सदस्य:Pt. Vijay Tripathi 'Vijay'/प्रयोगपृष्ठ
एक प्रश्न फेस बुक पर चर्चित है. यहाँ उसके विषय में कुछ स्पष्ट किया जा रहा है.
प्रारब्ध ( भाग्य ) बड़ा या पुरुषार्थ ( कर्म ) ...इस विषय में बहुत शंकाए है .... इसके लिए सर्व प्रथम हमें यह जान लेना चाहिए कि प्रारब्ध और पुरुषार्थ क्या है ?
मानव में ४ प्रकार की चाहना होती है. १- अर्थ , २- धर्म, ३- काम , ४- मोक्ष ... १- अर्थ - धन को ही अर्थ कहते है यह दो प्रकार का होता है , ( अ ) स्थावर ( ब) जंगम .. स्थावर में सोना , चांदी , रूपये , जमीन , जायदाद , मकान आदि आते है .... जंगम में , गाय, भैंस , अन्य पशु आदि आते है.... २- धर्म- सकाम या निष्काम भाव से जो भी यज्ञ , जप, तप, दान , स्नान , तीर्थ आदि कृत्य आते है ..... ३- काम - सांसारिक सुख भोग को काम कहते है, यह सुख - विलास ८ प्रकार का होता है ... ( क ) शब्द - यह २ प्रकार का होता है वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक . जिसमे व्याकरण , कोष , साहित्य , उपन्यास , गल्प , कहानी आदि वर्णात्मक में आते है ..और खाल , तार और फूंक के तीन प्रकार के वाद्य यंत्र और ताल का आधा बाजा , यह साडे तीन प्रकार के बाजे ध्वन्यात्मक में आते है ....इन वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक को सुनने से जो सुख मिलता है वह शब्द सुख है . ( ख ) स्पर्श - स्त्री , पुत्र , मित्र आदि के साथ मिलाने पर उनके त्वचा स्पर्श से जो सुख मिलता है वह स्पर्श सुख है ... ( ग ) रूप - पहाड़ , सरोवर , सागर , सिनेमा , टेलीविजन, बाग- बगीचा , सुन्दर स्त्री / पुरुष आदि की सुंदरता को देख कर जो सुख नेत्रों से मिलता है उसे रूप सुख कहते है... ( घ ) रस - मीठा , खट्टा , नमकीन , कडुवा , तीखा और कसैला इन ६ प्रकार के रसों को चखने या खाने से जो सुख मिलता है उसे रस सुख कहते है... ( च ) गंध - नाक से इत्र , पुष्प , तेल आदि सुगन्धित और प्याज, लहसुन आदि के सूंघने से जो सुख मिलता है उसे गंध सुख कहते है .... ( छ) मान - शरीर का आदर सत्कार होने से जो सुख ,मिलता है , उसे मान सुख कहते है ... ( ज ) बडाई - नाम की प्रशंसा , वाह वाही होने से जो सुख मिलता है उसे बडाई या प्रशंसा सुख कहते है... ( झ ) आराम - सोने से , मालिश से , जो सुख मिलता है उसे आराम सुख कहते है .. ४-मोक्ष - आत्मसाक्षात्कार , तत्व ज्ञान , भगवद दर्शन , भगवत प्रेम , कल्याण , मुक्ति आदि का साधन और नाम ही मोक्ष है ... इन चारों १- अर्थ , २- धर्म, ३- काम , ४- मोक्ष में अर्थ और धर्म दोनों परस्पर एक दूसरे की वृद्धि करते है ... इन चार में १- अर्थ , २- धर्म, ३- काम , ४- मोक्ष अर्थ , और काम ,की प्राप्ति में प्रारब्ध ( भाग्य ) की मुख्यता है ..अर्थात यह दोनों भाग्य वश पूर्व के प्रारब्ध वश ही न्यूनाधिक प्राप्त होते है ..इन २ में भाग्य ( प्रारब्ध ) की मुख्यता और पुरुषार्थ की गौणता है ..यहाँ पुरुषार्थ का कोई जोर नहीं ... धर्म और मोक्ष इन दोनों में पुरुषार्थ की मुख्यता और प्रारब्ध की गौणता है .. प्रारब्ध और पुरुषार्थ दोनों का क्षेत्र अलग अलग है और दोनों अपने क्षेत्र में प्रधान है ... अब एक गहन बात ... --Pt. Vijay Tripathi 'Vijay' 23:03, 8 जुलाई 2013 (UTC)सृष्टि में जो भी मानव सर्व प्रथम जन्मा होगा ...वह सब कुछ ( प्रारब्ध वश ) लेकर ही जन्मा होगा ..क्योंकि तब उसके पास पुरुषार्थ दिखाने का समय ही नहीं रहा होगा ... अत: बड़ा भाई प्रारब्ध ( भाग्य ) और छोटा भाई ( पुरुषार्थ ). Pt. Vijay Tripathi 'Vijay' 23:03, 8 जुलाई 2013 (UTC) Pt. Vijay Tripathi 'Vijay'