वदंतु अस्माकम्  जन्मभूमि शिव नगरी शिवतलाव - यह शिवतलाव का इतिहास नहीं जननी जन्मभूमि को नमन है।

        शिवतलाव वंदन गीत

जय शिवतलाव, जय शिवतलाव।

शिव नगरी का कण-कण बोला।

जय शिवतलाव, जय शिवतलाव।।

जब पाली पर पापी परचम लहराया था।

तब सोमचन्द्र शेर बनकर दहाड़ा था ।।

काप उठी छाती पापी की, पाली छोड भागा था।

उजड़ी नगरी को देख, मन दुखी सोमाजी का रोया था।।

शिव नगरी का कण-कण बोला,

जय शिवतलाव, जय शिवतलाव।

नाडोल में चौहानों के संग सोमाजी ने केसरिया ध्वज लहराया था।

जालोर विजय में अदम्य साहस सोमचन्द्र ने दिखाया था।।

पिता के कदम पर चल, साहस, वीर जगा ने दिखाया था।

हर मुसीबत में साथ वीरमदेव का देकर, विश्वास उनका जीत लिया था ।।

शिव नगरी का कण-कण बोला,

जय शिवतलाव, जय शिवतलाव।

जब मेवाड की सरहद पर आदिम जाति ने विद्रोह का ध्वज दिखाया था।

तब विद्रोहियों का दमन करने को सोनिगरा सेना का नेतृत्व जगा को दिया था ।।

जगाजी ने विद्रोह का दमन कर चौहान राज का विजय पताका फैहराया था।

गुंज उठी जगा के वीरता की कहानी, गोडवाड जगाजी को भाया था।।

शिव नगरी का कण-कण बोला,

जय शिवतलाव, जय शिवतलाव।

करने जगाजी की वीरता को पुरूकृत स्वयं वीरमदेव बिलेश्वर आया था।

युवराज की खिदमत में हुक्का पानी जगाजी ने पिलाया था।।

शिवतलाव की जागीरी देकर जगा के साहस को नवाजा था।

जागीरदार बनकर जगाजी ने विक्रम संवत १३५९ में शिवतलाव बसाया था ।

शिव नगरी का कण-कण बोला,

जय शिवतलाव, जय शिवतलाव।

जय शिवतलाव, जय शिवतलाव।

जय शिवतलाव, जय शिवतलाव।।

 इतिहास के झरोखे में शिवतलाव

*बात विक्रम संवत 1359 की है। ईस्वी कलेण्डर के हिसाब से माना जाए तो यह बात सन् 1301 ईस्वी की है। तात्कालिक जालोर रियासत के युवराज वीरमदेव एक सुअर का पीछा करते हुए अरावली की तलहटी में थक कर गिर गये। एक राहगीर को इस प्रकार गिरा देख, शिवभक्त सोमाजी पुत्र शिवभक्त जगाजी मुथा ने उनके लिए जलपान की व्यवस्था की। तात्कालिक भाषा के अनुसार हुक्का पानी की व्यवस्था। इस प्रकार अपने मुथाजी सोमाजी के पुत्र राजपुरोहित जगाजी को सामने देख युवराज वीरमदेव के मन में प्रसन्नता की अनुभूति हुई तथा उन्होंने अपना अश्व देकर उन्हें स्वयं लिए भुखंड नापने का अनुरोध किया। जगाजी मुथा ने 4×4 कोस अर्थात 16 वर्गकोस भूभाग अपने अधिकार में ले लिया।*

*इस प्रकार राजपुरोहित जगाजी मुथा ने वर्तमान मगरा महादेव मंदिर परिसर के पास शिव नगरी शिवतलाव की छड़ी को रोपण कर दिया। वहाँ मुथा नाड़ी(मुताडो) एवं सोमा नाड़ा खोदकर अपने पेयजल की व्यवस्था की गई। उसके लगभग एवं अनुमानित 100 - 150 वर्ष बाद राजपुरोहित जगाजी मुथा के वंश वर्तमान वर्तमान शिव नगरी शिवतलाव वाले भूभाग पर स्थायी निवास के लिए आ गए। यहाँ पहले से ही एक राइकों की ढाणी थी, उन्हें विस्थापित करने में वीर जगाजी मुथा के वंशजों को बल प्रयोग करना पड़ा। (उसमें एक राइकों की महिला सति हो गई थी। बड़े बुजुर्गों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उसकी एक प्रतिमा वडा पीपलिया में थी।) इस युग में इतिहास ने करवट ले ली; जालोर के शासक, अल्लाहुद्दीन खिलजी की सेना के साथ युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे तथा गोडवाड़ क्षेत्र मेवाड़ रियासत के अधीन आ गया था। इस क्षेत्र में मेवाड़ के चारभुजा क्षेत्र के सामंतों के अधिकार क्षेत्र में था। अत: शिवतलाव के जागीरदारों को चारभुजा के मेवाड़ी सामंतों के माध्यम से वीरमदेव सोनीगरा के ताम्रपत्र के आधार पर मेवाड़ रियासत से पुनः जागीरी प्रमाणित करवाई तथा मेवाड़ शासक से ताम्रपत्र प्राप्त किया। संभवतः यह युग महाराणा मोकल का था ।*

*राइकें विरासत में हमारे लिए छोड़ गए थे एक नीम का वृक्ष, हनुमानजी की प्रतिमा एवं परथिया धणी का पाट। (परथिया धणी गुडालास की पहाडि़यों में काटबेश्वर महादेव के नाम व्याख्यात है। यह विश्व का एक मात्र शिवधाम है जहाँ शिव की पुजा घोड़े चढ़ाकर की जाती है। इसका इतिहास कुछ इस प्रकार है कि सिरोही में एक सुथार की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव उन्हें दर्शन देने आए थे तब सुथार ने अपने आराध्य को लकड़ी के बने घोड़े पर बैठाया था। बाद राईकों द्वारा उस घोड़े को वर्तमान काटबेश्वर महादेव स्थान पर लाया गया। उसके बाद से यहाँ घोड़ा चढ़ाए जाने लगे।) राजपुरोहित जगाजी मुथा के वंश शिवतलाव में प्रथमतः सुरावतों की गली में निमड़ा वाली पोल में जहाँ राइका परिवार रहते थे, वही अपना निवास बनाया तथा उनकी विरासत को अपने आराध्य के रुप में ग्रहण की। तात्कालिक मेवाड़ के चारभुजा परगना में चारभुजा के नाम से ठाकुर जी की पूजा जोरों पर थी, उसी प्रभाव से शिवभक्त जगाजी मुथा के वंशजों ने पहले ठाकुर जी का छोटा सा स्थान सुरावतों के बास में स्थापित किया। पहले गाँव का मुख्य दरवाजा दक्षिण अर्थात मगरा की दिशा में अशोक सा सबलजी के घर के पास था। वही मुख्य द्वार पर खेड़ा देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी।*

*युग आगे बढ़ता गया महाराणा कुम्भा के युग में यह भूभाग जोधपुर मारवाड़ के शासक को दहेज देने के कारण हमारा परगना मारवाड़ रियासत के घाणेराव रावले के क्षेत्र में आ गया था। इसलिए शिवतलाव के जागीरदारों ने दूसरी बार अपनी जागीरी जोधपुर रियासत से प्रमाणित करवाई तथा ताम्रपत्र हासिल किया। कालांतर में शिवतलाव में चारभुजा का मंदिर बनाया एवं ठाडावत परिवार ने इन्हें अपने आराध्य के रूप में अंगीकार किया। यह चारभुजा शिवतलाव सावलियां के नाम से शिवतलाव की पहचान बन गई थी। शिवतलाव वासी अपने सत्य की परीक्षा देने के लिए शिवतलाव के सावलियां के नाम की सौगंध भी खाते थे ।जोधपुर राज्य से स्वीकृति लेकर शिवतलाव में पूर्व दिशा में एक त्रिपोलिया हथाई बनाई गई, जो हमारा चौवटा अथवा चौटा कहलाता है। चौवटा शब्द का अर्थ चौराहा होता है। इसके गाँव तोरणद्वार(फलाँ) बनाया गया, जहाँ हनुमान जी एवं खेड़ा देवी की प्रतिमा थी, जो अब मंदिर के रुप में है।*

*कालांतर में शिव नगरी शिवतलाव में एक शिव मंदिर की आवश्यकता महसूस की गई। तब सब ग्रामवासियों ने मिलकर हमारे तालाब अर्थात नाड़ी के उतरी भाग में एक शिव मंदिर की स्थापना की गई तथा इन्हें रगावत परिवार ने अपने आराध्य देव के रुप में स्वीकार किया गया। इसी शिव मंदिर के कारण सेवतलाव का नाम शिवतलाव पड़ा।*

हमारी कौटुंबिक संरचना एवं हमारे इष्ट

*मुथा राजपुरोहित की उत्पत्ति पालिवाल ब्राह्मण वर्ण से हुई है। पालिवालों का पाली में गणराज्य था। गणराज्य का अर्थ मुखिया वंशानुगत न होकर निर्वाचित होता था। इसलिए पाली के प्रशासकों के संदर्भ में इतिहास में जानकारी उपलब्ध नहीं है। पालीवालों की कुलदेवी रोहिणी माँ एवं इष्ट देव सोमनाथ महादेव होने के प्रमाण उपलब्ध है। कतिपय विद्वान वराह माँ का भी मत देते है लेकिन इसका ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अत: इनको वर देवी (वरदान देने वाली) के रुप में स्वीकार किया हो सकता है। अतः निर्विवाद एवं अपने पुरखों की धरोहर के रुप में कुलदेवी रोहिणी माँ तथा इष्ट देव के रुप में सोमनाथ महादेव है। मुथा राजपुरोहित के आदिपुरुष सोमाजी है तथा जगाजी, सोमाजी के पुत्र थे।*

*जगाजी ने अरावली की तलहटी में अपने गाँव की छड़ी का रोपण किया था तथा वहाँ एक महादेव मंदिर भी है तथा हमारे पुरखों की आराधना के आधार पर ठोस प्रमाण है कि मगरा महादेव जी हमारे शिवतलाव वासियों के प्रधान आराध्य देव है। वहाँ गाँव की स्थापना का शिलालेख भी है। कालांतर में जब हम शिवतलाव में आए तथा जगाजी के बाद जो उनकी कौटुंबिक संरचना इस प्रकार दिखाई देती है।*

*_हमारे कुटुबं_*

*जगाजी के वंशज सौसावत, ठाडावत, रगावत, मनावत एवं सुरावत नामक पांच कुटुबं है।*

*(1) सौसावत कुटुबं - यह परिवार वर्तमान में गाँव की दक्षिण दिशा में रहते है। यह अपने आराध्य देव परथिया धणी को मानते तथा वराह माँ (कुआवा माताजी) को भी आराध्य देवी मानते है। माईला सौसावत मात्र वराह माँ की ही आराधना करते है*

*(2) ठाडावत कुटुबं - यह परिवार मोटी सेरी के प्रवेश पर अर्थात दक्षिण भाग में व गाँव की पूर्व दिशा में तथा कोटवाली गली में रहते है तथा यह अपने आराध्य देव के रुप में चारभुजा अर्थात शिवतलाव के सांवरिया या सांवलिया को मानते है। इनमें दो उप कुटुबं भी है - पाटवी परिवार, जोडवाला परिवार ।*

*(3) रगावत परिवार - यह परिवार गाँव व मोटी सेरी के उत्तर पूर्व दिशा में रहते है। इन्होंने शिवतलाव के महादेव जी को अपना आराध्य देव के रुप में पूजा।*

*(4) मनावत परिवार - यह परिवार गाँव तथा मोटी सेरी के उत्तर दिशा में रहते है। इनका एक उप कुटुबं बारहठ करने वाले बारोठिया भी है। मनावत तो अपने आराध्य देव परथिया धणी को मानते है तथा बारोठिया चारभुजा को अपना आराध्य देव मानते है।*

*(5) सुरावत परिवार - गाँव के पश्चिमी भाग में रहते है। इनमें एक उप कुटुबं खीमावत भी है। यह दोनों ही अपने आराध्य देव के रुप में परथिया धणी को मानते है।*

पाटवी व्यवस्था

*गाँव की इस कौटुंबिक संरचना को एक प्रशासनिक संरचना पाटवी व्यवस्था के साथ जोड़कर रखा गया है। बड़े बुजुर्गों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले पाटवी का कार्य श्री मदन सिंह जी पुत्र श्री भूर सिंह जी सौसावत के परिवार के पूर्वजों के पास था। उनसे पहले की जानकारी उपलब्ध नहीं है। तत्पश्चात श्री पोकर सिंह जी पुत्र श्री चिमन सिंह जी के पुरखों के पास था तथा वर्तमान में यह  श्री अशोक सिंह जी पुत्र श्री सबल सिंह के परिवार के पास है। अत: ब्राह्मण गणराज्य की भांति पाटवी के चयन में गणतांत्रिक परंपरा रही हो सकती है। पाटवी शब्द का शाब्दिक अर्थ पाट अथवा पद धारण करने वाला तथा एक अर्थ जेष्ठ भी होता है।*

*शिवतलाव में पहले राजपुरोहित की एक गोत्र बोथियां भी रहते थे। उनकी कुलदेवी महिषासुर मर्दनी का मंदिर शिवतलाव में है। फिलहाल यह परिवार मालारी ग्राम में रहता है।*

*शिवतलाव में रावल, वैष्णव व गोस्वामी धार्मिक तथा सुथार, लुहार, कुम्हार (मारू व बोड़ा), नाई, दर्जी, राइका तथा मेघवाल नामक कार्मिक जातियाँ रहते है। पहले सरगरा व जैन परिवार भी रहते थे।*

*शिव नगरी से संबंधित कुछ अनसुलझे व अदृश्य तथ्य*

1. *मुथा राजपुरोहित की ऋषि गोत्र पिपलाद होना अधिकतर शोधपत्र पुष्टि करते है। ऋषि पिपलाद ऋषि दधीचि के पुत्र थे। कथा के अनुसार ऋषि दधीचि द्वारा देवासुर संग्राम के समय देवताओं को शस्त्र बनाने के लिए अपनी अस्तियाँ का दान किया गया था। अपने पति के बलिदान की कथा जब ऋषि दधीचि की पत्नी ने सुनी तो सति होने का निर्णय लिया लेकिन वह गर्भवती थी अत: उसे अपने पुत्र की जान लेने का अधिकार नहीं था। लेकिन सति होने का भाव उग्र हो गया। उसकी इस मनोदशा देखकर ऋषि परिषद के चिकित्साचार्यों ने उसके गर्भ में पल रहे शिशु को शल्यक्रिया द्वारा बाहर निकाल कर शेष समयावधि के लिए पीपल के वृक्ष में कोख का निर्माण कर कुछ विशेष जैव रसायन के साथ रखा गया था। पीपल वृक्ष से जिस शिशु के प्राणों की रक्षा हुई थी। उस शिशु का नामकरण पिपलाद कर दिया। जो आगे चलकर पिपलाद ऋषि के नाम व्यख्याता हुए। जिस स्थान पर पिपलाद ऋषि का जन्म हुआ था। वह स्थान उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के नैमिषारण्य तीर्थ है।*

(2) *मुथा की उत्पत्ति पालीवाल ब्राह्मणों से हुई थी। पाली में पालीवालों का गणराज्य था। यह गणराज्य अपनी एक वैभवशाली परंपरा (एक सिक्का एवं एक ईंट) के लिए जग व्याख्यात था। इस परंपरा के अनुसार इस गणराज्य में शिशु जन्म के अवसर पर अथवा नवागंतुक के राज्य की सदस्यता ग्रहण करने पर एक सोने का सिक्का तथा एक ईंट प्रत्येक घर से उपहार दी जाती थी । पालीवाल गणराज्य में एक लाख घर होने की बात बताई जाती है। इसका अर्थ यह होता था कि शिशु जन्म के साथ ही लखपति व गृहपति बन जाता था। पालीवाल राज्य में मात्र ब्राह्मण ही नहीं सभी वर्ण लोग रहते है। लेकिन ब्राह्मणों का प्रभुत्व था । इसका प्रमाण पाली से निकले 15000 पालीवाल राजपूत परिवार उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में वर्तमान में रहते है।* (इलाहाबाद के पालीवाल राजपूतों कुछ प्रबुद्धजन ने नेट से मेरे नंबर लेकर दुरभाष पर यह जानकारी दी तथा उनके राजपुरोहित के रुप में वहाँ भ्रमण करने का आमंत्रण भी दिया था।)

(3) *पाली से निकल सोमाजी कुछ समय गुंदोज रहे तथा बाद में नाडोल में सोनीगरा चौहान राजाओं के यहाँ लेखा विभाग में मुथा (लेखा शास्त्री) का कार्य किया था। इसी कारण सोमाजी को मुथाजी कहते थे तथा उनके वंशजों ने मुथा को पदवी के रुप में धारण कर दी। यहाँ शासकों द्वारा सोमाजी को पांच गाँव घेनड़ी, पिलावनी, रूंगड़ी, वणदार व सिवास जांगीरी में दिये गए। पांच गाँव के जागीरदार का समाज एवं राज्य में बहुत मान व सम्मान होता था।जागीरी, किसी व्यक्ति के सदकार्य के पुरुस्कार के रुप में दी जाती थी। _सिवास जगाजी के हिस्से का गाँव था।_*

(4) *नाडोल से सोनीगरा चौहान की इस शाखा ने जालोर पर शासन किया था। जालोर दुर्ग में सोमाजी की छतरी होना बताया जाता है तथा वीरमदेव रासो में सोमचन्द्र की वीरता का उल्लेख होना बताया जाता है। यह दोनों इस बात द्योतक है कि सोमाजी बहुत वीर, बहादुर एवं कुशल सेनानायक एवं रणनीतिकार थे।*

*(5) हमारे बड़े बुजुर्ग (वडेरा) बताते थे कि सोमाजी की धोती आसमान में सुखकर आती थी। आसमान में धोती सुखना एक अलंकारिक लोकोक्ति होती थी। जिसका अर्थ बहुत अधिक साधन संपन्न व्यक्ति। यह सोमाजी की संपन्नता का उल्लेख करती है।*

*(6) हमारे गाँव के आदि पुरुष जगाजी भी वीर, पराक्रमी एवं धर्मनिष्ठ थे। उन्होंने अपने बल पर सोलह वर्ग कोस जागीरी प्राप्त की थी। इनके वंशजों में वीरोचित गुण होना उनके वीरता का प्रमाण देता है।*

*शिवनगरी शिवतलाव के इतिहास की कुछ चिरस्मरणीय घटनाएं*

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_*शिवतलाव की स्थापना सन् 1301 ईस्वी (विक्रम संवत 1359) में हुई थी। उसके बाद के इतिहास को चार भागों में बांट कर अध्ययन करते हैं।*_

_(1) सन् 1301 ईस्वी से 1425 ईस्वी तक (विक्रम संवत 1359 से 1483 तक)_ - *इस काल में शिवतलाव का संबंध जालौर के सोनीगरा चौहान राजाओं से रहा।* (जालौर में सोनीगरा चौहान राजा 1311 ईस्वी तक रहे। उसके बाद उनके सामंतों ( जो भोमिया कहलाते थे) ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष किया। लेकिन उनकी आपसे एकता नहीं होने के कारण वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाए। उस समय उनको राजपुरोहितों का अच्छा सहयोग मिला था। शिवतलाव के पास जूणा व सादड़ा गांव में सोनीगरो का होना इस बात का संकेत देता है कि या चौहानों का अधिक प्रभुत्व था। जो बाद में खालसा गांव घोषित कर दिए गए।) *शिवतलाव के इतिहास में इस काल की प्रमुख घटना मगरा महादेवजी से वर्तमान स्थान पर गांव का स्थानांतरण होना है।*

_(2) सन् 1425 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक ( विक्रम संवत 1483 से 1508 तक)_ - *इस काल में शिवतलाव के जागीरदारों का संपर्क मेवाड़ के गुहिल वंश के सिसोदिया राजवंश के साथ रहा।* ( सन् 1421 से 1433 ईस्वी तक मेवाड़ पर महाराणा मोकल का शासन था। मोकल के राज्य की सीमाएं गोडवाड़ एवं मारवाड़ के अधिकांश भाग तक होने के प्रमाण मिलते हैं।) *महाराणा मोकल की राजपुरोहित के प्रति अच्छी सोच होने के कारण उन्होंने राजपुरोहित की चौहान काल की जागीरी को यथावत बहाल रखा एवं इसे प्रमाणित भी किया। इस काल शिवतलाव के इतिहास की प्रमुख घटना ठाकुर जी के मंदिर का निर्माण है।*

_(3) सन् 1450 से 1947 ईस्वी तक ( विक्रम संवत 1508 से 2005)_ - *यह काल को शिवतलाव के इतिहास का स्वर्णिम काल कहलाता है। इस काल में शिवतलाव का संपर्क जोधपुर के राठौड़ राजाओं से रहा। महाराणा कुम्भा के शासनकाल में अरावली के नीचे हिस्सा, मारवाड़ शासक को दहेज में देने का उल्लेख आता है।* ( मारवाड़ के शासक और उनकी झाली रानी के बीच में विवाद हो गया तथा महाराजा ने झाली रानी को देश निकाला दे दिया । देश से निकलने के बाद झाली रानी शेष अवधि तक महाराणा कुंभा के कुंभलगढ़ महल में रही। महाराणा कुम्भा ने उन्हें अपनी बहन का दर्जा दिया था तथा कुंभलगढ़ में उनके लिए अलग से महल बनाया,जो आज भी कुंभलगढ़ दुर्ग में मौजूद है । बाद में जब मारवाड़ के महाराजा को अपनी गलती का एहसास हुआ तब ससम्मान अपनी रानी को मारवाड़ ले गये। उस समय महाराणा कुंभा ने उसे अपनी बहन मानकर यह भाग दहेज में दिया था। ) *इस काल में शिवतलाव को जोधपुर से ताम्रपत्र मिला था तथा जोधपुर महाराजा ने शिवतलाव में त्रिपोलिया हथाई बनाने की अनुमति प्रदान की थी। इस युग में प्रमुख मंदिरों का निर्माण हुआ एवं हथाई बनाई गई। इस काल की प्रमुख तीन घटनाएं इतिहास में अंकित करने योग्य है।*

*(1) मीणों को शरण देना - राठौड़ काल में घाणेराव बहुत बड़ा एवं समृद्ध रावला था। यहाँ ठाकुर को सरकार की उपाधि दी गई थी। घाणेराव रावला के दोषी मीणों ने शिव नगरी में शरण मागी तो हमारे पुरखों ने इन्हें शरण दी थी। बताया जाता है कि घाणेराव की फोज लंबे अरसे तक शिवतलाव की घेराबंदी की थी लेकिन किसी ने भी उनके यहाँ होने की बात स्वीकार नहीं की। एक दिन दीर्घ शंका जाते एक बणियें को दबोच लिया तथा उसने उनको राज खोल दिया। ( बणियें की शिवतलाव में दुकान थी) इसके तहत कार्यवाही करते हुए घाणेराव की फोज मीणों का संहार किया। लेकिन शिवतलाव के प्रभाव के चलते जागीरी जब्त करने कार्यवाही का प्रस्ताव नहीं भेजा। मीणा जाति शिवतलाव के बाशिंदों का यह एहसान मानते हुए, शिवतलाव में चोरी न करने का प्रण लिया एवं शिवतलाव के ग्रामीण की हर संभव सहायता करने का वचन दिया। कहते हैं कि मीणों एवं शिवतलाव वासियों के बीच पहचान कोड चारभुजा के पावडिया (सीढ़ियां) रहे। इस घटना को स्थानीय भाषा में इस 'गादोतरा' डालना कहते है। प्रमाण के रुप में हमारे हथाई पर इनकी मूर्तियां है।*

*(2) हीरा पत्ता का संहार - हमारे गाँव के हरि पत्ता नामक बहुत बलिष्ठ एवं खतरनाक व्यक्ति हुए थे। वह सीधे साधे लोगों से जबरन चौथा वसूल करता था। जब गाँव वालो ने इसके विरुद्ध सामुहिक कठोरता दिखाई तो, ये बागी हो गया। यह रात के अंधेरे में लोगों की फसलें जलाना, अरट की माले काटना एवं नुकसान पहुंचाने से संबंधित कायरता पूर्ण कार्य करने लगा। गाँव वाले जब भी इसे पकडने की कोशिश करते तो यह किसी की पकड़ में नहीं आता था। इसके पास एक स्वामी भक्त घोड़ी थी। एक दिन एक रबाड़ी की सूचना के आधार पर  गाँव वालों एक गुप्त कार्यवाही की। सभी लोगों एक साथ एक लोटे लूण पीकर निकल पड़े, नाडावाला नामक स्थान पर उसके होने की सूचना थी। नौजवानों के दल के वहाँ पहुचते ही स्वामी भक्त घोड़ी ने हीरा पत्ता को अनिष्ट का संकेत दिया। वह अपने प्राणों की रक्षा के लिए घोड़ी की ओर बढ़ा, लेकिन दुर्भाग्य से वह उल्टा चढ़ गया। फुर्ती रखते हुए नौजवानों के दल ने उसे पकड़ लिया तथा उसका काम तमाम कर दिया। यह घटना गाँव वालों के लिए सीख का आधार बनी - "गुमान तो हीरा पत्ता का भी नहीं चला तु तो क्या चीज है।"* (बुजुर्गों के मुख से सुनी घटना) इनका पारिवारिक संबंध देना उचित नहीं है।

*(3) सफल बारहठ (बारठ) - एक भाई द्वारा दूसरे भाई से हक लेने हेतु एक बारहठ(संघर्ष) किया था। जिसकी परिणित आपसी समझौते के आधार हुई तथा उन्हें उनका लीगल हक मिल गया। संघर्ष करने वाले यह लोग बारोठियां कहलाए। घटना कुछ इस प्रकार है कि बाल्यकाल में पिता की मृत्यु हो जाने पर दो भाई अपने ननिहाल नेतरा चले गए थे। वहाँ बड़े होने पर जब उन्होंने बहादुरी दिखाई तो वहाँ के लोगों ने अपने गाँव में पुस्तैनी हक लेनी की बात कह दी स्थानीय भाषा में मेणी देना। इसलिए संघर्ष हुआ।*

*(4) सन् 1947 ईस्वी के बाद का शिवतलाव - भारत के आजाद होने के बाद जोधपुर रियासत का भारत में विलय हो गया तथा राजपूताना की सभी रियासतों को मिला कर राजस्थान राज्य बनाया गया। शिव नगरी शिवतलाव भारत संघ के राजस्थान राज्य के जोधपुर संभाग के पाली जिले की बाली तहसील का एक गाँव व ग्राम पंचायत है। देश की आज़ादी के बाद हमारी जागीरी का हस्तांतरण हुआ। यह युग तीन पांच की लड़ाई एवं भाइयों के आपसी संघर्ष का खुनी अध्याय भी लिखता है। 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में तात्कालिक प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी द्वारा पंचायत राज का शुभारंभ किया गया। उसके बाद कुछ समय बाद संपूर्ण भारत में पंचायती राज व्यवस्था लागू हो गई। पहले शिवतलाव लाटाड़ा पंचायत में था। लाटाड़ा पंचायत में लाटाड़ा, शिवतलाव, सादड़ा, डुंगरली, मालारी, बिलियां व गुढ़ा कल्याण सिंह नामक सात गाँव थे। लाटाड़ा पंचायत के प्रथम सरपंच सादड़ा निवासी श्री सोहन सिंह सोनीगरा थे । बाद में शिवतलाव, डुंगरली, मालारी, बिलियां नामक चार गाँवों अलग कर शिवतलाव पंचायत का गठन किया गया। शिवतलाव पंचायत के प्रथम सरपंच श्री भोपाल सिंह जी पुत्र श्री गुमान सिंह जी रहे थे। इसके क्रमशः श्री सोहन सिंह जी पुत्र श्री मान सिंह जी, श्री सबल सिंह जी पुत्र श्री मेघ सिंह जी, श्री जयसिंह जी पुत्र श्री हरि सिंह जी, श्री सबल सिंह जी पुत्र श्री मेघ सिंह जी, श्रीमती प्रेम कंवर धर्म पत्नी सुरेन्द्र सिंह जी, श्री धन्ना राम जी, श्रीमती छैल कंवर धर्म पत्नी श्री गोपाल सिंह जी, श्रीमती रेखा कंवर धर्म पत्नी महेंद्र सिंह जी सरपंच रहे। वर्तमान में श्री जगदीश सिंह जी पुत्र श्री हरि सिंह जी है। पुराना पंचायत राज अधिनियम एवं 1994 के नये पंचायत राज अधिनियम के बीच एक अंतराल रहा था तथा उस युग में ग्राम पंचायतों को कार्यभार प्रशासकों को सौपा गया था। सौभाग्य से उन दिनों हमारे गाँव के श्री जयरुप सिंह जी पुत्र श्री नवल सिंह जी प्रशासक थे। तो उनका भी कार्यकाल रहा था।*

यह है शिव नगरी शिवतलाव का संक्षिप्त इतिहास कुछ घटनाओं का जानबूझकर विस्तार नहीं किया गया है।

*शिव नगरी शिवतलाव की आन बान और शान के प्रतीक*

*शिव नगरी में कुछ विशेष है जिस पर यहां के नागरिक गर्व कर सकते हैं एवं उनका गर्व करने का अधिकार भी है। उन्हें शिवतलाव की आन बान और शान के प्रतीक की संज्ञा दी गई है जो निम्न है।*

*(१) हमारी नाड़ी* - शिवतलाव की नाड़ी, जिसे हम तालाब व सरोवर भी सकते है। यदि इसे हम हमारा हिन्दमहासागर या प्रशांतमहासागर कह दे तो यह हमारे लिए अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस नाड़ी ने माता बनकर हमें तथा हमारे पुरखों को शीतलता प्रधान की है। इसके जल की मधुरधारा ने हमारी मवेशियों को पाला पोसा है। इसके जल में हम नहा धो कर बड़े हुए है। यह हमारे लिए किसी स्विमिंग पूल से कम नहीं है। इसकी माटी से हम खेले है। और तो और हमारे देवता भी इसके जल से नहाते है। इसलिए हम हमारी नाड़ी पर गर्व करते है।

*(२)  हमारी  हथाई * - अपना चौहटा अथवा चौटा पर हमें गर्व है। यह गाँव का प्रवेश द्वार, हृदय एवं स्वाभिमान है। यह हमारे सभी सार्वजनिक निर्णय, उत्सव एवं त्यौहार का गवाह है। इस पर जितना गर्व करें उतना कम है।

*(३) हमारे सोमेला* (हो:मेला) - स्थानीय भाषा के शब्द सोमेला अथवा हो:मेला का शाब्दिक अर्थ सामने जाकर मिलना होता है, जबकि भावार्थ स्वागत करना होता है। शिवतलाव में नवागंतुक विशेष मेहमान अथवा बारात व दुल्ले के स्वागत की रश्म को सोमेला अथवा हो:मेला कहते है। यह अपने आप में न केवल राजपुरोहित जाति के गाँव में अपितु संपूर्ण क्षेत्र में अपनी विशिष्टता को लिये हुए है। इसे भी गर्व का प्रतीक माना जाता है।

*(४) हमारा झाकी वलड़ा* - वृक्ष तो प्रत्येक गाँव में होता है तथा हमारे यहाँ बहुत सारे वृक्ष है लेकिन हमारे झाकी वलड़ें (विशाल वटवृक्ष) की शान ही कुछ निराली है। अभी यह वृद्धावस्था में है तो भी इसने हमारी लाज रखी है। शिवतलाव के मुखद्वार की शोभा इसी ने बढ़ाई है। तो क्या हम हमारे इस विशाल वटवृक्ष जिसे हम झाकी वलड़ो कहते हैं। उस पर फक्र नहीं क्यों नहीं कर सकते है।

*(५) हमारे वाळा व रुण* - नदी नाले तो सभी जगह होते है लेकिन हमारे वाळा और रुण की होड़ नहीं कर सकते है। हमारे गाँव को उत्तर एवं पश्चिम में रुण ने अपने गोदी में ले रखा है। पूर्वांचल एवं दक्षिण में वाळों शान ही निराली है। चारों ओर इनका परकोटा हमें टापू बनाता है। पश्चिम में इन सबका मिलन शिव नगरी शिवतलाव को त्रिवेणी संगम प्रयागराज से अलंकृत करवाने में मदद करता है। दक्षिण में तीन वाळा - शमशानिया ( मशोनियो अथवा लोरका अर्थात छोटा वाळा सबसे नजदीक है। वड़ो वाळों अर्थात सबसे बड़ा वाळा सबसे दूर इनके बीच फूंफारियो वाळों है। यह दक्षिण की ओर आने वाली आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक बाधाओं से गाँव के रक्षा कवच की उपमा दी जा सकती है। है न यह भी शान के प्रतीक।

*(६) अपना मगरा* - शिवतलाव का जन्म ही आडावल इस पहाड़ी की कोख में हुआ है। इसलिए हमारे दक्षिण के इस रखवाले पर हमें आन, बान एवं शान है। ओबलियो खाड़ो, उरियों री धमकी, वालियों, समतल, वैरी व गाड़ो रो थाग हमारी पूर्वजों के साथी है।

*(७) हमारे देवालय* - मगरा महादेव, सेवतलाव रो सोवलियो एवं शिवतलाव के शिव हमारे पहचान के प्रतीक है। मगरा महादेव जी हमारी स्थापना की कहानी सुनाते है। सवालिया जी अर्थात चारभुजा जी हमें सौगंध एवं सौगात से परिचित करवाते है तो शिव ने अपना ही हमें दे दिया है। शिव मोक्ष तालाव आनन्द। वह स्थान जहाँ जीवन का अंतिम लक्ष्य मुक्ति मोक्ष का आनन्द उपलब्ध होता है। हम सब के जन्मों जन्म के पुण्य कर्म है कि हमें शिव नगरी शिवतलाव की पुण्य धरा पर जन्म लेने का अवसर प्रदान हुआ है। अब तो हमारे कर्मलीला को उसके अनुरूप कर महान बनना है।

इन सप्त ऋषियों का शिवतलाव में होना हमारी आन, बान एवं शान हैं।

*आर्थिक जगत में शिव नगरी शिवतलाव का लहराता परचम*

शिव नगरी शिवतलाव के आर्थिक जीवन को दो भागों में बाट अध्ययन करते हैं।

(१) प्रारंभिक आर्थिक जीवन - *सोमाजी मुथाजी का कार्य करते थे। जगाजी के कार्य के संदर्भ में स्पष्ट उल्लेख उपलब्ध नहीं है लेकिन उनकी चारित्रिक विशेषताओं का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि वे एक धर्मनिष्ठ यौद्धा थे। जिनके पराक्रम का लोहा गोडवाड़ की धरा मानती थी। जगाजी के वंशज जागीरदार थे। यह खेती करते थे तथा कराते थे। खेती के साथ गाय (🐄) व भैंस का पालन करते थे। खेती की दृष्टि से शिवतलाव ग्राम की उत्तर पश्चिमी, उत्तरी व उत्तर पूर्वी भूभाग को अधिक उपजाऊ चिन्हित किया गया एवं उस पर हल जोतकर जगाजी के वंशजों ने अपनी तकदीर लिखी थी। इनको स्थानीय भाषा में 'अट' कहा गया।दक्षिण पूर्वी, दक्षिणी व दक्षिणी पश्चिमी भाग को अपेक्षाकृत कम उपजाऊ चिन्हित किया गया था। इन्हें 'खेत' नाम दिया गया। अट व खेत का अर्थ क्रमशः सिंचित व असिंचित भूमि था। सिंचाई के लिए कुओं की खुदाई की गई तथा उसमें रहट( अरहट स्थानीय- भाषा अट) नामक साधन से सिंचाई की जाती थी।* ( अरहट एक लकड़ी की बनी मशीन होती थी, जिसका चलन बैलों द्वारा होता था। इसका प्रथम भाग क्षैतिज वृताकार होता था, जो बैलों की मदद से अपनी धूरी के चारों घुमता था। बैलों को हाकने के लिए एक व्यक्ति के बैठने की जगह होती थी। यह कार्य बालक अथवा बुर्जुग के जिम्मे दिया जाता था। इस मशीन के प्रथम भाग के जमीन में एक क्षैतिज व दूसरी उर्ध्वाधर गोल तश्तरी नुमा पहिए होते थे जो एक दुसरे को घुमाते थे। उर्ध्वाधर तश्तरी से जुड़ी लकड़ी के बेलनाकार सोपट होती थी, जिसका दूसरा सिरा कुएं पर लगी बेलनाकार गोल लकड़ी की पट्टियों बने पहियानुमा यंत्र से जुड़ा होता था। जो अपने धुरी पर घुमता था। इस पर लकड़ी व घांस की पट्टिकाओं से बनी माला होती थी। उसे माल नाम दिया गया था। इस माल मिट्टी की गैरें बंधी होती थी। गैर का मुख उपर चौड़ा तथा निचे से बंद नुकीला होता था।  जो कुंए से पानी भरकर बाहर जाकर पथ्थर के बने नालीनुमा पारसियां में डालती थी। जिसका मुख पानी की कुंड (अवाला) में खुलता था। उससे होकर नाली (वेलों) द्वारा पानी खेत में पहुँचता था। यह डाबरा, उबरिया इत्यादि छोटे यंत्र का उपयोग कर बनाया गया बड़ा यंत्र था। एक पथ्थर का पोल या स्तंभ होता था, उसे खिल कहा जाता था।) *सिंचाई में एक अन्य साधन 'चरस' का भी उपयोग होता होगा।* ( चरस बहुत साधारण मशीन होती थी, जो चमड़े के बड़े थैले की बनी होती थी, जिसको चमड़ा अथवा डोरी के रस्से से बांधकर बैलों की मदद से बैलों को आगे पीछे खिंच कर पानी निकाला जाता था। यह भी अपना पानी पथ्थर के नालीनुमा पात्र में ही उडेलता था। इसमें पानी लगातार नहीं बहता था) *कृषि व पशुपालन के अतिरिक्त हमारे कुछ पुरखें मजदूरी व मेवाड़ से मक्का व गेहूँ, जो की अदला बदली में धनापार्जन करते थे। कुछैक के गाय, बैल, भैंस इत्यादि जानवरो की खरीद बेचान का कार्य भी था। कुछ लोग सादडी व लाटाड़ा के सेठ सहुकारों के यहाँ घी, दूध व दही के बेचने का कार्य भी करते थे।* इस युग में वस्तु विनिमय होता था।

(2) आधुनिक आर्थिक जीवन - *आधुनिक युग में आर्थिक क्रियाओं के नये साधन सामने आए। इनका बिन्दूवार अध्ययन करते हैं।*

(१) देशावर की ओर बढ़ते कदम - *रोजी रोटी की खोज में देशावर की ओर हमारे गाँव के निवासी चल पड़े। प्रारंभ में अहमदाबाद, शेष गुजरात, मुंबई एव शेष महाराष्ट्र की ओर कदम पड़े।*

*प्रारंभिक शोधपत्र के आधार पर देशावर की भूमि पर हमने पहले बेलन से दोस्ती कर रसोई व्यवसाय में हाथ लगाया। रसोई कार्य में मजदूरी, कैटर्स एवं टूरिज्म की रसोई मुख्य थी। हमारे भाई बंधुओं में इस क्षेत्र में खुब कमर तोड़ महेनत कर धनार्जन किया तथा मुम्बई, अहमदाबाद व शेष गुजरात महाराष्ट्र में हमारे गाँव के बड़े बड़े एवं नामी कैटर्स अस्तित्व में आए। मुंबई में सबसे पुरानी एक लॉज श्रीमान लक्षण सिंह जी पुत्र श्री केशर सिंह जी की थी। बताते है कि यह स्थान मुंबई में हमारे गाँव के तथा अन्य गाँव के राजपुरोहित व अन्य जाति की आश्रय स्थली थी। ऐसा पुराने लोगों ने बताया था। इस व्यवसाय ने हमें श्री पूनम सिंह पुत्र श्री प्रताप सिंह जी के रुप में भामाशाह दिये । जिन्होंने एक उप स्वास्थ्य केन्द्र बनाकर गाँव को भेट किया,जो आज सभा भवन के रुप में हमारे पास है।*

  *तत्पश्चात हम व्यापार जगत की ओर चलते है। इस लोक में हमारे परिजनों का खुन पसीना बहा एवं नये नये प्रतिष्ठान अस्तित्व में आए। अब हमारे लोग महाराष्ट्र,गुजरात को पार कर दक्षिणी भारत में भी अपनी आर्थिक उपलब्धियों का पताका फहराया। कपड़ा, किराणा, एमिटेशन, मेडिकल इत्यादि इत्यादि नये नये क्षेत्र में शिव नगरी के व्यापारियों का रुतबा है। इस जगत में मेरी जानकारी के अनुसार उस युग में मनोहर में श्री देवी सिंह जी पुत्र श्री अचल सिंह जी की दुकान होना गर्व का विषय है। इस क्षेत्र से भी कई भामाशाह सामने आए हैं।*

*उद्योग जगत में शिव नगरी शिवतलाव की कहानी गौरवान्वित करने वाली है। उस युग में प्रथम सरपंच श्री भोपाल सिंह जी के दादा श्री किशन सिंह की मुम्बई में कपास मिल होना गौरव का विषय है। इस क्षेत्र गाँव का नाम विश्व स्तर पर रोशन करने का श्रेय श्रीमान बाघ सिंह जी पुत्र श्री केशर सिंह जी को है । यह शिव नगरी के दानदाताओं की अग्रणीय श्रेणी में है। इनके द्वारा प्राथमिक चिकित्सालय बनाकर देना स्वर्णाक्षरों में नाम अंकित करता है। होटल उद्योग में श्री भोपाल सिंह जी व श्री सोहन सिंह जी पुत्र श्री मानसिंह जी प्रथम पायदान पर है। इनका परिवार भी दानदाताओं की प्रथम पंक्ति में है। तीन स्कूलें एवं शमशान शेड़ में अपनी साधना लगाना चिस्मरणीय है।इस क्षेत्र में मुम्बई, अहमदाबाद, उदयपुर, जयपुर, पाली में हमारे उद्यमियों का सिक्का है। इसके अतिरिक्त मार्बल उद्योग व निर्माण उद्योग में भी हमारे गाँव का नाम रोशन किया गया है।*

*नये नये क्षेत्र व तकनीकी क्षेत्रों में भी युवाओं की रुचि बढ़ रही है जो शुभ संकेत है।*

(२) सरकारी नौकरी में शिवतलाव - *तात्कालिक जोधपुर सरकार ( हिजाइनेस) द्वारा स्वीकृति मुंडारा रावला में कामदार के पद पर श्री गुमान सिंह जी पुत्र श्री किशन सिंह जी काम करना। उस युग की सरकारी नौकरी थी। सरकारी नौकरी में पहला कदम श्री सबल सिंह जी पुत्र श्री मेघसिंह जी का है। वे शिक्षा विभाग में एक शिक्षक के रुप में सेवा दी थी।*

*राजस्व विभाग में मेरे पूज्य पिताश्री श्रीमान मगन सिंह जी पुत्र श्री भबुत सिंह जी ( आर. आई) का प्रथम कदम था, तत्पश्चात श्री रघुनाथ सिंह जी (एस.डी.एम.)व श्री हरि सिंह जी (तहसीलदार) सपुत्र श्री चिमन सिंह जी, श्री पकाराम जी पुत्र श्री मगना राम जी मेघवाल (अमीन) व श्री मदन सिंह जी पुत्र श्री भूर सिंह जी (आर. आई.) ने इस यात्रा का क्रम जारी रखा।*

*पंचायत राज विभाग में श्री जसराज सिंह जी भैरु सिंह जी व श्री जयरुप सिंह पुत्र श्री नवल सिंह जी ने ग्रुप सचिव व पदेन सचिव पद अपनी सेवाएं दी। श्री मुकेश सिंह पुत्र श्री नरसिंह जी भी अपने सेवाएं दे रहा है।*

*पुलिस विभाग में मेरे पूज्य चाचाजी श्री जुहार सिंह पुत्र श्री भबुत सिंह जी पद पर प्रवेश किया। वर्तमान में श्री लकमाराम जी पुत्र श्री चुन्नीलाल जी का पुलिस प्रशानिक सेवा में होना गौरव का विषय है। गुजरात पुलिस में विक्रम सिंह पुत्र श्री रघुनाथ सिंह जी की सेवा भी याद करने योग्य है।*

*बैंकिंग क्षेत्र में श्री रुप सिंह जी पुत्र श्री मेघ सिंह जी, श्री नरपत सिंह पुत्र श्री लुंब सिंह जी व रविन्द्रसिंह पुत्र श्री भंवर सिह जी बैंक ऑफ इंडिया में जो 1st ग्रैड ब्रांच मैनेजर  की सेवाओं को स्मरण कर इस क्षेत्र में जो युवा अपना इतिहास लिख रहे है, उन्हें धन्यवाद अर्पित कर आगे बढ़ते हैं।*

*भारतीय डाक विभाग में श्री अजीत सिंह जी पुत्र श्री रावत सिंह जी, विद्युत में श्री नारायण सिंह जी पुत्र श्री मोहन सिंह जी,  चार्टडएकाउंट  प्रीतमसिंह पुत्र श्री रमेश सिंह, रेलवे विभाग में श्री बाबू सिंह जी पुत्र श्री देवी सिंह जी, मलेरिया विभाग में श्री मोहब्बत सिंह जी पुत्र श्री रावत सिंह जी, चिकित्सा विभाग में डॉ शिव सिंह जी पुत्र श्री भोपाल सिंह जी,  डॉ भरत सिंह श्री रघुनाथ सिंह जी, डॉ यशपाल सिंह पुत्र श्री मोहन सिंह व डॉ नागपाल सिंह पुत्र श्री हरि सिंह जी  एक सुश्री डॉ.अनुषा पुत्री श्री सुमेर सिंह जी की सेवाओं को याद करते हुए शिक्षा विभाग की ओर बढ़ते हैं।*

*शिक्षा विभाग में श्री सूरजमल जी पुत्र श्री रावत सिंह जी की राजपत्रित सेवाओं को प्रथम स्थान पर रखते हुए, इस विभाग में सेवा देने वाले श्री सबल सिंह जी पुत्र श्री मेघ सिंह जी, श्री भोपाल सिंह जी पुत्र श्री भैरु सिंह जी, श्री राम सिंह जी पुत्र श्री केसर सिंह जी, श्री नेमाराम जी, श्रीमती पुष्पावली राजपुरोहित धर्म पत्नी श्री अर्जुन सिंह जी, श्री सुमेर सिंह जी पुत्र श्री मगन सिंह जी, श्री अशोक सिंह जी पुत्र श्री सबल सिंह जी, श्री रमेश सिंह जी पुत्र श्री भंवर सिंह जी, श्री सुरेश सिंह जी पुत्र श्री राजू सिंह जी, श्री सुरेश सिंह जी पुत्र श्री पूनम सिंह जी, श्री रमेश सिंह जी पुत्र श्री हमीर सिंह जी, श्री श्रवण लाल जी, पुत्र श्री गणेश राम जी, श्री मोटाराम जी, पुत्र श्री पका राम जी श्री नवा राम जी पुत्र श्री परका राम जी व श्री वनाराम पुत्र श्री खीमाराम जी की सेवाओं का महत्व स्वीकार किया जाता है।*

*भारतीय सैन्य सेवा में भी शिवतलाव में अपना योगदान दिया है । जिसमें इंडियन आर्मी में श्री वीरमा राम पुत्र चुन्नीलाल जी मेघवाल, एयरफोर्स में श्री अमृत सिंह पुत्र श्री गंगा सिंह जी, मर्चेंट नेवी में श्री राकेश सिंह पुत्र श्री शैतान सिंह जी की सेवाओं को सुनकर हमारा सीना गर्व से फूल जाता है।*

*सरकारी सेवाओं के अन्तिम पडाव में, मैं प्रशासनिक सेवाओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूंँ। इस क्षेत्र में एकमात्र श्री रघुनाथ सिंह जी पुत्र श्री चिमन सिंह जी ने अपनी सेवाएं दी है यह शिवनगरी शिवतलाव के युवाओं की इंतजार कर रहा है। गुजरात गोवरमेंट के सार्वजनिक निर्माण विभाग में स्थानीय गाँव की बेटी ऑफिसर के रूप में सेवा दे रही है सुश्री भारती पुत्री श्री भंवरसिंह जी   इसके अतिरिक्त ज्ञात व अज्ञात सरकार के सभी विभागों में सेवा देने वाले हमारे शिव तलाव की भाइयों और बहनों को को नमस्कार करता हूँ ।*

(३) अन्य क्षेत्र में शिव नगरी शिवतलाव की भूमिका - *शिवनगरी शिवतलाव के आर्थिक जगत के इतिहास में अन्य क्षेत्रों में अपना योगदान देने वाले व्यक्तित्व को स्मरण करना आवश्यक है। विधि के क्षेत्र में एडवोकेट श्री नरेंद्र राजपुरोहित पुत्र श्री लक्ष्मण सिंह जी एवं श्री सुमेर सिंह जी पुत्र श्री चिमन सिंह जी का योगदान हैं।, बीमा क्षेत्र में श्री बाबू सिंह पुत्र श्री देवी सिंह जी व श्री भंवर सिंह पुत्र श्री अमर सिंह जी सहित कई बीमा इस क्षेत्र में अपना भाग्य लिख रहे है। इंजीनियरिंग सेवा में अपना इतिहास लिखने वाले युवाओं को मैं अपने शुभकामनाएं अर्पित करता हूँ। इसके कुछ प्रतिभाए अतिरिक्त प्रॉपर्टी व फाइनेंस जगत में धनोपार्जन कर रहे है।*

*साहित्य एवं लेखन भी अर्थोपार्जन का एक माध्यम है। इस क्षेत्र में छोटी मोटी सेवाएं देने वाला मैं करण सिंह पुत्र श्री मगन सिंह जी हूँ। मेरे द्वारा पत्रकारिता, आर्टिकल व ब्लाग लेखन के रुप सहकार्य किया जा रहा है। जब साहित्य लेखन की बात चल ही पड़ी है तो मैं उस प्रतिभा का नाम स्मरण करूंगा जो मेरे से भी कई कदम आगे साहित्य विभाग कि कहीं संस्थाओं से पुरस्कृत हुआ है, वह नाम है श्री देवी सिंह पुत्र श्री भबुत सिंह जी।*

(४) विदेश की धरती पर शिव नगरी की प्रतिभाएं - *श्री विनोद सिंह जी पुत्र श्री मोती सिंह जी, श्री संजय सिंह जी पुत्र श्री छत्रर सिंह जीी, शैतान सिंह जी पुत्र श्री रघुनाथ सिंह जी व केतन सिंह पुत्र श्री गंगा सिंह  विदेश की धरा पर शिवतलाव का नाम लिख रहे है।*

*धर्म ध्वज के संग शिव नगरी शिवतलाव*

विषय के शीर्षक से हम सभी समझ गए कि हमारे गाँव की धार्मिक झलक को देखने की ओर हम सब निकले हैं। मुथाओं के आदि पुरुष श्रद्धेय सोमाजी एवं शिवतलाव के संस्थापक श्रद्धेय जगाजी शिव भक्त थे। इन दोनों के ही ब्रह्म साधक होने की कथा मिलती है।

(१) *प्रमुख देवता* - शिव नगरी के प्रमुख देवताओं में क्रमशः - शिवजी, चारभुजा नाथ, माताजी, हनुमान जी, गोगाजी, शनिदेव, जुझार, सतिमां एवं पुरब इत्यादि है।

(1) *शिव आराधना* - _शिवतलाव वासियों का प्रथम धार्मिक बिन्दु शिव आराधना है। यहाँ शिव आराधना के तीन रुप देखे गए हैं। मगरा महादेव जी की आराधना, शिवतलाव वाले महादेव की आराधना एवं काटबेश्वर महादेव आराधना है। प्रथम मगरा महादेव जी का एक नाम बिलेश्वर महादेव भी बताया जाता है। स्थानीय क्षेत्र में झुंजार वीरों को बिलोजी कहा जाता था। मगरा महादेव मंदिर में दो वीरों का होना शोध का विषय है। क्योंकि भगवान सदाशिव का एक नाम वीरेश्वर भी है। लेकिन सकारात्मक धारणा बिल्वपत्र चढ़ाने के कारण भी बिलेश्वर कहा जा सकता है। अलूणा भोजन से यहाँ शिव आराधना का एक विशेष दिन अलूणा सोमवार होता है। द्वितीय स्थानीय गाँव में स्थित महादेव जी के रुप में। रुद्राभिषेक भी आराधना का अंग रहा है। शिवरात्रि उत्सव गाँव में यहाँ सब मिलकर मनाते है। यहाँ चांदी का छत्रर चढ़ाकर अभिषेक भी किया जाता है। तृतीय रुप काटबेश्वर महादेव की पूजा का है। यद्यपि काटबेश्वर के पाट कई परिवारों में है। पर परथिया धणी काटबेश्वर जी प्रधान आराधना स्थल गुड़ालास की पहाड़ियों में है। इनको काठ अर्थात लकड़ी के घोड़े चढ़ाकर की जाती है आजकल पीतल इत्यादि धातु के घोड़े चढ़ाये जाते हैं। परथियां धणी का एक मंदिर सोसावतों के बास में भी है।

(2) *श्रीकृष्ण आराधना* - श्री कृष्ण की आराधना के भी तीन रुप है। प्रथम चारभुजा, जिनका मंदिर गाँव के बीच में है।द्वितीय ठाकुर जी, जिनका मंदिर सुरावतों के बास में है । तथा तीसरा जन्माष्टमी के दिन नंदलाला के रुप में। चारभुजा के मंदिर में जनैऊ संस्कार के बाद काशी का शिक्षार्थी आता है। इसका भावार्थ है कि यह आध्यात्मिक पाठशाला का प्रवेश द्वार होना चाहिए। शादी के बाद दुल्हा तैयार करना जनैऊ के बाद मूल रुप नहीं है, यह मात्र व्यवस्था है। क्योंकि अन्य ब्राह्मण जातियों की भांति राजपुरोहित में अलग से उपनयन संस्कार नहीं होता है।

(3) *शक्ति आराधना* - शिवतलाव में शक्ति आराधना के सात रुप विद्यमान है। प्रथम मुथाओं की कुलदेवी रोहिणी माता, जिनका मंदिर सादड़ी है, अब एक नया मंदिर शिव मंदिर परिसर में बना है। द्वितीय महिषासुर मर्दनी माता के रुप में इनका मंदिर बालावास में है। यह मालारी के बोतियां की आराध्य देवी है। तृतीय वराह माँ जिनका मंदिर कुआवा नामक बैरे पर है। इन्हें सोसावत अपने आराध्य देवी मानते हैं। चतुर्थ खेड़ा देवी, इन्हें गाँव देवी इत्यादि नामों से भी भारतवर्ष में जानी जाती है। इनके मंदिर मुख्य दरवाजा के अंदर उत्तर दिशा में है, पुराना स्थान अशोक सा श्री सबल सिंह जी के घर के सामने होना बताया जाता था। पंचम शीतला माँ के रुप में इनके दोनों मंदिर महादेव जी मंदिर के पास दक्षिण दिशा में है। षष्ठम् काली माँ , इनका मंदिर श्री बाबु सिह जी पुत्र श्री गुलाब सिंह जी के घर के पीछे है। सप्तमं हिंगलाज माँ के रुप में इनका मंदिर आखरियों में नारायण पुरी के घर के उत्तर दिशा में है। इसके अलावा पार्वती, रुकमणी, गंगा मैया, आशापुरा माँ इत्यादि नाम देवी की आराधना करते देखे जाते है।

(4) *हनुमान आराधना* - पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना मंगलवार के दिन अलूणा रोट चढ़ाकर की जाती है। गाँव में सबसे पुराना मंदिर हनुमान जी का ही था, जो सुरावतों के बास में निंबड़ा वाली पोल में है। सबसे अधिक जाना पहचान मंदिर गाँव के मुख्य दरवाजे के अंदर दक्षिण दिशा में है। बालावास में एक हनुमान मंदिर है, जो मारु कुम्हारों के आराध्य देव है। एक मंदिर मेघवालों के बास में भी है। इस आलावा विभिन्न बड़े मंदिरों में हनुमान जी का मंदिर होते हैं।

(5) *रामदेव जी की आराधना* - राजस्थान के लोकदेवता रामदेव जी भी आराधना की जाती है। इनके दो मंदिर मेघवालों के बास में तथा एक मंदिर साध्वी लक्ष्मी भारती जी के आश्रम में है। मगरा महादेव जी में भी रामदेव मंदिर है।

(6) *अन्य देवता* - इसमें शनिवार के दिन शनिदेव व गोगा नवमी के दिन गोगाजी की आराधना की जाती है। गोगाजी का मंदिर श्री हम्मीर सिंह जी पुत्र श्री पुनमसिंह के पास है। इनके भैरुजी इत्यादि देवता भी है।

(7) *वीर पूजा* - शिव नगरी शिवतलाव में वीर पूजा भी की जाती है। इनकी पूजा तीन रुपों की जा रही है। जुझार घणी के रुप में, इनके दो मंदिर है। प्रथम श्री जांवत सिंह जी रगावत परिवार के है, जो महादेव जी मंदिर के उत्तर में है। द्वितीय श्री वरदी सिंह जी पुत्र श्री लुंब सिंह जी परिवार का है, जो पंचायत भवन के पश्चिम में कबूतर चबुतरे के पास में है। मामाजी बावसी के रुप में इनके दो थान है। एक श्री रामपुरी जी के बैर पर खीमावत परिवार के है। द्वितीय बैरा हमावाला में सुरावतों के परिवार के है। तृतीय रुप बिलोजी का है। इनका एक मंदिर मुंडारा परिसर में पितोयोजी के नाम से इन्हें पशु रोग के समय याद किया जाता है। द्वितीय मगरा महादेव जी मंदिर के अंदर भी प्रतिमा है।

(8) *सती पूजा* - (सती प्रथा, सतीत्व एवं सती में अंतर समझकर उक्त बिंदु का अध्ययन करेंगे। सती प्रथा शब्द का अर्थ है पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता के साथ पत्नी को भी अनिवार्य रुप अपनी देह को उसी चिता की अग्नि में समर्पित करना। सतीत्व शब्द का अर्थ शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से पवित्र जीवन जीना। सती शब्द का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिए समय भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से किसी अन्य को समर्पित करना। सती पूजा प्रयुक्त शब्द उक्त तीनों ही घटक से पृथक है। इसका अर्थ किसी घटना से आहत होकर अपने प्राणों अदृश्य शक्ति को समर्पित करना तथा उसका प्रतिकार का भाव उन पर छोड़ देना। यहाँ आत्म हत्या एवं सती होने में एक अंतर है। आत्महत्या दुखों से भागकर की जाती है, जबकि सती किसी विशेष घटना के प्रतिकार में किसी अदृश्य तथ्य मिलने के लिए होती थी। मैं इस प्रकार लिखकर सती होने की बात समर्थन नहीं करता हूँ, इस थोड़े समय के वैराग्य को स्थायित्व बदल कर भौतिक जगत में अपराध के सुधार की व्यवस्था को प्रतिपादन करना चाहिए।) हमारे यहाँ प्रथम सती होने की कथा राइका परिवार की उस महिला की है, जो सेवतलाव में राजपुरोहित के आने से पूर्व रहते थे। इसके अलावा मोटी सेरी में मेरे घर पश्चिम में, पनघट (पेजका) के पास मनावत परिवार की सती माताएं है, पनघट (पेजका) के पास ही सुरावत परिवार की सती माता, टंका के सामने वाले चबुतरे पर विभिन्न परिवारों कुल चार सती माता है। एक हमारे परिवार से श्री रणछोड़ जी तथा वैष्णव के भी पुरुष सती के पदचाप है। हमारे पूर्वज श्री रणछोड़ जी के जीवित समाधि लेने की बात सामने आई है। जोड़वाला परिवार से भी दो सती माता हुई है, एक जोड़ में तो दूसरे लाटाड़ा में। इसके अतिरिक्त भी ज्ञात अज्ञात सती माता व पुरुष हुए होंगे।

(9) *संत पूजा* - साध्वी माता लक्ष्मी भारती के पूजा स्थल, शिवतलाव, मगरा महादेव जी, सिंदरली व बिलियां में (प्रस्तावित) है। माँ लक्ष्मी भारती जी का मूल नाम लक्ष्मी बाई था। इनका जन्म सिंदरली ग्राम में हुआ था। इनका विवाह शिवतलाव निवासी जेठू सिंह जी सुरावत के साथ हुआ था। (माँ लक्ष्मी भारती जी ने मुझे बताया था कि मैंने अपना मोर(शादी के समय दुल्हन व दुल्हा के सिर पर बांधा जाता है) तेरे पडदादा जी श्री विजय सिंह पुत्र श्री मोती सिंह जी के यहाँ खोला था।) इनके एक पुत्री श्रीमती पोनी बाई है। माँ लक्ष्मी भारती जी के लौकिक पतिदेव जेठू सिंह जी के निधन के बाद भक्ति मार्ग को चुन लिया था, बताते है कि वे सती होना चाहती लेकिन बाद किसी कारणवश अपना निर्णय परमतत्व को पाने के लिए समर्पित कर दिया। माँ लक्ष्मी भारती जी ने संतश्री फूला भारती जी (हका महाराज) से दीक्षा ली थी। इसका अर्थ यह गुरु माँ लक्ष्मी भारती जी के आध्यात्मिक गुरु थे। लक्ष्मी भारती की साधना स्थली शिवमंदिर शिवतलाव, मगरा महादेव जी, बिलियां, लक्ष्मी भारती जी आश्रम शिवतलाव व सिंदरली थी। इन्होंने अपनी देह का त्याग इनके पीहर पक्ष के घर सिंदरली में किया था लेकिन इनकी समाधि शिवतलाव में है। अत: संत पूजा के रुप में माँ लक्ष्मी भारती जी के साथ सतं श्री खेताराम जी महाराज, शिक्षा सारथी आत्मानंद सरस्वती जी इत्यादि को आराध्य माना गया है। इस प्रकार सैनों ने सैनजी महाराज, दर्जी पीनाज, कुम्हार सरिया देवी, मेघवाल रघुनाथ पीर तथा अन्य जातियाँ भी अपने जातिगत संतों को आराध्य मानते हैं।

(10) *पूर्वजों के प्रति श्रद्धा* - वैदिक युग से भारतवर्ष में पूर्व पुरुषों एवं ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव रखा जाता है। इसी क्रम में शिवतलाव में भी पूर्वजों देवतुल्य मानकर श्रद्धा रखी जाती है। इनमें से कतिपय अभुक्त पुरुषों पूरब जी मानकर पूजा करते है। गोस्वामी अपने पूर्वजों को शिव मानकर एवं वैष्णव संत मानकर पूजा करते हैं। पूरब जी स्त्री पुरुष दोनों हो सकते है। सती पुरुष व पूरब जी अंतर है। सती किसी उद्देश्य को लेकर प्राणों की आहुति देते थे, जबकि पूरब अभुक्त संस्कार के कारण कहलाते हैं।

(२) *हमारे त्यौहार, पर्व एवं उत्सव* - भारतवर्ष को तीज त्यौहार का देश कहा गया है। अतः यहाँ प्रति दिन आस्था की रैली लगी रहती है।  

(1) *चैत्र नवरात्र* - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक मानाया जाने वाले उत्सव है। इसे प्रभु श्री राम का जन्मोत्सव माना जाता है। पुराने समय में रामधुन व रामचरितमानस का पाठ करने का रिवाज था। रामनवमी के दिन राम की आराधना किये जाने का उल्लेख है।

(2) *अक्षय तृतीया* (आखा तीज) - इस उत्सव का महत्व था, इस दिन मौसम का पूर्वानुमान चार मास चार कच्चे मटके भरकर किया जाता है तथा छोटे बच्चे मिट्टी के बने कुलके, से खेलते थे। इससे तराजू भी बनाते थे। घर में इस दिन गुड़ का घोल( गलरो खाटो) बनाया जाता था।

(3) *वैशाखी पूर्णिमा* - इस दिन खेती वित्तीय वर्ष की शुरुआत होती थी तथा इसी दिन पुराना खेती वित्तीय वर्ष समाप्त होता था। गाँव के कार्यकारी वर्ग(कमीण कारु) की बारी भी बदलती है।

(4) *गुरु पूर्णिमा* - आषाढ माह की पूर्णिमा को साधु संतों एवं गुरुजनों की आराधना की जाती है। इन दिनों माँ लक्ष्मी भारती जी के आश्रम में गाँव का मिलित भोज होता है।

(5) *श्रावण मास* - श्रावण मास को आराधना का माह माना गया है। इसमें विशेष शिव आराधना है।

(6) *राखी* - गाँव में भाई बहनों के तैयार को राकड़ी के रुप में मनाया जाता है।

(7) *कजली तीज* - औरतें अपने पति की लंबी आयु के लिए मनाती है। यह पर्व बीकानेर साइड से आया है।

(8) *जन्माष्टमी* - गाँव में कोन जनम आठम के नाम से मनाई जाती है। आजकल युवा बड़े उत्सव के रुप में मना रहे है। इसे युवाओं का उत्सव रुप देने में श्री सोहनजी भाईसाहब पुत्र श्री भबूत सिंह जी ने शुरुआत की थी। इस दिन अच्छे वर्ष के अनुमान प्रतीक मेंढक व खराब प्रतीक फरका का महत्व माना जाता था ।

(9) *गणेशोत्सव* - इसे गणपति के रूप में बड़े उत्सव के रुप में युवाओं द्वारा मनाया जाता है। यह परंपरा महाराष्ट्र से आयी है। मेरी जानकारी के अनुसार पहली गणपति शुरुआत में मुख्य भूमिका मदन सिंह पुत्र श्री रघुनाथ सिंह जी की थी। जिसमें सभी युवाओं का साथ था।

(10) *देवझुलनी एकादशी* - इसे रेवाड़ी उत्सव के रुप में मनाया जाता है। ठाकुर जी की रेवाड़ी वैष्णव तथा चारभुजा की रेवाड़ी रावल सजाते है।

( 11) *गोगा नवमी* - सांपों के देवता के रूप में गोगाजी को दूध चढ़ाया जाता है।

(12) *श्राद्ध* - अश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पूर्वजों के श्रद्धा के रुप में प्रचलन है। हमारी इसी पक्ष की अमावस्या को खीर व चुरमा के साथ कोवन मोवन किया जाता है।

(13) *शारदीय नवरात्रि* - देवी क अलग-आलग रुपों की आराधना के पर्व है हमारे यहाँ दुर्गा अष्टमी के दिन पाटवी परिवार की ओर से खेड़ा देवी का होम होता है। आजकल गरबा नृत्य भी आयोजित है । यह प्रथा गुजरात से आई हुई है। इसके बाद विजय दशमी दशहरा का पर्व होता है कभी कभी छोटा मोटा रावण जलाया जाता है।

(14) *दीवाली* - धन त्रयोदशी से लाभ पंचमी तक चलने वाला उत्सव है। धन तेरहस को मिट्टी के साथ आवली के फूल लाते है, अमावस्या को पटाखे फोड़कर दिवाली मनाई जाती है। शुक्ल प्रतिपदा को तलीम कर खाखरा मनाया जाता है, फिर लाभ पंचमी। इन दिनों घर में लक्ष्मी पूजा भी की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को देव देवाली (कोणकी दिवाली) मनाई जाती है। दीपावली पर घरों को दीपमालिका से सजाए जाते हैं।

(15) *शिवरात्रि* - भगवान महादेव जी के भजन कर शिवरात मनाते है। आज कालात्मक कार्य भी आयोजित किये जाते हैं। इसको यह रुप देने की शुरुआत भी श्री सोहनजी भाईसाहब पुत्र श्री भबूत सिंह जी ने की थी। सुबह महादेव जी का प्रसाद बाकला होते थे।

(16) *होलिका उत्सव* - खुटा पाचम से गैर नृत्य कर फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इसको अग्नि परंपरा के अनुसार पाटवी देते हैं तथा इसको गिराने में युवाओं का उत्साह देखने को मिलता है। इसके चारभुजा के यहाँ गाँव गैर, फिर महादेव जी गैर, खेताराम जी गैर (इसकी शुरुआत श्री अशोक सिंह सरदार सिंह जी ने सबके साथ मिलकर की थी) शीतला सप्तमी को ही:र सातम पर्व के साथ गैर नृत्य श्री रणजीत सिंह जी पुत्र श्री गिरधारी सिंह जी, गिरधारी सिंह पुत्र श्री कान सिंह व श्री गणेश सिंह जी पुत्र श्री मोती सिंह जी परिवार की ओर से आयोजन किया जाता था। इस दिन ठंडा खाने का रिवाज है। इसके अतिरिक्त रामदेव जी की गैर, मोमाजी गैर, मगरा महादेव जी गैर, कुआवा माताजी गैर व माताजी गैर चैत्र पूर्णिमा को आयोजित की जाती है।

(17) *मकर संक्रांति* - है:ली(सेली) बाकलो से सूर्य पूजा पर्व आजकल पतंग बाजी होती है।

(३) *साधना मार्ग की ओर चलता शिवतलाव* - धार्मिक अध्याय का अंतिम बिन्दु साधना मार्ग का है। शिवतलाव से साधना का रिश्ता सोमाजी व जगाजी से राह है। इस यात्रा में अनेक साधक हुए है। इस दरमियान शिव नगरी में कांछलिया पंथ, रंगास्वामी, अनोप स्वामी, राधास्वामी, ब्रह्म कुमारी, धन निरंकारी, विपश्यना पथ, आशारामजी आदि पंथ के साधक दिखाई दिए थे। आनन्द मार्ग साधना मार्ग के साधक भी शिव भूमि से निकले हैं।

(४) *भजन मंडली* - भजनों से सनातन मत का रिश्ता पुराना है। रामदेव जी के द्वारा प्रारंभ की गई रात्रि जमा जागरण प्रथा शिव नगरी में भी मिले हैं। हमारे यहाँ भजनियों में मेरी जानकारी के अनुसार मोती बा सुथार, रामबा सुथार, चेलोबा कुम्हार, जीवोबा राइका व श्री कान जी भाईसाहबकी भजन मंडलियाँ थी। वर्तमान में श्री सोहनजी भाईसाहब, मोहनसा, मोपसा, मोहन भाई सैन इत्यादि के भजन सुनाई दिये थे । दो व्यवसायी भजन सम्राट श्री अमृत सिंह पुत्र श्री सबल सिंहजी व श्री जगदीश कुमार पुत्र श्री मोहन लाल सुथार है।

यह धार्मिक इतिहास पर मेरी लधु दृष्टि थी ।

*शिवतलाव का राजनैतिक परिदृश्य*

शिवतलाव का राजनैतिक परिदृश्य में देखने पर सुन्दर दिखाई देता है। गाँव की स्थापना जागीरी मिलने से हुई है तात्कालिक व्यवस्था में स्वशासन भी एक राजनैतिक परिदृश्य का रुप था। विभिन्न राजवंश के युग में शिवतलाव की जागीरी दैदीप्यमान होना तात्कालिक राजव्यवस्था के अच्छे  संकेत है।

गाँव का राजनीतिक परिदृश्य लिखने से पूर्व बाली के पूर्व प्रधान श्री मोहनलाल जी जैन की पुस्तक का एक उद्धरण प्रस्तुत करूंगा जिसमें लिखा है कि शिवतलाव के श्री भोपाल सिंह जी पुत्र श्री गुमान सिंह जी व श्री सबल सिंह जी पुत्र श्री मेघ सिंह जी का उनके प्रधान बनने की यात्रा में नंगी तलवार लेकर जीप के बोनट पर बैठना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इस साहस से उस युग सामंती धारणा के सामने लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की।

*(१) स्वतंत्रता सेनानी श्री सबल सिंह जी* - बाली प्रधान की कुर्सी को शोभायमान करने वाले हस्ताक्षर श्री सबल सिंह जी पुत्र श्री मेघ सिंह जी बाली क्षेत्र की कोमरेड की आवाज थे, जिसे कोई भुलाएं भी नहीं भूल सकता है। इन्होंने विधायक का चुनाव भी लड़ा था। यह 1965 व आपातकाल के दरमियान राजनैतिक बंदी के तहत जेल भी गये । उन्होंने बाली में राजनैतिक चेतना को जगाने में जो भूमिका निभाई वह बाली के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। इनके हाथों  अपने गाँव की विकास यात्रा का एक लंबा अध्याय लिखा गया। गाँव में सबसे अधिक समय तक रहने वाले सरपंच थे। इन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा भी दिया गया था।

*(२) श्री राजेन्द्र सिंह जी* - राजस्थान सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त गोसेवा आयोग के अध्यक्ष के रुप सेवा देने वाले श्री राजेन्द्र सिंह जी पुत्र श्री अमरसिंह जी ने गाँव का नाम रोशन किया था। इन्होंने इसके अतिरिक्त कई राज्य सरकारों के साथ मिलकर गौवंश अनुसंधान पर कार्य किया।  यह भाजपा से ताल्लुक रखते थे।

*(३) श्री जयसिंह जी* - बाली क्षेत्र का एक दबंग चेहरा श्री जयसिंह जी पुत्र श्री हरिसिंह जी ने दो बार बाली से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा व पंचायत समिति के सदस्य भी रहे। यह कांग्रेस पार्टी के थे । इन्होंने ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष एवं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रुप में अपनी भूमिका अदा की। यह शिवतलाव के सरपंच भी रहे है।

(४) *श्रीमती गुलाब कंवर  जी* - बाली की पूर्व प्रधान श्रीमती गुलाब कंवर धर्म पत्नी श्री जयसिंह जी  शिवतलाव की महिला राजनैत्री है। यह कांग्रेस पार्टी से है। इससे पूर्व इन्होंने बाली पंचायत समिति के सदस्य के रही थी ।

(५) *श्री भोपाल सिंह जी* - शिवतलाव के पहले सरपंच श्री भोपाल सिंह पुत्र श्री गुमान सिंह जी बाली के उप प्रधान के रुप में सेवा की । इन्होंने राजस्थान कपास समिति के सदस्य के रुप भी सेवाएं दी। इन्हें रुस के प्रतिनिधि मंडल द्वारा संमानित भी किया गया था।

(६) *विधानसभा व लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले राजनेता*-  प्राउटिस्ट सर्व समाज के राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष श्री सोहन सिंह जी पुत्र श्री भबुत सिंह जी (सुमेरपुर), हिन्दू महा सभा के श्री दलपत सिंह पुत्र श्री श्री सोहन सिंह जी (बाली) व लोक परित्राण पार्टी के संस्थापक श्री चंद्रशेखर जी (बाली) तथा श्री तन्मय जी (पाली लोकसभा) से चुनाव में लड़े थे।

*(७) पंचायत समिति बाली चुनाव लड़ने वाले राजनेता* - श्री जसराज सिंह जी पुत्र सिंह श्री भैरुसिंह जी (कांग्रेस) यह वर्तमान में भाजपा में है तथा श्रीमती रेखा कंवर पुत्री श्री भोपाल सिंह जी (कांग्रेस) ने पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़े थे।

यह अध्ययन पत्र बता है कि कांग्रेस पार्टी ने शिवतलाव को बहुत अवसर दिये है।

(८) *अन्य राजनेता* - राजनीति के मंच वर्तमान में अपने योगदान देने वाले शिव नगरी के पुत्रों की पंक्ति को कुछ इस प्रकार सजाते है।

(1)  *श्री भारत सिंह* - श्री भारत सिंह पुत्र श्री राजेन्द्र सिंह - (भाजपा) राज्य पशु कल्याण बोर्ड (भारत सरकार) के अध्यक्ष है। इन्हें हाल ही में राष्ट्रीय डेयरी अवार्ड से सम्मानित किया।

(2) *श्री यशपाल सिंह* -  श्री यशपाल सिंह पुत्र श्री भोपाल सिंह (कांग्रेस) पंचायत समिति बाली में राजस्थान सरकार के प्रतिनिधि हैं। यह पाली जिला किसान कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे है।  तथा बाली में  कांग्रेस पार्टी के विभिन्न पदों पर कार्य किया है।

*(३)  श्री अरविंद सिंह* -श्री अरविंद सिंह पुत्र श्री पूनम सिंह (भाजपा) जिला स्तर पदाधिकारी रहे हुए है। इन्होंने बाली विधानसभा में  भाजपा ग्रामीण मंडल में सक्रिय उपस्थित दी है।

*(४) श्री खुशाल सिंह* -श्री खुशाल सिंह पुत्र श्री जगदीश सिंह जी कांग्रेस पार्टी के पर्यावरण प्रकोष्ठ के  प्रदेश सदस्य रुप में कार्य देखा है।

*(५)  राजनीति की ओर बढ़ते चेहरे* - श्री गणेश सिंह पुत्र श्री देवी सिंह (राष्ट्रवादी कांग्रेस ) प्रदेश महामंत्री है व श्री परबत सिंह पुत्र श्री मान सिंह (राष्ट्रवादी कांग्रेस) के बाली ब्लॉक अध्यक्ष है। व सुरेश सिंह पुत्र श्री नारायण सिंह जी भाजपा के उभरते चेहरे है। इसके अतिरिक्त ज्ञात एवं अज्ञात राज्य, जिला एवं ब्लाक स्तरीय सभी राजनेता की भूमिका की सराहना करते है। गाँव में सरपंच रहने वाले सभी सरपंचों एवं वर्तमान सरपंच श्री जगदीश सिंह जी पुत्र श्री हरिसिंह जी तथा वार्ड पंच रह चुके तथा वर्तमान है तथा पार्टियों के पदाधिकारी एवं सदस्य के की भी भूमिका की सराहना करते है।

(९) *अन्य सहकारी संस्था में शिवतलाव की भूमिका* -  इस क्षेत्र में एक नाम श्री हेमराज सिंह जी पुत्र श्री भबुत सिंह जी है, जो लाटाड़ा सोसायटी के अध्यक्ष रहे हुए है। इसके अलावा श्री प्रभु सिंह जी पुत्र श्री भैरुसिंह जी एवं श्री हिम्मत लाल सैन ने भी इस क्षेत्रत् में काम किया है।

राजनीति के एक हासिये में  मैं करण सिंह शिवतलाव प्राउटिस्ट सर्व समाज नामक राजनैतिक दल के राष्ट्रीय सह प्रवक्ता व राजस्थान प्रदेश महासचिव के रुप में सेवा देने का अवसर मिला। प्रगतिशील मारवाड़ी समाज नामक संगठन की संपूर्ण कार्य योजना बनाने की भूमिका भी निभा रहा हूँ। इसके अतिरिक्त राजनीति विषय पर अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर की पत्रिकाओं में आर्टिकल लिखने का सौभाग्य मिला है। दिल्ली से निकलने वाली विद्यार्थियों के मुखपत्र रक्तमंजरी में सह संपादक का कार्य देख रहा हूँ।  *मैं कोई राजनेता नहीं तथा न ही राजनीति मेरा व्यवसाय है। मै तो इतिहास का विद्यार्थी हूँ, इतिहास की मधुर स्मृतियों को याद करता हूँ।