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बिहारी लाल
संपादित करेंबच्च्पन
संपादित करेंमहाकवि बिहारी लाल हिन्दी साहित्य के अत्यन्त लोकप्रेय कवि हे । सन १६०३ मे बिहारी लाल का जन्म हुआ था ओर बसुआ गोविंदपुरा नामके गाँव मे ग्वालियर मे हुआ था । जाति के माधुर थे । महाराज जयसिंह को निम्नलिखित दोहा सुनाकर वहा मुग्द होगय । कविवर बिहारी ने अपनी एकमात्र रचना सतसई अपने आश्रयदाता महाराज जयसिंह से प्रेरणा प्राप्त कर लिखी थी । बिहारी एक साजग कलाकार हे । बिहारी गी का एक ग्रंत हे ७१३ दोहे लिखे हे , उसका नाम बिहारी सतसई हे । सतसई बिहारी की प्रमुख रचना हे ।
दोहे
संपादित करेंबिहारी के दोहा का उदहरण यह हे -
१ घर घर तुरकिनि हिन्दुनि देतिं असीस सराहि ।
पतिनु राति चादर जुरी तैं राखो जयसाहि ।
२ करि फुलेल को आचमन मीठो कहत सराहि।
रे गंधी मतिमंद तू इतर दिखावत काँहि। कर लै सूँघि,सराहि के सबै रहे धरि मॉन। गंधी गंध गुमलाब को गँवई गाहक कॉन ।
दोहों मे प्रतिपादित श्रृंगार रस ने रीतिकाल को श्रृंगार काल की संघ्य दिलवाने मे आधार भूमि का कार्य किया । उन्होने वियोग पक्ष मे इतना श्रृगार नहि हुआ हे जेसे उन्को संयोग पक्ष मे हुआ था। विरह वर्णन के लिए ह्र्दय की जिस संवेदन शीलता ओर सहानुभूति कि आवश्य्कता होति हे , बिहारी उनमे शून्य हे । वे मूलतम्म अनुराग के कवि हॅ , अनुराग के मिलन पक्ष मे उनका मन खूब रमा हॅ । बिहारी के द्रष्टि से संयोग पक्ष की ऐसी बात नहीं जो बची हो । उनके समान हावों ओर भावों की सुंदर योजना कोई ओर कवि न कर सखे । इसकाब एक उदाहरन यह हॅ -
बतरस लालच लाल की , मुरली धरी लुकाई । सॉहा करे भॉह्नी हँसे देन कहे नाती जाई । नायक ओर नायिका के प्रेम को दर्शाने वाला यहा दोहा भी प्रासिद्ध हॅ ।
रचनाऍ
संपादित करेंबिहारी लाल का रचनाएँ सुंदर ओर अर्थपूर्वक थे । उन्होने बहुत सारे रचनाएँ लिखे जॅसे की : १ जाके लिए घर आई घिघाय २ नील पर कटि तट ३ वंस बडॉ बडीं संगति पाई बिहारी जयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे । उनका वहा बडा सम्मान प्राप्त था । राजा की ओर सी इनको प्र्त्येक दोहे पर स्वर्ण मुद्रा प्रादान की जाती थी । लगभग १६६३ मे बिहारी का स्वर्गवास हुआ । बिहारी ने एक मात्र ग्रन्त रचना की जिसका नाम हे 'बिहारी सतसई' । लगभग इसमे सात सॉ उनन्नीस दोहे हें । वे इस रचना से ही अमर कवि बने थे । इनकी सतसई की पचासॉ तीकाएं लिखी जा चुकी हॅं । बिहारी का साहित्य मे विशिसश्ट स्थान हे । अलंकारों का उनके रचराओ मे अधिक प्रयोग हुआ हे । ओर उनका रचना बहुत सुंदर भी होते हे । वे बडी से बडी बात को थोडें से शब्दों में कहने की सामर्थ्य रकथे हॅं । उनके दोहों के विशय मे यहा कथन पूर्ण रूपेण सत्य हॅ की
सत सॅया के दोहरा , जस नावक के तीर । देखन में छोटे लगें , घाव करें गम्भीर ।
उनको बहुत प्रशस्ति मिला हॅ जॅसे: पुलित्जर प्रशस्ति , पद्म- भूषण प्रशस्ति , तमरा पतरा प्रशस्ति । बिसारी जी मृत्यू सन १७२० मे हुआ था ।