A.k dubey r
लूटने को और क्या बाकी रह गया
प्रसंग बैनगंगा उदगम का महाप्रमाण!
विशेष टिप्पणी
राष्ट्रचंडिका सिवनी। जब देश की बड़ी नदियों में शुमार ‘व्यास’ की धारा के बहाव का रूख ही मोड़ा जा सकता है तो ऐसे में ‘बैनगंगा नदी’ के उदगम को यों नही छेड़ा जा सकता। ऐसी अदभुत घटना पूर्व में भी इस देश में घटित हुई हैं। इन दिनों सिवनी जिले के ‘मुंडारा’ से प्रागऐतिहासिक काल में प्रकट हुई बैनगंगा का उदगम कुछ किलो मीटर दूर नदी बल्कि एक जिले से ही 80 कि.मी. दूर दूसरे जिले में लांध गया है। इस कारनामे को अंजाम किसी ऋषि के श्राप या वरदान ने नही दिया है बल्कि इसे कर दिखाया है हमारे ‘भौगोलिक गजट’ में दर्शाया गया है कि बैनगंगा नदी का उदगम छिंदवाड़ा में है। बैनगंगा के उदगम और प्रवाह क्षेत्र को देखा जाये इसका स्पर्श तक मीलो-कोसों दूर छिंदवाड़ा जिले की सीमाओं में नही है। नागपुर रोड़ मुंडारा से निकलकर सिवनी के लखनवाड़ा होते हुए यह सिवनी के विभिन्न ग्रामों से होते हुए छपारा भीमगढ़ संजय सरोवर बांध केवलारी क्षेत्र होते हुए बालाघाट जिले में प्रवेश कर आगे का सफर तय करती है। ज्योग्रफि का साधारण सा ज्ञान रखने वाला भी बता सकता है कि इस बीच उदगम तो या बहाव क्षेत्र में कही भी छिंदवाड़ा आता है या? जिले में इस ‘प्राकृतिक घटना’ को लेकर बहस छिड़ी हुई हैं। विधानसभा में हमारे नुमाईंदे गला फाड़कर चिलवा रहे हैं। भारी भरकम विज्ञप्तियों के बोझ तले अखबार कुचल गये हैं। अब इन्हें कौन समझाऐ कि यह सिवनी जिले की नियति है। ‘यह वह द्रोपदी है जिसका चीर हरण हमेशा से दु: शासन द्वारा’ किया जाता है। चाहे बात मेडीकल कॉलेज की हो, इंजीनियरिंग कॉलेज की हो, एन.एच.ए.आई. के मु यालय की हो सबका हरण हो चुका है। अब जब कुछ नही बचा तो ये हमारे प्राकृतिक संसाधनों को ही छीनने लगे ऐसा रहा तो अब ये मोगली की जन्म स्थली अमोदागढ़ ‘और ‘करिया पहाड़ को भी उखाड़ कर छिंदवाड़ा ले जा सकते है? वैसे यह असंभव भी नही हैं उनके लिए जब ‘व्यास नदी ‘की धारा ही मोड़ी जा सकती है। उल्लेखनीय है कि एक क्षेत्रीय क्षत्रप नेता ने कुछ वर्षो पूर्व उत्तराखंड में अपने होटल-रिसोर्ट को अति नेचुरल बनाने के लिए व्यास नदी की धारा ही मोड़ दी थी तो भलां बैनगंगा की या बिसात….?
जल संकट से शहर तो या जंगलात भी चक्रव्यूह में!
संपादित करेंwww.rashtrachandika.com जल संकट से शहर तो या जंगलात भी चक्रव्यूह में! शासकीय योजनाओं की खुली पोल : जल स्तर निचले स्तर पर राष्ट्रचंडिका सिवनी। गर्मी का मौसम अभी परवान नही चढ़ा है। अभी मार्च चल रहा है अपै्रल, मई और जून आने हैं। जिले में चारो ओर पानी की त्राही-त्राही मची हुई है। लाख दावों के बावजूद जल प्रबंधन का सिस्टम फेल हो चुका है। घोषणाऐं और योजनायें दम तोड़ चुकी हैं। पिछले साल वर्षा ऋतु के आगाज के साथ ही शासन और प्रशासन स्तर पर जल प्रबंधन और संरक्षण को लेकर शासकीय और जनसंपर्क विभाग के ढोल के माध्यम से आगामी दिनों के लिए योजनाओं की घोषणाएं की गई। स्थिति अब यह है कि संकट गहराते प्रशासन और जनप्रतिनिधि बगले झांक रहे हैं। योजनाएं या तो बनाई ही नही गई या फिर वह लालफीताशाही की भेंट चढ़ गई। स्थाई जल स्त्रोत सूख चुके हैं। झिरिया, कुएं, बावली में सूखी चट्टाने नजर आ रही हैं। जल स्तर के काफी और काफी निम्र स्तर पर चले जाने से बोर भी दम तोड़ चुके हैं। बैनगंगा नीद का भीमगढ़ बांध खतरनाक कम जल स्तर पर पहुंच गया हैं। जिससे सिवनी नगर में पेयजल संकट गहरा गया हें। आगे गर्मी में या हाल होगा इसकी भयावह कल्पना ही की जा सकती हैं। अब इस स्थिति में प्रशासन के हाथपैर फूल रहें हैं। टैंकरों से भी इतनी बड़ी आबादी को जल-प्रदाय संभव नही नजर आ रहा हैं। यह सब हुआ यों? पहले से इस ओर समय रहते यों नही ठोस कदम उठाये गये। शहरी निर्माण कार्यो पर ‘वाटर हार्वेस्टिंगÓ के टै स, तो लिए गए। पर या उनकी मुक मल निगरानी पालिका द्वारा की गई? तालाबों, जलाशयों, बांधों से गाद (स्लिट) निकाली गई? उनका गहरीकरण कराया गया? पानी रोको-पानी सोखो अभियान का या हुआ? यह तमाम वे यक्ष प्रश्र है जिसका जवाब जनता प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से चिल्ला-चिल्ला कर मांग रही है। शहरी तो या ग्रामीण क्षेत्रों में भी जानलेवा हालात बनते जा रहे हैं। जंगलातों में भी यही स्थिति है। जल स्त्रोतों के असमय सूख जाने से जंगली जानवर रहवासी बसाहटों का रूख कर रहे हैं। कहां गई जंगली जानवरों की पानी योजनायें….।
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ग्रामीण क्षेत्रों के नाम पर दे रहे नलकूप खनन की अनुमति और शहरी क्षेत्रों कर रहा
नलकूप खनन
www.rashtrachandika.com राष्ट्र चंडिका सिवनी। जलसंकट गहराने के आसार हैं। इसको ध्यान में रखते हुए कले�टर ने नलकूप खनन पर प्रतिबंध लगा रखाहै। इसके बावजूद अवैध रूप सेनलकूप खनन का सिलसिला बदस्तूरजारी है। ग्रामीण क्षेत्रों में बिना प्रशासनकी इजाजत के मशीन से नलकूपखनन किया जा रहा है। इसकी जानकारी अधिकारियों को न हो यह मुमकिन नहीं है। निश्चित मिलीभगत से यह सब कार्य हो रहा है। नलकूप खनन पर पुरी तरह से पुरे जिले मे प्रतिबंध कर रखा है बावजूद उसके पुरे शहर मे अवैध बोरिंग चल रहे है।अभी कुछ दिनो पूर्व के रात रात मे ये अवैध बोरिंग हो रहे थे लेकिन अब दिन मे भी अवैध बोरिंग खनन धडल्ले से चल रहे हैं जब प्रशासन ने प्रतिबंध लगा रखा तो कैसे हो रहे बोरिंग तो एक एजेंट के आदमी ने बताया कि परमिशन एक की बताया कि परमिशन एक कि लेते हैं और तीन से चार बोलिंग कर देते हैं तो खेल चल रहा है। सूत्र बताते हैं कि नगर पालिका में कुछ रूपये देकर नलकूप की अनुशंसा की जा रही है। जबकि सिवनी जिले भी जल अभावग्रस्त घोषित कर दिया गया है। कई बार लोगों ने जि�मेदार अधिकारियों को फ़ोन लगाया लेकिन उनका इस ओर ध्यान नहीं नहीं जा रहा है। पूर्व दिनों में प्रशासन द्वारा प्रभावी कार्रवाई इन अवैध बोरिंग मशीन वालों के विरुद्घ की गाई है तथा विशेष परिस्थिति में नलकूप खनन के लिए विधिवत अनुमति ली जाती थी। जरूरतमंद और किसान तो इसके लिए प्रशासन से बोर कराने के लिए अनुमति लेते ही थे। बोरिंग मशीन संचालक और एजेंट भी निजी बोरिंग करने के लिए प्रशासन से परवाना हासिल करते थे। अब ऐसा नहीं हो रहा है। क्षेत्र में कई जगह बनिा अनुमति के खनन हो रहा है। बोर खनन मशीन संचालक व ऐजेंट किसान से परमिशन के नाम पर रुपए ले रहे हैं। अफसर इस पर मौन बने हुए हैं।
इन शर्तों पर दी जा रही नलकूप खनन की अनुमति-
खनित नलकूप की जल आवक क्षमता 05 अश्व शक्ति से 10 अश्व शक्ति वाले सबमसिबल पंप सेट के संचालन हेतु प्राप्त होने पर ग्रामवासियों को ग्राम के पेयजल संकट के निदान हेतु नलकूप ग्रीष्मकाल में पेयजल निदान हेतु अधिग्रहण किया जा सकेगा। नलकूप खनन करने पर यह सुनिश्चित किया जाये कि पेयजल स्त्रोत प्रभावित न हो। अन्य ग्रामवासियों से प्राप्त शिकायत पर उत्खनन कार्य तत्काल बंद किया जावेगा। शर्तों के उल्लंघन पर अनुमति स्वमेव निरस्त मानी जायेगी। उत्खनन के समय अनुमति आदेश की प्रति मौके पर मशीन संचालक तथा आवेदक के पास अनिवार्यत: उपल�ध रहेगी। नलकूप खनन रात्रि के समय नहीं किया जावेगा।
रोजगार गारंटी की बंटती रेवड़ी! मजदूरों के साथ रोजगार सहायक, उपयंत्री की पौबारा राष्ट्र चंडिका सिवनी। ग्रामीण क्षेत्रों के संगठित और असंगठित क्षेत्र के महिला और पुरूष श्रमिकों को उनके ही आस-पास रोजगार-काम उपल�ध कराने के लिए मनरेगा, नरेगा, रोजगार गारंटी आदि योजनाएं संचालित है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक श्रमिक को वर्ष में कम से कम 90 कार्य दिवस का कार्य शासकीय निर्धारित दरों पर उनके पारिश्रमिक का भुगतान हो सके। ‘जॉब कार्ड और कर्मकार मंडलÓ के कार्ड बनाऐ गए है। यह एक अच्छी योजना है, हमारा उद्देश्य इन योजनाओं की आलोचना करना कतई नही है। पर इस योजना के क्रियान्वयन की सफलता पर उठते सवाल सोचने को मजबूर कर देते हैं। प्राय: प्रत्येक ग्राम पंचायतों में होने वाले शासकीय कार्य जैसे भवन निर्माण सड़क (सी.सी. और सुदूर ग्रामीणसड़क) तालाब गहरीकरण और महावृक्षारोपण अभियान जैसे कार्य रोजगार गारंटी योजना के तहत उसके मद से कराये जा रहे हैं। ग्रामों के श्रमिक (महिला और पुरूष) रोजगार मिलने की गारंटी से इस कदर अलाल हो गये है कि वे कार्य की गुणव�ाा और प्रगति से पूरी तरह बेपरवाह हो चले है। इन श्रमिकों को सिर्फ और सिर्फ अपना नाम रोजगार रजिस्टर में दर्ज करा दस से पांच के समय से ही मतलब रह गया है। प्रति कार्य दिवस इन मजदूरों द्वारा किस अनुपात में कार्यो को अंजाम दिया जा रहा है इसका अंदाजा कार्य स्थलों पर जाकर लगाया जा सकता हैं। मजदूरों को अपनी हाजिरी पकाने से मतलब है, तो वही ग्राम सचिव और रोजगार सहायक और मेट हाजिरी भरने से ही सरोकार रख रहे हैं। जनपद के यंत्री, उपयंत्री भी कार्य की प्रोग्रेस को नजर अंदाज ही कर रहे हैं। समय सीमा में कितना कार्य होना चाहियें इससे उन्हें लेना देना नही होता वे तो बस किसी तरह योजना मद की राशि को ठिकाने लगाना चाहते हैं। अनेक बार तो ये मजूदरों से संाठगांठ कर बगैर काम किये मात्र उपस्थिति दर्शाने के एवज में मजदूरी में 60-40 की सेटिंग कर लेते हैं। ‘राष्ट्रचंडिकाÓ टीम ने जिले भर की पंचायतों के व्यापक सर्वे में पाया कि अधिकांश ऐसे कार्य जो कागजी तौर पर पूर्ण दर्शा दिये गये है। वास्तव में वह कुछ प्रतिशत ही हो सके हैं। मसलन तालाब गहरीकरण के नाम पर कुछ मिट्टी की खुदाई कर उसके पार पर डाल दी गई।तालाब की गहराई ऐसी पायी गयी कि गर्मी तो �या दिसंबर जनवरी में ही वे सूख गयें? मेढ़ बंधान के कार्य की �ाी यही स्थिति हैं। अभी मु�यमंत्री सुदूर ग्रामीण सड़क का हाल भी बदतर ढंग से हो रहा है। जिसमें दूरस्थ ग्रामों को आपस में जोडऩे मुरम-मिट्टी की सड़के बनाई जा रही हैं। इस कार्य की खासियत है कि इसे मशीनों (रोड़ रोलर छोड़) की बजाय रोजगार गारंटी से ही कराया जाये इसमें भी पंचायतों ने मजदूरों के साथ मलाई खाई है और कार्य सरासर गुणव�ाा विहीन हुआ है। अनेक तीव्र प्रतिक्रिया वादियों का कहना है कि सरकार को यदि मजदूरी की खैरात ही बांटीन है तो वह सीधे उनके जन धन खातों में रूपये जमा करा दे और जनहित के कार्यो को उन मशीनों से उतने ही बजट में कराये जिससे कार्य तय समय पर और गुणव�ाा वाला हो सके। या फिर यदि रोजगार गारंटी से ही कार्य कराना है तो श्रमिकों से ऐसा अनुबंध करा लिया जाये कि इतने दिनों में प्रति श्रमिक निर्धारित घन मीटर का कार्य करे और इसकी जि�मेदारी रोजगार सहायक सहित उपयंत्री की हो अन्यथा उन पर कार्यवाही की जाये तभी निर्धारित कार्य गुणव�ाा वाले और टिकाऊ साबित हो सकेंगे।