मनोज उपाध्याय मतिहीन
- पूज्य अटल जी को समर्पित मेरी कविता...*
आज बिलखती धरा पर हंस रहा सारा गगन है खो गया एक रत्न रोती मेदिनी पर नभ मगन है !
आज है निस्तब्ध सब कुछ गुम हुए हम भी कही है जो हमारा था अभी वो अटल सूरज अब नही है !!
नृत्य करती अपसराएं स्वर्ग की रौनक बढी है सज गई महफिल है ऊपर और धरती पर रुदन है !!
आज एक अनमोल हीरा खो गया है जौहरी का ढूंढता भारत उसे व्याकुल हुआ हर एक सदन है !
गिर पड़ा हिमालय जो अटल अविचल खड़ा था सामने जिसके निरंतर काल नतमस्तक पड़ा था !!
है तुम्हें शत शत नमन हे वसुधा के दूलारे कल थे और कल भी रहोगे तुम हमे प्राणों से प्यारे !
आज कलरव भी विहंगो की न आती है कही से शोर सन्नाटों से आती पर पड़ा सूना चमन है !!
तुम नही आओगे यदि हम खुद वहां आएंगे मिलने काल ने जो जख्म बख्शा हम उसे आएंगे सिलने !
आज ये कहता हूँ मै क्या कह रहा सारा वतन है याद रखेंगे सदा हम दे रहे तुमको वचन है !!
*मनोज उपाध्याय मतिहीन*