सतीशचन्द्र बसु
सतीशचन्द्र बसु (1876 ― 9 अक्टूबर, 1948) भारत के ब्रिटिश विरोधी स्वाधीनता आन्दोलन के एक क्रान्तिकारी थे। २०वीं शताब्दी के आरम्भ में उन्होंने कोलकाता में अनुशीलन समिति नामक क्रान्तिकारी संगठन स्थापित किया।[1]
सतीश चंद्र का जन्म कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का उमेश चंद्र बसु था। सतीशचन्द्र कलकत्ता के जनरल असेम्बलीज़ इंस्टीट्यूशन (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में छात्र रहे। वे स्वामी विवेकानन्द के शाक्त दर्शन से प्रभावित थे। वर्ष 1882 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनन्दमठ से बंगाली युवा क्रांति के मंत्र से प्रेरित हुए। उनकी गतिविधियों से सतीश चन्द्र भी प्रेरित हुए और उन्होंने कॉलेज व्यायामशाला में ब्रिटिश विरोधी 'काशीनाथ साहित्य समिति' का गठन किया। उनका संगठन मूलतः 'प्रैक्टिकल थ्योरी' की विचारधारा पर बना था। सतीश चंद्र के समर्पित प्रयासों के कारण वहां मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक प्रथाओं के साथ-साथ शारीरिक अभ्यास भी किया जाता था। लेकिन भारतीयों पर अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचार और क्रूरता को देखकर युवा सतीश चंद्र के मन में क्रांति के बीज अंकुरित होने लगे।
इसी मनोवृत्ति के कारण वे आगे चलकर देश की सेवा में कार्यरत हुए। इस बीच बैरिस्टर प्रमथनाथ मित्र इंग्लैंड से लौटे। उन्होंने इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई के दौरान आयरलैंड और रूस के क्रांतिकारियों के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की और भारत को पराधीनता से मुक्त कराने के लिए 'निखिल बंग बैप्लविका समिति' बनाने की पहल की। फिर 24 मार्च 1902 (10 चैत्र सोमवार 1308 बांग्ला संवत) को सतीश चंद्र बोस से उनकी मुलाकात और परिचय पर उनकी 'काशीनाथ साहित्य समिति' और 'निखिल बंग बैप्लोविक समिति' को मिलाकर 'अनुशीलन समिति' का गठन किया गया। प्रमथनाथ मित्र इसके अध्यक्ष बने। समिति के कार्य में देशबंधु चितरंजन दास, अरविंद घोष ने सक्रिय भूमिका निभाई। स्वामी विवेकानन्द की शिष्या भगिनी निवेदिता भी संरक्षकों में से एक थीं। स्वामी जी के एक अन्य शिष्य स्वामी सरदानन्द का प्रत्यक्ष सहयोग मिला। उनका योगदान सतीश चंद्र के राष्ट्रवादी विचार और भावना से प्रभावित था। सतीश चंद्र भी स्वदेशी कला के समर्थकों में से एक थे, जो शारीरिक प्रशिक्षण, छड़ी खेल आदि में लगे हुए थे। शैलेन्द्रनाथ मित्र (1881-1974) अनुशीलन समिति के लाठी शिक्षक थे। इस समिति की शाखाएँ पूरे बंगाल में फैली हुई थीं। बाद में पुलिनबिहारी दास के प्रबंधन में ढाका अनुशीलन समिति को विशेष प्रसिद्धि मिली। युगान्तर नामक अखबार चलाने वाली संस्था की शाखा बाद में 'जुगान्तर दल' के नाम से जानी जाने लगी।
रोगग्रस्त होने के कारण 9 अक्टूबर, 1948 को क्रांतिकारी सतीश चंद्र बोस की कलकत्ता में निधन हो गया।