तांडव - भारतीय नृत्य शैली

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तांडवम, शिव तांडव या तांडव नृत्य एक दिव्य नृत्य है जो हिन्दू भगवान शिव द्वारा किया जाता है। शिव के तांडव नृत्य के द्वारा, निर्माण, संरक्षण और विनाश दर्शाया जाता है। शिव तांडव दो प्रकार के होते है : रुद्र ताण्डव और आनंद ताण्डव। रुद्र ताण्डव शिव जी के क्रोध को दर्शाता है। तांडव पहले उनके निर्माता के रूप को और फिर ब्रह्मांड के विनाशक या मौत के रूप में उनके हिंसक स्वभाव को दर्शाता है। आनंद ताण्डव शिव जी के आनांदित रूप को दर्शाता है। शैवा सिद्धांत परंपरा में, नटराज (शाब्दिक अर्थ "नृत्य के भगवान") के रूप में शिव जी नृत्य के सबसे महान भगवान माने जाते है। सारे नर्तकियों नटराज रूप की पूजा करते है। शिव तांडव एक बहुत ही कठिन नृत्य शैली है। इस शैली के लिये लोगो को बहुत ताकत और ऊर्जा की जरूरत होति है। तांडव शैली का नाम शिव के परिचारक तंडू से लिया गया है। तंडू ने शिव जी के आदेश पर ही भरत (नाटय शास्त्र के लेखक) को अंगहारा और कार्ना जैसे साधनो को तांडवम मे उपयोग करने का निर्देश दिया था। [1]

 
नटराज भगवान

कुछ विद्वानों का विशर है कि तंडू खुद कही रचयिता थे कला के जो की नाटय शास्त्र में सम्मलित किया गया। दरसल शास्त्रीय कला जैसे (नृत्य, संगीत और गीत शैवा परम्परा की मुद्राओ और अनुष्ठानों से निकाले गये है। १०८ कार्ना नटराज के कडाबुल हिन्दु मन्दिर; हवाई मे है। यह पूरा संगह जो की अब भी है वो सतगुरु सिवाय सुब्रमुनियस्वामी के द्वारा १९८० मे किया गया था। प्रतयेक मूर्ती १२ इंच लम्बी है। यह माना जाता है कि चिदंबरम मन्दिर मे नही ऐसी ही एक पूरा सेट है। इन ३२ अंगहारा और १०८ कार्ना की चर्चा भरत द्वारा नाटय शास्त्र तांडव लक्ष्गण के चौथे अध्याय मे किया गया है। करना एक संग्रह है हस्त मुद्राओ और पैर की जो कि नृत्य मे होता है। अंगहारा ७ और कुछ ज्यादा कारावास से बना है। १०८ करणास जो की तांडव मे शामिल है,जो नृत्य, लड़ाई, और व्यक्तिगत लड़ाइयों और विशेष आंदोलनो मे इस्तमाल किया जाता है। नृत्य अनन्त ऊर्जा के पाँच प्रमुख अभिव्यक्तियों का एक सचित्र रूपक है - सृष्टि - निर्माण, विकास स्थिति - संरक्षण, समर्थन सम्हारा - विनाश, विकास तिरोभवा - भ्रम अनुग्रह - रिहाई, मुक्ति, अनुग्रह [2]

तांडव के प्रकार

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इस प्रकार तांडव सृजन और विनाश,जन्म और मृत्यु के च्रक प्रतीक है। तांडव जब आनंद के साथ प्रस्तुत किया जाता है तो उसे आनंदा तांडव कहते है। जब यह हिंसा भाव से प्रस्तुत किया जाता है तब उसे रुद्र तांडव कहते है। शिव जी ने तांडव नृत्य तब किया था जब उनकी पहली पत्नी सती ने अगनी मे अप्ने आप को त्याग दिया थ। अपना दुख:और् क्रोध वयतीत करने के लिये उनहोने रुद्र तांडव किया। हिन्दु ग्रंथो मे ७ प्रकार के तांडव का वर्णन किया गया है : आनंद तांडव, त्रिपुरा तांडव, संध्या तांडव, समहारा तांडव, काली तांडव, उमा तांडव, गौरी तांडव। हालांकि कुछ लोगों का मानना ​​है कि १६ प्रकार के तांडव होते हैं। शिव के तांडव के जवाब में उनकी पत्नी पार्वती के नृत्य प्रदर्शन को 'लास्य' कहते है जिसमें हाव भाव बहुत कोमल, सुंदर और कभी कभी कामुक होते हैं। लास्य नृत्य दो प्रकार के होते है, जरीता लास्य और युवाका लास्य है। [3]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Tandava
  2. https://www.hindujagruti.org/hinduism/knowledge/article/what-is-the-origin-of-tandav-dance.html
  3. http://www.mahashivratri.org/shiva-tandava.html