सद्रत्नमाला (= सद् + रत्नमाला = 'सच्चे रत्नों की माला') शंकर वर्मन द्वारा सन् १८१९ में संस्कृत में रचित खगोल और गणित का ग्रन्थ है। शंकर वर्मन केरलीय गणित सम्प्रदाय के खलोगशास्त्री एवं गणितज्ञ थे।

सद्रत्नमाला का प्रथम पृष्ट

यद्यपि इस ग्रन्थ की रचना के समय तक पश्चिमी गणित और ज्योतिषशास्त्र भारत में भी पहुंच गया था, तथापि यह ग्रन्थ पूर्णतः उसी पारम्परिक शैली में लिखी गयी है जिसमें केरल गणितीय सम्प्रदाय के गणितज्ञ लिखते आ रहे थे। शंकर वर्मन ने इस ग्रन्थ का विस्तृत भाष्य भी लिखा जो मलयालम में है।

यह पुस्तक ६ प्रकरणों (अध्याय) में विभक्त है जिनमें कुल २१२ श्लोक हैं।

प्रकरण १ : अंकों के नाम दिए हैं ; योग, घटाना, गुणा, भाग, वर्ग करना, वर्गमूल निकालना, घन करना तथा घनमूल निकालने के कुल ८ संक्रियाओं की परिभाषा की गैइ है।

प्रकरण २ : इस अध्याय में मापन की विभिन्न इकाइयाँ (समय की इकाइयाँ, कोण, चान्द्र-दिवस, ग्रह एवं तारे, पंचांग, लम्बाई, धान्य (grain) के भार, मुद्रा (money) तथा दिशाएँ)

प्रकरण ३ : त्रैराशिक नियम (rule of three) की परिभाषा, पंचांग एवं इसके अवयवों की गणना

प्रकरण ४ : चाप तथा ज्या (arcs and sines) और खगोलीय मापनों एवं गननाओं में इनका उपयोग

प्रकरण ५ : छाया, ग्रहण, व्यतिपात, retrograde motion of the planets and apses of the moon.

प्रकरण ६ : निश्चित कालावधि के बाद खगोलीय नियतांकों के मान को संस्कारित (revision) करने की आवश्यकता, परहित-करण का वर्णन

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