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कन्नड़ राज्योत्सव
संपादित करेंराज्योत्सव दिन कर्नाटक राज्य में एक सरकारी छुट्टी के रूप में सूचीबद्ध किया गयाराज्योत्सव 1956 में इस दिन की याद दिलाता है जब कर्नाटक राज्य दक्षिण भारत के सभी कन्नड़ भाषा-भाषी क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया था। है। यह हमेशा 1 नवंबर को मनाया जाता है। यह कर्नाटक गठन दिवस रूप में भी जाना जाता है।
इतिहास
संपादित करें1 नवंबर 1956, मैसूर राज्य बम्बई और मद्रास प्रेसीडेंसी के कन्नड़ भाषी क्षेत्रों के लिए एक एकीकृत कन्नड़ बोलने वाले उप राष्ट्रीय इकाई बनाने के साथ विलय कर दिया गया था। इस नये एकीकृत राज्य को शुरू में मैसूर नाम दिया गया था। उत्तरी कर्नाटक के लोग मैसूर के नाम से सहमत नही थे। इसलिये मुख्यमंत्री देवराज उर्स ने राज्य को कर्नाटक नाम दिया था। लालकृष्ण शिवराम कारंत, कुवेम्पु, मस्ती वेंकटेश अयंगार, ए एन कृष्णा राव और बी एम स्रीकन्टैया जैसे महान लोगों भी इस्के लिये बहुत योग्दान की थी।
कर्नाटक राज्योत्सव का समारोह
संपादित करेंराज्योत्सव दिन में लाल और पीला राज्य ध्वज कर्नाटक भर में प्रदर्शित होता हैं और उस्के साथ एक रंगीन उत्सव होता है। हर साल राज्य सरकार, जो भी कर्नाटक राज्य के लिए योगदान किये है उन्के के लिए पुरस्कार की घोषणा किया जाता हैं। यह उत्सव धर्म को नहि देखता नही क्योंकी यह उत्सव करनाटक राज्य और संस्क्रिति के बारे में हैं न बल्की कोई धर्म के बारे में। इसी लिये सारे धर्म के लोग इस उत्सव को मनाते हें। इस दिन की खूबसूरती है कि यह आयु समूहों के रूप में ज्यादा उत्साह, धर्म, लिंग और आय के साथ आनंद लिया जाता है, यह वास्तव में एक पौष्टिक और समावेशी उत्सव हैं। राज्य सरकार उन लोगों को राज्योत्सव पुरस्कार देते हैं जो राज्य के विकास के लिए योगदान दिये है। राज्य के मुख्यमंत्री इस उत्सव को बेङ्लूरू के कन्टीरवा स्टेडियम में शुरुआत करते हैं। कयी पाटशाला के बच्चों को पदक दिया जाता हैं। कन्नड़ झंडे को बेंगलुरू के शहर भर में लगभग सभी कार्यालय और व्यापारिक प्रतिष्ठान पर प्रदर्शित किया जाता हैं। सारे ऑटो रिक्शाओं में इस राज्य की द्वज को प्रदर्शित करते हैं। पाट्शालाओं में और महाविध्यालयों में भी इस उत्सव को रज्य कि नाट्य, कला और संस्क्रिती कि प्रशंसा के द्वारा मनाया जाता हैं। इस राज्य के सबसे प्रमुख कवि कुवेम्पु कि कविताए को पडाया जाता हैं और उन्की गाना 'जया भारथा जननी' नामक गाना को भी गाया जाता हैं।