Annusingh04
गोबर उत्पाद चकरी
संपादित करेंग्रामीण परिवेश में पाले जाने वाले पशुओं जैसे कि गाय,भैंस से प्राप्त होने वाले अपशिष्ट या माल को गोबर के नाम से जाना जाता है। वैसे तो कहने को यह अपशिष्ट मात्र है। परंतु ग्रामीण क्षेत्र में इसकी उपयोगिता अत्यंत महत्वपूर्ण है ईंधन,खाद,बायो-गैस के निर्माण से लेकर हिंदू त्योहारों में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है।
प्राचीन काल से ही पशुओं से प्राप्त अवशिष्ट को मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने हेतु इस्तेमाल किया जाता रहा है। समय अंतराल के साथ इसका उपयोग ईंधन के तौर पर भी किया जाने लगा। ग्रामीण परिवेश में घरों की औरतें द्वारा इसका उपयोग उपले अथवा कंड़े बनाने में किया जाता है। उपले अथवा कंड़े भोजन पकाने में उपयोग होने वाले ईंधन के स्थान पर प्रयोग में लाएं जाते हैं।
गोबर की बहुउपयोगिता ने आज इसे आय का साधन भी बना दिया है। बायोगैस में गोबर का उपयोग प्राकृतिक खाद के रूप में सबसे अच्छा विकल्प इसे विक्रय योग्य बनाता हैं।
हिंदू त्योहारों में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी त्यौहार पर घरों में गोबर से लिपाई को शुभ माना जाता है। हिंदू देवता श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने का जिक्र बहुत सी धार्मिक पुस्तकों में है। दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा इसकी सत्यता का प्रमाण है।
वर्तमान समय में इतनी आधुनिकता होने के बाद भी गोबर का स्थान महत्वपूर्ण है। ग्रामीण परिदृश्य में इसका उपयोग आन भी जोरों पर है। हम कह सकते है। कि जब तक मानव सभ्यता में पशुपालन का स्थान है तब तक गोबर की महत्वत्ता बनी रहेगी। प्राचीन काल से आज के आधुनिक युग में इसका महत्व एवं उपयोग अतुलनीय है।
गोबर का उपयोग उपले के रूप में ...
संपादित करेंअर्थ:-
जब गाय या भैंस के गोबर में भूसा मिलकर एक निश्चित आकार देकर उसे धूप में सुखा लिया जाता है उसके पश्चात जो पदार्थ तैयार होता है उसे उपला या कंड़ा कहते हैं।
परिभाषा:- उपले गोबर से निर्मित एक जलावन वस्तु है जो रसोईघरों में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। यह एक मानव निर्मित संसाधन है जो ऊष्मा उत्पन्न करता है उस उत्पन्न ऊष्मा का प्रयोग कर आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में भोजन पकाया जाता है।
निर्माण की प्रक्रिया:- उपले के निर्माण की एक पूरी विधि होती है जो निम्नलिखित है- सर्व प्रथम कुछ दिनों के गोबर को एकत्र किया जाता है। उसके पश्चात उसमें थोड़ा पानी और भूसा मिलाकर एक मिश्रण तैयार किया जाता है।भूसा मिलाने से उसकी ऊष्मा क्षमता में वृद्धि होती है। फिर उस मिश्रण से छोटे-छोटे निश्चित आकार (गोल/लम्बा) के लोइ तैयार किए जाते हैं। उस तैयार लोइ को दिवारों पर या खाली मैदानों में अपने हाथों के सहारे चिपटा दिया जाता है। (ताकि वह जल्दी सुख जाए) धूप के अनुसार उसे लगभग एक सप्ताह सुखाया जाता है तत्पश्चात उपले पूर्ण रूप से बनकर तैयार होता है। फिर इस उपले को बहुत ही सुंदर तथा आकर्षिक आकृति में सजा कर उपयोग करने के लिए भंडारित किया जाता है।
उपले के अन्य नाम
संपादित करें1. चपरी 2. उपरी 3. गौरी 4.गोइठी 5. कंडा
सन्दर्भ
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संपादित करेंनमस्कार Annusingh04 जी, विकिपीडिया पर आपका स्वागत है. यदि किसी तरह की कोई मदद आपको चाहिए. तो आप चौपाल पर बेझिझक सीनियर एडिटर से पूछ सकते हैं. शुभ रात्री. Youknowwhoistheman (वार्ता) 18:28, 10 जनवरी 2024 (UTC)
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