवं विवाह

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संता जी की शिक्षा घर पर ही उनके पिता द्वारा दी गई। चाकण उस समय एक प्रसिद्ध बाज़ार स्थल था। संताजी के पिता विठोबापंत जगन्नाडे खाद्य तेल के उत्पादक थे। संता जी ने १० वर्ष की आयु में ही अपने पारिवारिक व्यवसाय तेल उत्पादन सीखा लिया था। १२ वर्ष की आयु में उनका विवाह यमुनाबाई से हो गया। विवाह के समय यमुना बाई ८ वर्ष की थी।

संत तुकाराम महाराज से भेंट

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एक दिन संत तुकाराम महाराज  संताजी के गाँव में आए और चक्र धार मंदिर में भजन गाया जिसे सुनकर संता जी संत तुकाराम  से बहुत प्रभावित हो गए और परिवार छोड़कर उनके साथ जाने का फैसला कर लिया।  उस समय संता जी के माता-पिता के कहने पर तुकाराम जी ने उन्हें समझाया की परिवार में रहकर भी भगवान की प्राप्ति की जा सकती है। उसके बाद संताजी महाराज जगतगुरु तुकाराम महाराज के शिष्य बन गए। संत तुकाराम महाराज जो अभंग अपने कीर्तन में सुनाया करते थे संता जी उन्हें लिपिबद्ध करते थे, संता जी संत तुकाराम के छाया की तरह उनके साथ रहते थे। श्री संताजी जगन्नाडे महाराज  के सेवा भाव के करना संत तुकाराम महाराज ने श्री संताजी जगन्नाडे महाराज को उनके चौदह टाळकरी दल का एक प्रमुख टाळकरी बना दिया।

अभंग की रचना

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जैसे-जैसे  संत तुकाराम महाराज का प्रभाव लोगों पर बढ़ता जा रहा था,  कुछ ब्राह्मणों का व्यवसाय घट रहा था। इस कारण कुछ ब्राम्हणों ने मिलकर तुकाराम जी की रचनाओं का अपहरण करके इंद्रायणी नदी में जलमग्न करने की कोशिश की लेकिन संता जी ने हार नहीं मानी और  तुकाराम जी की सारी अभंग गाथा का  स्मरण करके उनकी  पुनः रचना की। इन रचनाओं को 'पांचवा वेद' कहा जाता है।

जब तुकाराम महाराज वैकुण्ठ जाने का समय आया तो  संता जी ने उनके साथ वैकुण्ठ जाने की इच्छा जताई। तब तुकाराम जी ने उनसे कहा की अभी तुम्हारा काम यहाँ पूरा नहीं हुआ है। तुम्हे अभंग रचनाओं को जन-जन तक पहुंचना है और उन्हें सही रास्ता दिखाना है। तब संता जी ने उनसे वचन लिया कि जब उनका समय वैकुण्ठ जाने का आएगा तब स्वयं वे उन्हें लेने आएंगे। तुकाराम जी ने संता जी को वचन दिया ओर वैकुण्ठ चले गए।

तुकाराम महाराज के वैकुण्ठ जाने  के बाद संता जी ने उनके अभंग रचनाओं को जन जन तक पहुंचाया।

एक बार उनकी पत्नी यमुना बाई अपने मायके गयी हुए थी। तभी मुगल सेना ने चाकण पर आक्रमण कर दिया व सभी घरो को लूटना और मराठी रचनाओं को नष्ट करने लगे। तब  संता जी ने अपने  जीवन को खतरे में डाल कर कई किलोमीटर चल कर सारे अभंग रचनाओं को सुरक्षित सुदुंबरे ले गए।

जब संताजी की मृत्यु हुई, तब लोगो ने संतो की तरह उनकी समाधि बनाने के लिए मिट्टी डाली, पर कई कोशिशों के बाद भी लोग  उनका सर नहीं ढक पा रहे थे।   तब संत तुकाराम जी अपने वचन का पालन करने के लिए वैकुण्ठ से आ कर संताजी पर तीन मुट्ठी मिट्टी डाला जिससे संता जी का सारा शरीर ढक गया और वे उन्हें ले कर वैकुण्ठ चले गए।

आज भी संता जी के द्वारा रचित अभंग सुदुंबरे में उनके समाधी स्थल पर सुरक्षित है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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*    संताजी जगन्नाडे महाराज का जीवन चरित्र Archived 2020-01-31 at the वेबैक मशीन