सदमा (1983 फ़िल्म)

1983 की बालू महेन्द्र की फ़िल्म

सदमा 1983 में बनी हिन्दी भाषा की रूमानी नाट्य फिल्म है। इसका निर्देशन, लेखन और फिल्माना बालू महेंद्र ने किया है। इसमें इलैयाराजा द्वारा संगीतबद्ध गीतों के साथ, श्री देवी और कमल हासन ने प्रमुख भूमिकाओं को निभाया है। फिल्म नेहालता मल्होत्रा (श्रीदेवी) की कहानी बताती है, जो कि एक कार दुर्घटना में सिर में चोट लगने के बाद भूलने की बिमारी के परिणामस्वरूप बचपन में वापस आ जाती है। फिर खोने पर, वह स्कूल टीचर सोमू (हासन) द्वारा छुड़ाए जाने से पहले वेश्यालय में फँस जाती है, जिसे उससे प्यार हो जाता है।

सदमा

सदमा का पोस्टर
निर्देशक बालू महेंद्र
पटकथा बालू महेंद्र
निर्माता राज एन॰ सिप्पी
रोमू एन॰ सिप्पी
अभिनेता कमल हासन,
श्री देवी,
गुलशन ग्रोवर,
सिल्क स्मिता,
छायाकार बालू महेंद्र
संपादक डी॰ वासु
संगीतकार इलैयाराजा
प्रदर्शन तिथियाँ
8 जुलाई, 1983
देश भारत
भाषा हिन्दी

यह फिल्म बालू महेंद्र की 1982 की तमिल फिल्म की रीमेक थी, जिसमें श्री देवी और हासन ने ही अभिनय किया था। अपने निर्देशन, पटकथा, संगीत और अभिनय के लिए सदमा को समीक्षकों द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया था। हालांकि यह जारी होने पर व्यावसायिक विफलता थी।

ये कहानी नेहालता (श्री देवी) के कार हादसे में घायल होने से शुरू होती है। एक दिन पार्टी से घर लौटते समय एक कार हादसे में नेहालता को खास कर उसके सिर में काफी गंभीर चोट आती है। अस्पताल में वो अपने माता-पिता को भी नहीं पहचान पाती है। उनके माता-पिता को पता चलता है कि उनकी बेटी का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है, जिसके कारण वो बच्चों की तरह व्यवहार करने लगी है। इलाज के दौरान कुछ लोग उसका अपहरण कर लेते हैं और वेश्यालय में बेच देते हैं। सोमप्रकाश उर्फ सोमू (कमल हासन) अपने एक पुराने दोस्त से मिलता है, वो उसे आराम कराने के लिए वेश्यालय ले जाता है। वहाँ नेहालता को सोमू के कमरे में रेशमी नाम से भेज दिया जाता है। सोमू को एहसास होता है कि वो मानसिक रूप से बच्ची है। उसे पता चलता है कि उसका अपहरण हुआ था और उससे जबरदस्ती ये सब काम कराया जा रहा है।

अगले दिन सोमू उसे घुमाने के लिए ऊटी ले जाता है, जिस जगह पर वो एक शिक्षक के रूप में काम करते रहता है। वो उसे अपने घर में रख लेता है और उसकी देखभाल करते रहता है। वे दोनों एक दूसरे के काफी करीब आ जाते हैं। वहीं नेहालता के पिता पुलिस के साथ अपनी बेटी की तलाश करते रहते हैं। वो अपनी बेटी के बारे में अखबार में विज्ञापन डाल देते हैं। रेशमी और सोमू के साथ ऊटी तक आने वाला एक मुसाफिर उस विज्ञापन को देख कर उसके पिता को फोन कर देता है। इससे उन्हें जगह का पता चल जाता है।

रेशमी को सोमू इलाज के लिए डॉक्टर के पास लाता है और वहीं उसका इलाज चलते रहता है। पुलिस सोमू के घर आती है तो उन्हें पता चलता है कि वो उस घर में नहीं है, और उसका डॉक्टर के पास इलाज चल रहा है। वे लोग डॉक्टर के पास आ जाते हैं, पर सोमू उनके सामने नहीं जाता है। उसे पुलिस से डर लगता है, इस कारण वो दूर ही रह कर ये सब कुछ देखते रहता है। इलाज सफल हो जाता है और नेहालता पूरी तरह ठीक हो जाती है और उसकी याददाश्त वापस आ जाती है। लेकिन वो हादसे के बाद से लेकर ठीक होने के बीच की सारी बात भूल जाती है। डॉक्टर से उसके पिता को पता चलता है कि जिसने उसे वहाँ लाया, उसने उसकी बेटी का अच्छी तरह ख्याल रखा था, इस कारण वो पुलिस में दर्ज मामले को वापस ले लेता है और अपनी बेटी के साथ वापस घर जाने लगता है।

सोमू उन सब को कार से जाते देख कर उसका पीछा करता है। रेशमी उर्फ नेहालता उसे देख कर पहचान नहीं पाती है और उसे लगता है कि कोई पागल है। सोमू उसका ध्यान पाने की बहुत कोशिश करता है, पर वो ध्यान ही नहीं देती है। कार का पीछा करते हुए सोमू को चोट लग जाती है। सोमू वहाँ अकेला रह जाता है और ये सब देख कर उसका दिल टूट जाता है। सोमू को मिले इस सदमे के साथ ही कहानी समाप्त हो जाती है।

मुख्य कलाकार

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सभी गीत गुलजार द्वारा लिखित; सारा संगीत इलैयाराजा द्वारा रचित।

क्र॰शीर्षकगायकअवधि
1."ऐ जिंदगी गले लगा ले"सुरेश वाडकर5:00
2."ओ बबुआ ये महुआ"आशा भोंसले4:22
3."सुरमयी अँखियों में"येसुदास4:36
4."एक दफा एक जंगल था"कमल हासन, श्री देवी7:09
5."ये हवा ये फिज़ा"आशा भोंसले, सुरेश वाडकर6:03
6."सुरमयी अँखियों में" (दुखी)येसुदास1:17

नामांकन और पुरस्कार

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पुरस्कार श्रेणी नामित व्यक्ति नतीजा
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ कथा बालू महेंद्र नामित
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता कमल हासन
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री श्री देवी

बाहरी कड़ियाँ

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