सदस्य:Mamtha J/राजस्थान का नृत्य और संगीत
राजस्थान का नृत्य और संगीत रीति रिवाजो और परम्पराओं का अन्य मूल बताते है। नर्तक और संगीतकार अब भी प्राचीन का ल की परंपराओं का पालन कर रहे है। नर्तक नृत्य-कला को रंगीन वेशभूषा और अलग भाव के साथ प्रदर्शन करते है। राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध या महत्वपूर्ण नृत्य शैली घूमर और झूमर है। यहाँ के लोग शाम को स्वयं अपने तरीको से लोक संगीत और नृत्य का आनंद लेते है। लोक नृत्य और मनोरंजन से रेगिस्थान में रहने वाले लोग और वहा का वातावरण ख़ुशी से खिल उठता है। महिलाएँ भी इन गतिविधियों में समान रूप से भाग लेती है।
राजस्थान के लोक नृत्य
संपादित करेंघूमर नृत्य राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध नृत्य है और यहाँ महिलाओ द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यहाँ नृत्य हाली में और प्रसिद्ध होगया है।
१. घूमर : शब्द "घूमर" शब्द घूमना से लिया गया है, जिसका मतलब है कि गोल आकर मई घूमना। यह एक बहुत ही साधारण नृत्या है। घूमर नृत्य में नृतक अपने घागरे से दोनों दक्षिणावर्त और विरोधी दक्षिणावर्त में प्रवाह करती है; इस नृत्य का दृश्य बहुत अदभुद है। इस नृत्य में महिलाये भोहोत अध्भुत और सुन्दर लेहंगा और लंबा घुंगट निकल कर नृत्य प्रस्तुत करती है। यह शादी की रीती है की जब नई नवेली दुल्हन शादी करके अपने ससुराल में आती है तब उसको घूमर करना पड़ता है।
२. घेर: यह नृत्य भील आदिवासियों का एक मात्र प्रस्तुत नृत्य कला है। यह नृत्य होली के त्योहार पर दोनों आदमी और औरत के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
३. चरी : यह नृत्य राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध नृत्य है जो ज्यादातर किशनगढ़ में किया जाता है। इस नृत्य में नृतक चरी या मटके को अपने सिर पर धारण करते है या पीतल के बर्तन को धारण करते हुए अपने हाथो से अलग अलग मुद्राओं के साथ इस नृत्य को प्रस्तुत करते है।
४। कटपुतली: राजस्थान की कटपुतली नृत्य पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। राजस्थान की परंपरा और अतीत की कहानियो को कटपुतलियो के माध्यम से दर्शाया जाता है। स्ट्रिंग कटपुतली राजस्थान की बहुत प्रसिद्ध कटपुतली है।
५। कच्ची घोड़ी : यह नृत्य शेखावाटी के बेंडिट क्षेत्र से आरंभ किया गया है। यह नृत्य शादी में लोगो को मनोरंजन करने के लिए पुरुष द्वारा प्रस्थुथ किया जाता है। वह धोती, कुरता और पगड़ी पहनकर कच्ची घोड़ी पर सवार कर अपने नग्न तलवार से ढोल और संगीत पर नृत्य करता है।
राजस्थान के लोक प्रिय संगीत
संपादित करेंराजस्थान के लोग का जीवन रोचक मंद होता है। रेगिस्तान के धुप में कड़ी मेहनत के बाद अपना समय एक साथ बड़े रोमांच से व्यतीत करते है। मनोरंजन के लिए हर क्षेत्र के लोग अपने-अपने क्षेत्र के लोक प्रिय गाने गाते है। यहाँ के संगीत कलाकार कही प्रकार के संगीत साधनो का प्रयोग करते है जैसे एकतारा, घुंगरु और सारंगी आदि।
राजस्थान में अनेक प्रकार के संगीत पाए जाते है जिसमे सपेरा , लंगास , भोपा , जोगी और मांगणियार। लेकिन काफी महत्त्व भक्ति के गीत और इनको प्रस्तुत करने वाले समुदायों का होता है।
१। मांगणियार : यह पारंपरिक पेशेवर संगीतकार है। यह कलाकार अधिकतर जैसलमेर और बाढ़मेर में रहते है। यह एक दिलचस्प संगीत साधन का उपयोग करते है जो तारो से बना हुवा होता है जिसे कमैचा कहते है। यह साधन अधिकतर राजस्थान और पाकिस्तान के सिंध के इलाकों में बजाय जाता है। मांगणियार दुनिया के कई देशों में अपना प्रदर्शन दिखा चुके है। वे हर जगह बड़ी सफलता हासिल कर रहे है।
२। लंगास: यह एक पेशवर जाती के संगीतकार है। ये पच्छिमी राजस्थान में रहते है और सिंधी समुदाय के सिपहियों के लिए संगीत प्रदान करते है। वे जीवन , विवाह या त्यौहार से संबंधित गीत गाते है। हाली वर्षो में लंगास अपने संगीत साधनो में ढोलक और कड़तल उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे है। इससे पहले ढोलक का उपयोग करना इनके समूहमे पूरी तरह से अनुचित था।
३। भोपा: भैरोवजी के पुजारी भैरोव भोपा के रूप में जाने जाते है। भैरोव राजस्थान के प्रसिद्ध स्थानीय देवता मने जाते है। गयो का झुण्ड पाबु के बलिदान और राजस्थान के सामाजिक इतिहास में वीर देवता में अपनी स्वीकृति का केंद्रीय बिंदु है। पुरुष अपने हाथो में रावणहत्था बजाए अपने साथी स्त्री के साथ पाबु की कहानी गाते है।