अखिलेश दूबे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वर्तमान छात्र हैं तथा यहां सामाजिक विज्ञान संकाय से अर्थशास्त्र विषय में स्नातक कर रहे हैं। ये एक छात्र, छात्रनेता होने के साथ-साथ साहित्यकार भी हैं।

अखिलेश दूबे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के दायित्ववान कार्यकर्ता हैं तथा सामाजिक विज्ञान संकाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।

कोरोना काल में उस समय की यथार्थ को दर्शाता इनकी एक कविता है:-

"आमरियों के झुरमुट से धुंआ उठ रहा था, ऐसा लगा .. कोई विदुर अपने कृष्ण के आने की तैयारी कर रहा हो,

जब नजदीक गया तो देखा,

एक निर्धन स्वयं को जलाकर चिंता जला रहा था।।"

इनकी एक दूसरी कविता है जो प्रेम की यथार्थ व्यंजना प्रस्तुत करती है:-

"स्व-प्रियतम को देखकर

हृदय प्रफुल्लित हो जाए।

और दौड़े देह में सिहरन,

मन मयूर की थिरकन।।"

अखिलेश दूबे द्वारा लिखे गये कई सामाजिक, व्यंग्यात्मक व आलोचनात्मक लेख चर्चित हैं।